वो ममतामयी सास तो मैं ममतामयी बहु – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

ट्रिन ट्रिन ट्रिन काॅलवेल की आवाज सुनकर रमा देवी इटके से उठकर बड़बड़ाती दरवाजे की तरफ लपकी अरे भई कौन है? आ रही हूँ …ऐसा नहीं एक बार बजा दें, स्विच पर हाथ रखा नहीं तब तक नहीं हटाते जब तक कि दरवाजा न खुल जाए।दस काम रहते घर में करने को और ऊपर से आने जाने वालों के लिए दरवाजा खोलना, बंद करना, गेट कीपर बन कर रह गई हूँ मैं  घर में । कमरे में बैठी उनकी देवरानी सब्जी काट रही, यह सुनकर खिलखिला कर हंँसने लगी अरे जीजी तुम भी ना । 

दरवाजा खुलते ही रमा जी की बेटी मीरा लम्बी सांस लेती दनदनाती अंदर दाखिल होती है।

ओह मम्मा…माँ को बाहों में भरती कहती चलो थोड़ी राहत तो मिलेगी आखिर वीकेंड आ ही गया । पर्स एक तरफ रख वाशरूम का दरवाजा खोल अन्दर जा जोर से बंद कर अंग्रेजी गाने की लाइने गुनगुनाने लगती है।

रमा जी बेटी को देखकर थोड़ा शान्त हो जाती हैं उस पर स्नेह आने लगता है..चलो बच्ची ही है हफ्ते भर पाँच छह दिन की भागम भाग थक जाती होगी बेचारी आॅफिस की भाग-दौड़,दो तीन घन्टों का रोज का सफर अभी उम्र ही क्या है उसकी खेलने कूदने के दिन है । माँ के घर में मस्ती नहीं करेगी तो कहां करेगी ।

लेकिन रमा जी की देवरानी व्यंग्य पूर्वक बोलती है अरी मीरा थोड़ा सलीका सीख ले क्या हवा आंधी-तूफान की तरह भड भड़ाती फिरती है।अगले माह शादी है इसकी, ऐसी ही हरकतें ससुराल में भी करेगी क्या ? मेरी बेटी मीता को ही ले लो कितनी शान्त सुशील ….जाने इसकी सास कैसी होगी, देखने में तो कड़क ही नजर आ रही थी ।

कहने को तो कह गई सगाई वाले दिन जाते वक्त, हम बेटी बहु में कोई फर्क नहीं रखेंगे..मगर जीजी यह सब कहने की ही बातें हैं “इतना आसान नहीं होता बहु को बेटी की तरह समझना, शादी से पहले हर लड़के वाले ऐसी ही बातें किया करते हैं “!!!

मीरा चाची की बात सुनकर वाशरूम से जल्दी से बाहर आ जाती है…अरे चाची चिन्ता क्यों करती हो देखना मेरी सास लाखों में एक होगी । 

हाँ.. हाँ.. लाड़ो क्यों नहीं ? तुम भी तो लाखों में एक हो.. चाची यह कहकर हल्के से ऐसे मुस्कुराई मानो व्यंग्य कर रही हो ।

रमा देवी देवरानी को थोड़ा तीखी नजर से देख बड़बड़ाती है.. जब से मेरी बेटी का रिश्ता हुआ इसके तो दिल में आग ही लगी हुई है हर बात में अपनी बेटी से ही तुलना करती रहती है अब इसे कौन समझाए मेरी बेटी आॅफिस जाती इसकी बेटी पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी उससे तो बस सारा टाइम लिपापोती करवा लो मुह में, जैसी माँ वैसी उसकी बेटी …इसकी ईर्ष्या हमारी सुख शान्ति खत्म करके रहेगी एक दिन ।

“वैसे भी ईष्र्या कभी अकेले नहीं आती अनेक बुराइयां साथ लेकर आती है, ईष्र्या असफलता का दूसरा नाम है जो महत्व को कम कर देती है “।

रहने भी दो छोटी अब पहले शादी हो जाने दो…. बोलने चालने में उसके ससुराल वाले कितने सौम्य सुशील है हम देख चुके हैं। मीरा पढ़ी-लिखी लड़की है अभी बचपना है सब सीख जायेगी धीरे-धीरे। रमा जी देवरानी को समझाती अपने दूसरे काम में व्यस्त हो गई।

आखिर मीरा की शादी रवि के साथ हो जाती है। कुछ दिन बड़े ही मसरूफियत से गुजरते हैं। उसको एक पल भी नहीं लगता वो दूसरे घर में है ।उसको ससुराल में माँ पिता के घर से भी ज्यादा अच्छा लगने लगता है। सासू मां ससुर जी ननद आकांक्षा का प्यार में खो कर रह जाती है। सासू मां घर पर ही रहती बाकी सभी सदस्य कामकाजी सुबह ही निकल जाते देर शाम ही वापस आते।

एक दिन बाहर से घूमकर आती है तब सासूमां कहती हैं बेटा मीरा तुम फ्रेश हो जाओ मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ। मीरा काफी थकान महसूस कर रही थी फिर भी बोली अरे मम्मी जी…आप क्यों तकलीफ करती है मैं बना लाती हूँ ।

सासू मां कहती हैं बेटा तुम बहुत थकी हो…थोड़ा आराम करो मैं जैसे रवि आकांक्षा की माँ हूँ वैसे ही तुम्हारी भी माँ हूँ । मीरा सासूमां के शब्द सुनकर गदगद हो जाती है।

