मां बाप का आशीर्वाद से बड़ा कुछ भी नहीं है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

मांजी सूप पी लीजिए ,अरे बेटा मन भर गया है अब तो सूप वूप से । कितना पीऊं अब तो ऊब गई हूं मैं इस बिस्तर पर पड़े पड़े।ऊपर वाला मेरी सुनता क्यों नहीं है ।नहीं मांजी ऐसा न कहें, आपके आशीर्वाद की आपके साथ की तो अभी हम लोगों को बहुत ज़रूरत है । अभी तो आपको अपनी पोतियों की शादी करनी है। क्या मेरी सेवा में कोई कमी रह गई है क्या।अरे नहीं बेटा तुम तो मेरी बहू ंनहींबेटी से भी बढ़कर है । जितना तुम और मेरा बेटा कर रही हो मेरी दिनभर देखभाल और कोई नहीं कर सकता ।है तो घर में मेरे दो और बेटे बहू मेरे कमरे में झांकने भी नहीं आते । लेकिन तुम दोनों ने तो जी जान लगा दिया है मेरी देखभाल करने में ।

              दुर्गा जी और दयाशंकर जी का बड़ा परिवार था ।पांच बेटे और दो बेटियां थीं ।एक बड़े से बंगलें में सब एक साथ रहते थे।ठेकेदारी का काम होता था। सभी सुख सुविधाओं से सम्पन्न था घर। बड़े बेटे सुधीर और बेटी सुधा की शादी हो चुकी थी । उसके बाद एक दिन काम के बोझ से दबे दयाशंकर जी का कम उम्र में ही हृदयाघात से देहांत हो गया ।घर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा।काम धंधा काफी फ़ैला हुआ था। अभी तक बड़े बेटे को छोड़कर किसी ने जिम्मेदारी संभाली नहीं थी । फिर धीरे धीरे बड़े बेटे सुधीर ने काम को देखना शुरू किया।

      दयाशंकर के जाने के  दो साल बाद दूसरी बेटी पुष्पा की भी शादी हो गई।और दूसरे बेटे सुनील की शादी हुई।पैसों का सारा हिसाब किताब बड़े भाई सुधीर ही देखते थे । दुर्गा जी बाकी बेटों से भी कहती थी कि बड़े भाई के काम में हाथ बटाएं पर कुछ कम ही ध्यान देते थे ।घर में सबकुछ आसानी से मिलता था तो कोई फ़िक्र ही नहीं करता था।दूसरे बेटे सुनील की साइंस में बहुत रूचि थी और वो पढ़ें लिखे भी थे तो उन्होंने घर में ही एक लैब बना लिया और साइंस के बच्चों को प्रैक्टिकल कराने लगे । धीरे धीरे उनका यह लैब वाला काम काफी बढ़ गया काफी बच्चे आने लगे घर पर तो उनकी रूचि बिजनेस में कम ही हो गया।

       अब तीसरे बेटे सुमित की बारी आई तो वो पूजा पाठ में बहुत मन लगाते थे । किसी गुरु से गुरु दीक्षा ले ली थी । धीरे धीरे वो आध्यात्म की तरफ इतना झुक गए कि सबकुछ छोड़कर उन्होंने अध्यात्म को ही अपना लिया और गुरु जी के आश्रम चमोली चले गए।

           अब चौथे भाई श्रवण की बारी आई अब उसकी भी शादी हो गई थी ।तब-तक बड़े भाई सुधीर के दो बच्चे हैं चुके थे। उन्होंने जब देखा कि और भाई पिताजी के काम में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो उन्होंने पिता जी के काम धंधे को अपने नाम करा लिया और पैसा भी बहुत कुछ अपने हिस्से कर लिया।काम को भी अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया ।अब अगर भाई काम करना चाहते हैं तो उनका हिस्सा नहीं तनख्वाह मिलेगी। पिताजी के काम में मेहनत बहुत थी और शुरू से ही पिताजी के रहते सबको आरामतलबी की

