शाम का अंधेरा घिरते ही आरती जल्दी जल्दी पग बढ़ाने लगी। आज चाची मुझे कच्चा खा जायेगी…उसका हृदय कांप उठा।
उसे देखते ही चाची की जहर बुझी डांट सुनाई दी
” कहां रह गई थी करमजली… एक दिन हमारे मुंह में कालिख पोत कर रहेगी।”
आरती अपनी सफाई में कुछ कह पाती कि सामने बैठे सुदर्शन युवक को देख वह पानी पानी हो गई।
” खड़ी-खड़ी मुंह क्या देख रही हो…बचपन की सहेली का बेटा पहली बार आया है… जल्दी से चाय नाश्ता ले आओ।”
हड़बड़ी में उसका पांव दरवाजे में फंस गयाऔर वह औंधे मुंह गिर पड़ी। मुंह से चीत्कार निकला,” मां।”
चाची ने दो थप्पड़ उसके पीठ पर जड़े,” कामचोर, देख कर नहीं चल सकती…अब तेरी मरी मां आयेगी तुम्हें उठाने।”
तभी युवक तेजी से उठा… आरती को उठाया… उसके कटे होंठ से बहते खून देख मर्माहत हो उठा,” मौसी इसको गहरी चोट आई है… डॉक्टर से दिखा देना चाहिए।”
” अरे नहीं… अपने आप ठीक हो जायेगी… नखरे कर रही है…” चाची का अनर्गल प्रलाप जारी था लेकिन उनकी सहेली का बेटा सूरज गंभीर हो गया।
चाची का अमानवीय व्यवहार घायल आरती के साथ देख सूरज को नागवार गुजरा।
” छि: कैसी मानसिकता है…चोट पर मरहम लगाने के बजाय उसपर कटुता का प्रहार कर रही है ।
सूरज के निश्छल हृदय को यह अच्छा नहीं लगा।
आरती एक दो जगह ट्दुयूशन या छोटे मोटे कार्य करके अपना और अपने भाई का खर्चा उठाती थी।भाई बैंक लोन और ट्यूशन कर हास्टल में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।
उसके पिता दो भाई थे। किसी दुर्घटना में माता-पिता का देहांत हो गया। चाचा-चाची ने पुश्तैनी घर पर कब्जा कर लिया… जिसमें उनकी नकचढ़ी बेटी और बिगड़ैल बेटा रहता था। घर का सारा काम आरती के नाज़ुक कंधों पर था… बदले में बचा-खुचा भोजन और गाली-गलौच मिलता।
आरती के पिता के कारोबार पर भी चाचा-चाची ने पूर्णतः कब्जा जमा लिया था। जिसे दोनों अपने बच्चों ऐश मौज पर दोनों हाथों से लुटाते। मुफ्त में हाथ आये पैसों का उन्हें बहुत गुरुर था। घर की देखभाल कामकाज के लिये आरती थी ही…जिसको जब चाहा थप्पड़ लगा दिया या झिड़क दिया।जवान लड़की को प्रताड़ित करने का कोई अवसर चाची नहीं छोड़ती।
चाचा भी चुपचाप यह अत्याचार देखते लेकिन प्रतिकार करने का जोखिम नहीं उठाते।हाथ आई भाई की संपत्ति के नशे में पति-पत्नी अपने बेटे बेटी के साथ चूर थे।
भाई-बहन शिष्ट और मेधावी थे।भाई का आखिरी साल था…. उसने सोच लिया था,” नौकरी लगते ही बहन आरती को अपने पास ले जायेगा….इस नरक से मुक्ति दिलायेगा।”
इधर सूरज को बस्तुस्थिति समझते देर नहीं लगी।वह व्यथित हृदय से अपने घर पहुंचकर अपने माता-पिता से को सारी बात बताई।
दिन वह आरती से उसके कार्यस्थल पर मिला,” मुझे पहचाना।”
आरती घबरा उठी।
” देखो चिंता मत करो… मैं सरकारी नौकरी करता हूं… कोई अवारा लोफर नहीं हूं … तुम मुझे और मेरे माता-पिता को पसंद हो… तुमसे विवाह करना चाहता हूं।मेरी मां तुम्हारी चाची के दुर्व्यवहार को जानती है… इसीलिए उस दिन तुम्हें देखने और परखने के लिये भेजा था… तभी तुम हड़बड़ा कर गिर पड़ी और तुम्हें चोट लग गई…मेरे कारण तुम्हें अपनी चाची की जली-कटी सुननी पड़ी।”
“मेरे आंगन की लक्ष्मी” – कविता भड़ाना : Moral stories in hindi
इतना सब कुछ सुनते ही आरती सोच में पड़ गई,
” मेरा भाई अभी छोटा है… पढ़ाई कर रहा है ….मेरे चाचा-चाची मुझे घर से निकाल देंगे “आरती कैसे स्वीकार करे ।
तभी उसका भाई और सूरज के माता-पिता वहां पहुंचे।
” दीदी, चिंता मत करो… मैं तुमसे छोटा जरुर हूं… लेकिन भला-बुरा समझता हूं”भाई ने आरती को गले लगा कर दिलासा दिया।
” हम तुम्हें अपने बेटे सूरज संग व्याह कर ले जायेंगे… तुम्हारी चाची मेरी सहेली है… तुम्हारे दिवंगत माता-पिता की संपत्ति हथिया उसी पर राज कर रही है।उसका गुरुर मैं तोडूंगी।” सूरज की मां ने कहा।
सच्चाई जानकर आश्चर्य चकित आरती की आंखें भर आईं। उसने सिर झुका लिया।
सूरज शरारत से बोला,” कोई और सवाल…अब रिश्ता कुबूल है।”
सभी हंस पड़े।
चाची विवाह का प्रस्ताव सुन बिफर पड़ी,” यह कैसा मजाक है… तुम मेरी सहेली हो,इस कंगली से अपने लायक बेटे का विवाह करोगी “।
” क्या कहा,कंगली…कंगली आरती नहीं तुम पति-पत्नी हो जो दुर्घटना में मारे गये अपने जेठ के संपत्ति पर राज कर रही हो और इस भाई-बहन का जीना हराम कर रखा है…अब आरती मेरी होने वाली बहू है… खबरदार जो इसके विरुद्ध एक गलत शब्द निकाला तो…” सहेली का रौद्र रूप देख बुजदिल चाची सहम उठी।पासा पलट चुका था।
पराये धन की कली खुल चुकी थी।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा