कुंभ की यात्रा का सौभाग्य – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

शुभा पिछली बार अर्ध कुंभ स्नान का पुण्य प्राप्त कर चुकी थी।पति की तबीयत ठीक नहीं थी,तब। कॉलोनी में रहने वाली राठौर भाभी से बातों-बातों में जाने की इच्छा जाहिर की थी शुभा ने।अगले ही हफ्ते टिकट बुक हो गया था उसका उनके परिवार के साथ। प्रयागराज दर्शन के साथ-साथ काशी विश्वनाथ जी के दर्शन का सौभाग्य भी मिला।वह यात्रा शुभा के जीवन में एक दैवीय अनुभूति लेकर आया था।

पूरी यात्रा में राठौर भाभी के परिवार ने बहुत ख्याल रखा था उसका।शुभा ने कहा भी था राठौर भैया से”आप जरूर पिछले जन्म में मेरे पिता या बड़े भाई होंगे,जो इतने स्नेह और सम्मान के साथ मुझे कुंभ में पहली बार डुबकी लगवाई आपने।”

जवाब में भाभी ने ही कहा”जाती तो अपने पैरों से ही हो।पैसा भी अपना दे देती हो,फिर हमारा अहसान कैसा।गंगा मैया की कृपा रही तो फिर चलेंगे साथ।ठीक है ना शुभा?”शुभा तो बल्लियों उछलने लगी थी।पता था उसे अगली बार जाएगी फिर से उन्हीं के साथ। यात्रा का कष्ट महसूस ही नहीं होता ,जब समान सोच के लोग जाते हों।

इस बार जब प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन होने जा रहा था,शुभा‌ बीच-बीच में याद दिला ही देती भाभी को। देखते-ही-देखते राठौर भैया रिटायर हो गए।जाने से पहले भाभी ने वचन दिया “हम कहीं भी रहें,संगम में तुम्हें लेकर ही चलेंगे।सात डुबकी‌ से कम में छोड़ेंगे नहीं‌ तुम्हें।

शुभा की‌ आस जल्दी ही पूरी हो गई।फोन पर बताया भाभी ने”शुभा रिजर्वेशन हो गया है,कटनी -बनारस स्पेशल ट्रेन में।चलना है ना?”भाभी का फोन आते ही लगा शुभा को कि वह नहा रही है गंगा में डुबकी लगाकर।

इस बार एसी कोच में ही करवाया गया था रिजर्वेशन। अनूपपुर से कटनी।कटनी से बनारस।फिर बनारस से अयोध्या होते हुए प्रयागराज लौटना होगा

तीन दिन की यात्रा थी।घर पर बुजुर्ग सासू मां थीं,जो ठीक से चल -फिर नहीं सकती ।दो बार पहले ससुर के साथ कुंभ स्नान कर चुकीं हैं पहले।पर काशी विश्वनाथ मंदिर में जाने का उनका बड़ा मन था।अब इस समय यदि मैं अपने कुंभ स्नान में उन्हें छोड़कर जाती हूं,तो बड़ा दुख होगा उन्हें।बताकर भी जाती हूं ,तो भी उनका मन तो रहेगा जाने का।यही सोचकर शुभा ने तीसरा रास्ता निकाला।सासू मां से कहा-मां,तीन चार दिन का स्कूल का कार्यक्रम आयोजित हुआ है बाहर।मुझे परीक्षा से पहले बच्चों को प्रोत्साहित करना है प्रोग्राम में।तुम रह लोगी ना अपने नाती के साथ?”उन्होंने शांत मन से कहा”क्यों नहीं रह पाऊंगी मैं?नाती तुम्हारे ना रहने पर बहुत सेवा करता है मेरी।”

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बस यह समस्या भी हल हो गई।सुबह ही राठौर भाभी ने लोकल ट्रेन अनूपपुर से पकड़ी ,फोन पर कोच भी बता दिया।साथ में मां के जैसी समझाइश भी देने से नहीं चूकी,”शुभा,अक्षत,सिंदूर, नारियल,घी ,दीया,थोड़ा सा चांवल दान के लिए भी रख लेना।”उनकी हर बात याद करके सामान रख लिया था ।कटनी में ३ बजे पहुंची ट्रेन,तब हमने वेटिंग रुम में फ्रेश होकर खाना खाया।खाना खाने के बाद बाहर मार्केट घूमने निकले।पता नहीं क्यों शुभा को कुछ अजीब सा लग रहा था।कारण वह भी ढूंढ़ रही थी।मायके में भी किसी को नहीं बताया।छोटा भाई(राजा)और उसकी पत्नी जॉली को भी नहीं पता था कि दीदी कुंभ जा रही।अब कटनी से कैमोर,(मायका), सिर्फ ४० किलोमीटर ही है।शुभा को बुरा लग रहा था कि उनसे चलने के लिए कहा भी नहीं एक बार भी।शुभा बेमन से चाय पीते हुए सोचने लगी कि वहां से आकर बताऊंगी।