इस कहानी को भी पढ़ें: 

कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

आदत पड़ चुकी थी तो कोई भी इतनी मेहनत नहीं करना चाहता था।तो श्रवण ने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी पकड़ ली ।और सबसे छोटा बेटा शिवम् किसी हडि्डयों की बीमारी से ग्रस्त था ठीक से चल फिर भी नहीं पाता था।गिर जाता था जिससे उसकी हड्डी टूट जाती थी । इसलिए उसको भी देखभाल की जरूरत थी।घर की परिस्थितियों को देखते हुए घर के बिजनेस पर पूरी तरह से बडे  भाई ने कब्जा जमा लिया था।

             एम आर की नौकरी करने पर श्रवण का ट्रांसफर रायपुर में हो गया।वो घर छोड़कर रायपुर चले गए।अब यहां पर दो दो बहूं बेटों के रहने प्रभु दुर्गा जी अकेली हो गई । कोई भी बहू बेटे मां पर ध्यान नहीं देते थे। सबसे छोटे बेटे की भी देखभाल करनी पड़ती थी । हालांकि नौकर चाकर थे तो हो जाता था।

पहले सबका सम्मिलित एक रसोई थी लेकिन अब मां दुर्गा जी को कोई नहीं पूछता था।उनका और सबसे छोटे बेटे का खाना अलग बनने लगा ।इधर श्रवण की पत्नी मिनाक्षी की डिलीवरी होनी थी तो वो पत्नी को लेकर घर आ गए । मीनाक्षी ने यहां एक बेटी को जन्म दिया ।अब उम्र के हिसाब से दुर्गाजी थोड़ी अस्वस्थ रहने लगी । इसी बीच कुछ समय बाद मीनाक्षी की दूसरी बार प्रेग्नेंट हो गई। दूसरी बार भी मीनाक्षी ने एक बेटी को जन्म दिया । लेकिन श्रवण को लगता था कि एक बेटा होना चाहिए । दुर्गा जी ने समझाया कि दो बेटियां हैं गई तो क्या हुआ लेकिन दूसरी बेटी दो साल की ही हो पाई थी कि तीसरी बार भी मीनाक्षी को बेटी हो गई।

         अब तीन तीन बेटियां के साथ बहुत मुश्किल होती थी तो श्रवण ने यही पर काम करना शुरू कर दिया । उम्र के हिसाब से दुर्गाजी को घुटने की प्राब्लम शुरू हो गई।उनको देख देख की जरूरत थी। बाकी तो बहुएं कुछ ध्यान नहीं देती थी ।तो मीनाक्षी ही मांजी की देखभाल करती थी ।श्रवण ने नौकरी छोड़कर घर के बिजनेस में हाथ बंटाना चाहा और घर पर रहने का निर्णय लिया ।

                   लेकिन बिजनेस पूरी तरह से भाई के कब्जे में आ चुका था। मीनाक्षी ने तीसरी बार भी बेटी को जन्म दिया। इसी बीच दुर्गा जी को एक दिन ब्रेन हैमरेज आया और वो कोमा में चली गई।अब समस्या उनकी देखभाल और इलाज की थी। आपरेशन होना था तो बड़े भाई ने पैसे लगाकर आपरेशन करा दिया और एक हफ्ते बाद दुर्गा जी को घर भी ले आया गया । लेकिन घर में उनकी अच्छी देखभाल की जरूरत थी सो एक हेल्पर की सहायता से श्रवण और मीनाक्षी देखभाल करते थे । धीरे धीरे उनकी याददाश्त वापस आने लगी करीब महीने भर बाद मांजी थोड़ा ठीक हो पा रही थी । थोड़ा सा सहारे से बैठा दिया जाता था थोड़ा थोड़ा बोलने भी लगी थी । बाकी दोनों बहुएं कमरे में झांकने भी नहीं आते थे ।बेटे कभी कभी हार चाल पूछ लेते थे ।और उन्हें दिखाई दे रहा था कि छोटा भाई और उसकी पत्नी सब देख रेख कर रहे हैं तो अपनी पत्नियों से कहने की क्या ही ज़रूरत है।