मीरा फ्रेश होकर सबके साथ चाय नाश्ता करती है। सासूमां रेखा जी  सबसे पहले मीरा से ही पूछती है…मीरा बेटा डिनर में क्या खाओगी..आज सब तुम्हारी ही पसन्द का बनेगा।

मीरा झिझकते हुए कहती हैं मम्मी जी कुछ भी बना लीजिए। चलो मैं आपकी सहायता करती हूँ.. मेरे होते हुए आप करें मुझे अच्छा नहीं लगता।

रेखा जी कहती हैं अरे बेटा अब तक तो सब काम मैं ही करती आई हूँ .. चलो किचन में चलते हैं।

दूसरे दिन सुबह की भागदौड़ जैसा की उन घरों में होता ही है जहां सभी सदस्य आॅफिस जाते हैं कोई नहाने धोने की तैयारी में व्यस्त, तो कोई प्रेस कर रहा कोई जल्दी-जल्दी दिन भर के काम का ब्यौरा तय कर रहा कोई अपने फोन में क्लाइंट से टाइम फिक्स करने में व्यस्त, रेखा जी सभी के टिफिन पैक कर देते हुए कहती हैं भई राजमा बनाया है साथ में सूखे आलू मटर जीरा चावल भी रख दिए हैं।

मीरा खुशी से चहक पड़ती है अरे माँ ये सब तो मेरी पसंद की चीजें हैं, आपको कैसे पता चला ।

तभी रवि बाथरूम से नहाकर कहते हुए निकलते हैं अरे मैंने ही बताया था मम्मा को कल की मीरा को यह सब व्यंजन बहुत हैं।

सभी आॅफिस के लिए निकल जाते हैं मीरा के ससुर जी सोहन बाबू अपने किसी कार्य वश आज छुट्टी पर थे । पत्नी रेखा जी से कहते हैं अरे भई तुम्हारी भी सुबह- सुबह किचन की ड्यूटी लग जाती है अब तो तुम्हारी बहुरानी भी आ गई ।

तुम सब कुछ इतनी आसानी से कैसे सहती हो ?

सुनकर रेखा जी कहती हैं कैसी बातें करते हैं आप ?

शान्ति से जीना कौन मुश्किल काम है ? हम महिलाओं की गन्दी आदत होती है अंहकार और जिद के आगे किसी को कुछ नहीं समझती है और घर में अशांति पैदा कर देती है। वो आगे कहती हैं ….

 पहले मैं आप सब लोगों के तीन लंच बाक्स पैक करती थी अब चार कर दूंगी…इसमें ड्यूटी की क्या बात है ?

और फिर मीरा बहु नहीं बेटी ही है हमारी मेरे लिए तो जैसे मेरी बेटी आकांक्षा वैसे ही मीरा भी है।

देखिए सोहन बाबू मैंने जिंदगी में बहुत कष्ट उठाये है आप तो अच्छी तरह जानते ही हैं…मेरी सासूमां कितनी गंभीर व अहंकारी स्वभाव की महिला थी अपने अहंकार की तृप्ति के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहती थी ।

हाँ याद है… वैसे अम्मा तुम्हारे धैर्य की तारीफ भी खूब किया करती थी । सोहन बाबू स्नेह भरी नजरों से पत्नी की तरफ देखते हुए कहते हैं।

धैर्यवान व्यक्ति हर काम को अच्छे से कर पाता है गुस्सा तो रिश्ते या काम को बर्बाद कर रख देता है । अम्मा गम्भीर रहने की ही सलाह देती थी बहुत पुराने विचारों की थीं वो । और तुमको प्रफुल्लित रहना ही पसंद था …. वैसे भी प्रफुल्लित रहने वाला व्यक्ति खुद भी आनंदित रहता और दूसरों को भी आनंदित करता ही है।

रेखा जी पति की तरफ देखकर हँसते हुए कहती हैं मैंने जो तकलीफ सही मुझे अपनी बहु मीरा को उन तकलीफों से बचाना है जो कुछ मैंने झेला है वो सब मै अपनी बहु को नहीं सहने दुंगी।

अब अम्मा तो रही नहीं उनकी बातें क्या करना ? और फिर करने का फायदा भी क्या है।जो भी हो मुझे “ईर्ष्यालु नहीं एक ममतामई सास” बनना है। मैं नहीं चाहूंगी मेरी कोई बात मेरी बहु को ज़िन्दगी भर कांटा बन चुभाती रहे ।

सोहन बाबू अपनी पत्नी की तरफ जिस भाव से देखते हैं उसमें तारीफ के भाव उभर रहे थे।

शाम को सभी सदस्य आॅफिस से लौट आते हैं खाने की टेबल में सोहनबाबू अपनी पत्नी रेखा जी को छेड़ते हुए कहते हैं अरे घर में कितनी शांति बनाए रखती हो घर में कभी- कभी थोड़ा सास वाला रूप भी दिखा दिया करो अपना, आस पड़ोस वालों को कैसे पता चलेगा इस घर में सास बहु एक साथ रहती है। सभी खिलखिला कर हंसने लगते हैं । 

मीरा कुछ पल ख्यालों में खो जाती है ये चाची भी …कैसे डराती रहती उसको..

उसकी सासू मां का व्यवहार तो कितना अच्छा है प्यार स्नेह विश्वास भरा वो मुझे अपनी बेटी की तरह समझती है तो भला मैं उनको अपनी माँ की तरह क्यों नहीं समझूंगी। वो ममतामई सास तो मैं ममतामई बहु । 

      लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

VD

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