प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर ही रही थी कि कैमोर के घर के एक पड़ोसी की बेटी दीपाली का फोन आया”बुआ,कहां हैं आप?राजा चाचा की तबीयत अचानक खराब हो गई है। एम्बुलैंस में हॉस्पिटल लेकर गएं हैं।आप जल्दी आ जाइये।”

शुभा सन्न रह गई , अभी-अभी तो सोच रही थी कि उन दोनों से कहूंगी कुंभ हो आने को,और अब यह खबर।हे भगवान !तुम ये कैसी परीक्षा ले रहे।ध्यान आते ही भाभी से बात की,तो वह बोली”दीदी,आपके भाई को हॉस्पिटल में ले गए हैं। अड़ोस-पड़ोस के लोग हैं।मुझे बाहर ही बिठाया है,कोई कुछ बता भी नहीं रहा। अच्छा नहीं लग रहा बिल्कुल।ठीक हो जाएंगे ना दीदी?”उसके कातर स्वर ने शुभा को भी भेद दिया।झट से उन्हें अंदर डॉक्टर से मिलने जाने दिया गया।

शुभा प्लेटफार्म पर ही घूम रही थी निरर्थक।तभी भाभी का फिर फोन आया”दीदी, डॉक्टर बोल रहे हैं कि ये नहीं रहे।देखो ना दीदी।अभी आधे घंटे पहले चाय पी और बिस्कुट खाकर लेटे।छह बजे लाइट जलाने आई तो देखा,शरीर में कोई हलचल नहीं। वो शायद गहरी नींद में होंगे,सोचकर मुंह में पानी के छींटें मारे,पर कैसी हलचल नहीं हुई।तुम्हारा भाई अचेत ही पड़ा रहा।ये लोग कैसे बोल रहें हैं कि राजा नहीं रहे?”मौके की गंभीरता को देखते हुए,शुभा ने पड़ोसियों से बात की।सत्य यही था कि शुभा से चार साल छोटे भाई (राजा)की अटैक से मौत हो चुकी थी ‌।

इतना बड़ा दुख किसे बताएं।कौन समझेगा उसके मनोभाव?सोचती रोने लगी थी वह।तब दो घंटे बचे थे ट्रेन आने में।शुभा प्लेटफार्म से बाहर बदहाल होकर निकली ,तो राठौर भाभी ने पूछा।सब जानकारी मिलते ही बोलीं “चले जाओ तुम भाभी के पास तुरंत। बिल्कुल अकेली है वह।”

अपने साथ लाई विसर्जन की सामग्री उनके हाथों में धरा कर शुभा स्टेशन से बाहर निकली।मायके से छोटे भाई का दोस्त गाड़ी लेकर आ चुका था।अगले डेढ़ घंटे में शुभा कैमोर पंहुची।घर के बाहर तिरपाल और कुर्सियां सज चुकी थीं।फ्रीजर में ही राजा का पार्थिव शरीर रखा हुआ था।भाभी उसे देखते ही दहाड़ मारकर रोने लगी।शुभा उसे चुप करवाते हुए अपने आंसू पोंछ रही थी।वह किसके सामने रोए?किसके सामने अपना दर्द बांटे।

अंतिम संस्कार छोटे भाई के आने के बाद ही संभव था।वह लीबिया में था।एक साल पहले ही गया था।उसने रोकर कहा”दीदी,मैं निकल रहा हूं।आप वहां का संभाल लेना।आप बड़ी हो,भाभी को हिम्मत देना।”सच है शुभा  घर की बड़ी बेटी थी।सोलह साल की उम्र में पापा के चले जाने के बाद से भाई-बहनों को पिता बनकर ही पाला था। ट्यूशन पढ़ाकर और सरस्वती शिशु मंदिर में नौकरी कर घर खर्च चलाया था।आज फिर से भाभी के सम्मुख बड़े बनकर ही रहना होगा।

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अगले दिन बाकी दोनों बहनें अपने पतियों के साथ पहुंच गई थीं।बहनों ने भी तो अपने मायके का आखिरी सहारा खो दिया था।दीदी से लिपटकर खूब रोईं,और दीदी सबको चुप करवाती रही।ख़ुद रोना उचित नहीं था।

भाभी ने दो दिनों से कुछ खाया भी नहीं था।पड़ोस से चाय -बिस्कुट मंगवाकर उसे शुभा ने ही खिलाया।उसका दुख बाकी सभी से ज्यादा था।पति खोया था उसने। ईश्वर ने एक बेटा दिया था,वह भी अठमासा ।पंद्रह दिन रहकर वह चला गया।दो साल पहले भाभी के पिता गुजर गए।एक बड़ी बहन थी,जिसके पास ही भाभी की मां रहती थी।बेसहारा होने का दर्द भाभी की आंखों में देख सकती थी शुभा।उनके दर्द की कोई सहानुभूति ही नहीं थी।