              छै महीने हो गए थे मांजी को बीमारी से जूझते हुए अब काफी हद तक ठीक हो रही थी । दुर्गा जी ने एक दिन मीनाक्षी और श्रवण को अपने पास बुलाया और अलमारी से एक डिब्बा निकालने को कहा । फिर उस डिब्बे को मीनाक्षी के साथ में देते हुए बोली लो बेटा ये सब तुम लोग रखो ये तुम्हारा है ,ये मेरे खानदानी जेवर है । लेकिन मां जी इसपर तो सभी का हक होगा मैं ही कैसे रख सकती हूं बाद में झगड़ा होगा। नहीं ये मेरा है और ये मैं सिर्फ तुम लोगों को सौंप रही हूं तुम दोनों ने मेरी बहुत सेवा की है

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जिगर का टुकड़ा – मंगला श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

वो दोनों तो कभी झांकने भी नहीं आती थी ।और बेटा ये कुछ पेपर है इस बंगले का । तुम्हारे बाबूजी ने पहले ही वसीयत बनवा दी थी और सबके हिस्से की । उसमें एक मेरा भी हिस्सा था और उस हिस्से को मैं तुम्हें देना चाहती हूं । बाकी तो सबके हिस्से का बंटवारा कितना है सब इस पेपर में लिखा हुआ है। मैंने अपना हिस्सा तेरे नाम कर दिया है । तुम्हारे तीन तीन बेटियां हैं सबकी पढ़ाई-लिखाई और शादी ब्याह करना है तो देख लेना। खूब फलों फूलों बेटा मेरा आशिर्वाद सदा तुम दोनों के साथ है ।

             दो साल बाद दुर्गा जी का देहांत हो गया । तेरहवीं के बाद सारे पेपर्स वगैरह निकाले गए ।एक वसीयत तो दयाशंकर जी ने बनवाई थी तो दूसरी  मां जी ने भी बनवाई थी कि मेरा जेवर और मेरे हिस्से की जगह इस बंगले में, सब श्रवण और मीनाक्षी  को जाता है उन दोनों ने मेरी बड़ी सेवा की है।इस पर दोनों भाई और भाभियों ने खूब हंगामा किया लेकिन सबकुछ लिखित में था तो कोई कुछ न कर पाया।

            मीनाक्षी की बड़ी जेठानी को लंस कैंसर हो गया था जिसमें उनकी मृत्यु हो गई और दूसरे जेठ का एक एक्सीडेंट में मौत हो गई । परिवार ऐसे ही बिखर गया । मीनाक्षी के तीनों बेटियों की शादी हो गई ।एक से बढ़कर एक दामाद मिले जिन्होंने श्रवण के बेटे ने होने की कमी को पूरा कर दिया।

               कुछ समय के बाद मीनाक्षी के पति श्रवण भी नहीं रहे ।अब मीनाक्षी बेटियों के पास रहती है खुशहाल हैं । दामाद बेटों से बढ़कर मीनाक्षी का ध्यान रखते हैं । बाकी दोनों जेठ जेठानियों का ऐसे ही है कोई किसी तरह से परेशान हैं तो कोई किसी तरह से । मीनाक्षी पर मांजी का बड़ों का आशीर्वाद रहा जो बेटियां खूब फल फूल रही है और खुशहाल हैं ।

        दोस्तों बड़ी ताकत होती है बड़ों के आशीर्वाद में । अपने माता-पिता का दिल दुखाकर आप खुशहाल कैसे रह सकते हो ।यह ध्यान देने की बात है । आपकी क्या राय है बताइएगा।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश

9 फरवरी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!