” ए जी.. सुनते हैं..साक्षी आज फिर कोचिंग से अंधेरा होने पर लौटी है।मुझे तो लगता है कि ज़रूर उसका कोई..।” कांता की बात पूरी होने से पहले ही उसके पति महेश बोल पड़े,” अब चुप भी करो…।कल तक मिसेज़ कुलकर्णी की ननद के बारे में # विष उगल रही थी और आज मिसेज़ चंद्रा की बेटी के लिये…
।ये मत भूलो कि ईश्वर ने तुम्हें भी एक बेटी दी है…कल को वो भी पढ़ने के लिये ट्युशन जायेगी….आने में देर-सबेर उसे भी हो सकती है, तब उसके लिये भी कोई ऐसी ही ओछी बातें करेगा तो तुम्हें कैसा लगेगा..।”
” हटो जी..मेरी नव्या ऐसी नहीं है।मैंने उसे अच्छे संस्कार दिये हैं..।कहते हुए कांता बिस्तर पर फैले कपड़े समेटने लगी।
कांता के पति बिजनेस थे।अच्छी कमाई थी..उसके घर में सभी सुविधायें थीं जिसका उसे बहुत घमंड था।खाली समय में आसपास की महिलाओं के साथ बैठकर पति के पैसे का बखान करना और दूसरों के बच्चों की मीन-मेख निकालना उसका स्वभाव था।
मिसेज़ चंद्रा के पति बैंक में काम करते हैं।उनके असामयिक निधन हो जाने पर उन्हें बैंक में नौकरी मिल गई।कुछ समय बाद उनका दूसरे ब्रांच में ट्रांसफर हो गया तो वो छह महीने से कांता के पड़ोस में रह रहीं थीं।उनकी बेटी साक्षी बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी।मैथ्स ट्यूशन से वापस आने में कभी-कभी उसे देर हो जाती थी
जिसकी जानकारी उन्हें थी।कांता अपने स्वभावानुसार उस पर नज़र रखती और कटाक्ष करती।आज भी जब वो अपने पति से साक्षी के बारे कुछ कहने लगी तो उन्होंने डाँट दिया।
साल भर बाद नव्या दसवीं कक्षा में आ गई और केमिस्ट्री-फ़िजिक्स विषय के लिये ट्यूशन लेने लगी।दो-चार महीनों के बाद उसे आने में देरी होने लगी।कांता ने कारण पूछा तो नव्या बोली कि मम्मी, क्लास देर से छूटती है।महेश जी कांता से बोले कि बेटी सयानी हो रही है..उसका रोज-रोज देरी से आना ठीक नहीं है। तुम अपनी ज़िम्मेदारी समझो और कोचिंग सेंटर पर जाकर पता तो लगाओ कि आखिर बात..।”
” आप भी ना..मुझे अपनी नव्या पर पूरा विश्वास है..वो गलत कर ही नहीं सकती।” पति की बात को उसने हँसी में टाल दिया।
एक दिन शाम के सात बज गये..नव्या नहीं लौटी जबकि कोचिंग सेंटर से वो चार बजे ही निकल चुकी थी।उसका फ़ोन भी ऑफ़ आ रहा था तो कांता घबरा गई।वो बेचैनी से घर के बाहर टहलने लगी।
उसके पति पुलिस को फ़ोन करने ही जा रहें थें कि तभी एक मोटरसाइकिल आकर रुकी जिसपर नव्या एक लड़के की कमर में हाथ डालकर बैठी थी।कांता चकित रह गई।अपने गुस्से पर काबू रखते हुए बोली,” कहाँ चली गई थी..तेरा फ़ोन भी ऑफ़ आ रहा था..ये लड़का कौन..।”
” बस मम्मी..आज निखिल का बर्थडे था..मैं उसके साथ ज़रा पार्टी पर चली गई तो तुमने सवालों की बौछारें लगा दीं।ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और तुम…।”चीखते हुए नव्या ने अपनी मम्मी पर खूब #विष उगले।फिर निखिल को बाय कहकर अपना बैग कंधे पर डाली और ऐंठते हुए भीतर चली गई।
कांता हतप्रभ रह गई।शोर सुनकर पड़ोस की कुछ महिलाएँ भी बाहर आ गईं थीं।कांता उनसे नज़र नहीं मिला सकी और तुरंत दरवाज़ा बंद करके रोने लगी।तब उसके पति बोले,” कांता..दूसरों के बारे में बुरा कहने की बजाय तुम नव्या के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझती तो आज ये नौबत नहीं आती।” उस दिन के बाद से कांता दूसरों के घरों में झाँकना छोड़कर अपनी बेटी पर ध्यान देने लगी।
विभा गुप्ता
# विष उगलना स्वरचित, बैंगलुरु
मुहावरा प्रतियोगिता
# विष उगलना