दो दिन बाद छोटा भाई लीबिया से इजिप्ट, इजिप्ट से मुंबई,फिर मुंबई से जबलपुर होते हुए कैमोर पहुंचा। अंतिम यात्रा की समस्त तैयारी बहनों के पति और मोहल्ले के लड़कों ने पहले ही कर ली थी।साढ़े तीन बजे छोटा भाई हांफते हुए पहुंचा और अंतिम विदा देकर राजा को मृत्यु धाम ले जाया गया।विधि के विधान के आगे नतमस्तक होने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं शेष था।श्मशान से घर आकर भाभी को सफेद साड़ी,बिना सिंदूर ,बिना चूड़ी के देखकर छोटा भाई फफक-फफक कर रो पड़ा।शुभा यह सब चार साल पहले झेल चुकी थी।पति (अमित)का जाना उसके जीवन को भी श्रीहीन कर चुका था।

श्राद्ध सोमवार(३ फरवरी)को होना था।सारी तैयारियां हो रहीं थीं,तभी भाभी रोते हुए बोली “दीदी,आज हमारी सालगिरह थी शादी की।तुम्हारे भाई की इच्छा थी एक पूजा करवाने की।देखो उसी के मन का हो रहा है सब।बस वही नहीं है।”याद तो शुभा और बाकी भाई-बहनों को भी था।हाय रे किस्मत!!!!इतना बड़ा संयोग।शादी के सालगिरह वाले दिन ही श्राद्ध संस्कार और रिसेप्शन वाले दिन तेरहवीं पड़ रही थी। तेरहवीं के निमंत्रण पत्र की रूपरेखा भी शुभा को ही बनानी पड़ी।खाने में क्या बनेगा से लेकर पंडित जी को दी जाने वाली दान सामग्री की सूची शुभा ही बना रही थी।

छोटा भाई आंखों के आंसू छिपाकर दौड़ -धूप कर रहा था।दस दिन की ही छुट्टी मिली थी उसे इमरजेंसी में।पूजा करने आए पंडित जी ने एक और रहस्योद्घाटन किया यह बताकर कि”राजा पिछले हफ्ते ही कह रहा था ,एक पूजा और हवन करवाने के लिए।घर में ब्राह्मण भोजन करवाने  की बहुत समय से ही इच्छा थी उसकी।”श्राद्ध संस्कार संपन्न हुआ‌ निर्विघ्न।

पांच भाई-बहनों ने पिता को खोकर बड़ी मुश्किल से जीवन जीना सीखा था,शुभा की अगुवाई में।आज संख्या कम हो गई ।चार ही बचे सारे लोग।शुभा को तो सबको संभालना था।छोटे भाई -बहन शुभा की हर बात मानने तत्पर थे।तेरहवीं के दिन सुबह से शुभा की तबीयत बिगड़ने लगी।कारण बहुत सारे थे।नींद ठीक से नहीं हो पा रही थी। शारीरिक थकान भी थी। ब्लडप्रेशर अचानक से बढ़ गया।सब घबरा गए।शुभा के बच्चों को छोटे भाई ने खबर कर दी।बेटी बदहवासी में पूछने लगी कि क्या हुआ मम्मी को मामा?भाई खुद कुछ समझ नहीं पाया था।

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आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। डॉक्टर को बुलाया गया,प्रेशर बड़ा हुआ था।सभी डर कर रोने लगे।शुभा लेटे लेटे सोच रही थी कि, मन अब दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रहा।यह अनकहा दर्द कहीं जानलेवा ना हो जाए।उठकर राजा की फोटो के सामने बैठ कर फूट-फूटकर रोने लगी।पिछले बारह दिनों का दर्द,जो दिल में पत्थर की तरह जमा हुआ था,बाहर आने लगा।शाम को घर वापसी थी।सारे संस्कार निपट गए थे।ज़िंदगी कहां रुकती है?अपना परिवार,बच्चे ,काम , जिम्मेदारी वैसे ही चलते हैं।

भाभी को समझा कर उनकी मां को रहने के लिए बुलवाने की व्यवस्था भी शुभा ने कर दी।भाई के ऑफिस में भाभी को ले जाकर नौकरी की बात शुभा ने रखी।उसे तो अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी ही पड़ेगी।बंधी हुई है इस घर की चौखट से। माता-पिता ने उसी को तो चुना था,बड़ी संतान के रूप में।शुभा कमजोर नहीं पड़ सकती।उसका दर्द औरों के दर्द के आगे कम ही लगना चाहिए।यक्ष की तरह रक्षा करेगी अपने भाई-बहनों और भाभी की। दादा-दादी के बनाए इतने बड़े घर में अनगिनत यादें जुड़ी हैं।जाते समय भाभी को वचन भी दे आई शुभा”जब भी मेरी जरूरत पड़े,बुलाना।मैं तुम्हारे पास खड़ी रहूंगी।”

इधर राठौर भाभी ने फ़ोन पर बताया कि स्नान बहुत अच्छे से हो गया।बनारस भी दर्शन कर लिए। दुर्घटना के एक दिन पहले ही वापस पंहुचे थे वे लोग।भाभी ने शुभा के नाम से दो डुबकी लगा ली थी।दीप दान भी कर दिया था।शुभा की कुंभ यात्रा संपूर्ण हुई।

शुभ्रा बैनर्जी 

अनकहा दर्द

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