धर्म और मजाक, – गोविन्द गुप्ता

रितु की नई शादी हुई थी अपने पापा की एकलौती संतान थी तो नखरीली ज्यादा थी ,

ससुराल में सास और ससुर धार्मिक प्रवत्ति के थे,

शादी के बाद जब पहली बार घूमने की बात आई तो ससुर ने कश्मीर या हिमांचल जाने कहा,

तो रितु बोल पड़ी हम तो वहाँ हर जगह घूम चुके है अब किसी नई जगह जाना है,

हम केदारनाथ जाएंगे सुना है बहुत अच्छी जगह है,

एक हफ्ते रुकेंगे इंज्वाय करेंगे,

तो ससुर रामलाल ने कहा बेटा वह हमारे धार्मिक महत्व के स्थल है,

वहाँ शुद्ध मन से ध्यान लगाने व शिवजी की भक्ति करने का स्थान है इंज्वाय का नही,

रितु बोल उठी हम तो वही जाएंगे,इतने लोग क्या सिर्फ भक्ति करने ही जाते है,

फिर क्यो होटल बनाये गये वहां सब कुछ तो उपलब्ध होता है,

यदि सिर्फ पूजा या भक्ति होती तो आश्रम होते होटल नही पापा,

आप यही धर्म कर्म करो हंमे तो जाना है,

रामलाल चुप हो गये बेटे रतन से कहा जो वहू कहती है करो,,


तुम दोनों की खुशी में ही हमारी खुशी है,

रतन ने हेलीकॉप्टर से दो टिकिट बुक कर दिये एक हफ्ते तक रुकने का कार्यक्रम था,

केदारनाथ मंदिर के पास ही एक आलीशान होटल में शानदार कमरा दोनो का इंतजार कर रहा था ,

दोनो फ्रेश होकर आराम करने लगे तब तक शाम की आरती होने बाली थी,

अचानक घण्टियों शंख के स्वर गूंजने लगे तो रितु का मूड खराब हो गया उसने निजी स्टीरियो को बजा दिया जो साथ ले गई थी,

और डीजे जैसे गाने बजने लगे ,

पूरी रात दोनो कमरे में ही रहे ,

सुवह पुनः पांच बजे घण्टी व शंख बजने लगे तो नींद खुल गई ,

झुंझला उठी रितु कहाँ आ गये न रात में सोने देते न सुवह देर तक,

उठकर बाथरूम में अपना स्टीरियो बजाकर स्नान करने लगी और नहाने के बाद रतन को जगाया दोनो तैयार होकर वाहर निकल पड़े,

चमकदार धूप चोटियों पर सोने जैसी लग रही थीं,

वर्फ़ ही वर्फ़ से लदी पहाड़ियों को देखकर मन खुश हो गया रतन ने कहा आओ मन्दिर चले तो रितु बोल उठी एक हफ्ते रुकना है अंतिम दिन कर लेंगे दर्शन,

तब तक नजारों का दर्शन करने दो,


धीरे धीरे एक हफ्ता बीत गया पर रितु मन्दिर नही गई वह चोटियों को ही निहारती रही,

इस एक हफ्ते में खूब इंज्वाय किया रतन और रितु ने ,

अंतिम दिन जबरदस्ती जब रतन ने कहा कि घर चलकर प्रसाद तो दिखाना ही होगा तो मन्दिर चलना ही होगा,

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रितु तैयार हो गई और दोनो मन्दिर में गये उसी समय घनघोर बादलों ने पूरे इलाके को घेर लिया औऱ भयंकर। वारिश शुरू हो गई,

अचानक तेज शोर हुआ सभी भागने लगे ,

देखते ही देखते मन्दिर में भी पानी भरने लगा,

रितु और रतन दोनो ने शिवलिंग के पास के घण्टे को पकड़ लिया ,

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कमर तक पानी आने के बाद जीवन की आस छूट चुकी थी क्योकि वाहर से लाशे अंदर बहकर आ रही थी,

रितु के होश ठिकाने आ चुके थे उसे ससुर रामलाल की बात याद आ रही थी ,

की यहां सिर्फ भक्ति और ध्यान के लिये आते है,

वह भोलेनाथ का ध्यान करने  लगी बड़बड़ाने लगी बाबा हमने आपके इस स्थल को अपवित्र किया है,

हंमे छमा कर दे जीवन मे कभी भी इस तरह की गलती नही होती हम हर वर्ष आएंगे पर सिर्फ आपके दर्शन और पूजन हेतु,,


धीरे धीरे पानी उतर गया और मिट्टी से सन गये दोनो हांथो से खून निकलने लगा था,जंजीर को पकड़ने के कारण,दोनो कीचड़ से होते हुये मन्दिर से वाहर निकले देखा तो लाशें ही लाशें थी ,

कोई पैर के नीचे आ जा रहा था,कोई लूट रहा था गहनों को,लाशों से,

ह्रदय विदारक द्र्श्य था दोनो एक टीले पर जाकर बैठ गये,

देखा तो होटल का कोई पता नही था सारा सामान फोटोग्राफ सब मोवाइल व कैमरे में ही थे जो सब होटल के साथ ही ख़त्म हो गये,

इतने में सेना के हेलीकॉप्टर ने सीढ़ी नीचे गिराई दोनो चढ़कर बापस घर पहुंच गये,

हाथ मे था तो दान में मिली सामिग्री जो पीड़ितों को दी गई थी,और एक पानी की बोतल,

घर पहुंचते ही रितु ससुर रामलाल के पैरों में गिर पड़ी और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने की कसम खाई,,,

 

कहानी में कोई कैजुअल्टी इसलिये नही दिखाई कि हमने यह दिखाने का प्रयास किया कि ईश्वर आपकी गलती को मॉफ भी कर देता है,,,पर सबक तो लो

गोविन्द

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