खिलाड़ी – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

  “कहाँ पर वर्क कर रही हो..,मतलब किस कंपनी में…..”नितिन के फ्रेंड अमित ने पूछा, तो लतिका की आँखों में एक अनकहा दर्द उभर आया, लेकिन अपने को संभाल कर मुस्कुरा कर बोली “कहीं नहीं….”…।.रसोई में आ आँखों के किनारे लटके उस बूंद को साफ कर ली, जो अक्सर उसकी आँखों के कोर पर लटक आते.., जो असहायता से उपज जाते.., एक विवशता को मौन स्वर देते।

   “पर लतिका तुम इतनी पढ़ी -लिखी हो , फिर घर में रह कर अपनी प्रतिभा क्यों गंवा रही “अमित हैरान था, एक बेहतरीन प्रतिभा होकर भी लतिका सिर्फ घर तक सीमित हो गई,लतिका, नितिन और अमित सहपाठी थे, अमित का सिलेक्शन विदेशी कंपनी में हो गया था, जबकि लतिका की अलग और नितिन की अलग… बड़ी कंपनी में.., .”अमित कुछ समय के लिये भारत आया तो अपने पुराने सहपाठी नितिन और लतिका से मिलने का लोभ न रोक सका।

  . “अरे भाई, लतिका का पति इतना कमाता है, उच्च पद पर है तो लतिका को नौकरी करने की क्या जरूरत है “नितिन ने गर्वित हो कहा।

    “सवाल तेरे ज्यादा कमाने का नहीं है, सवाल लतिका के आत्मसंतुष्टि की है, उसके वजूद की है, “अमित थोड़ा संजदिगी से बोला।

लतिका पढ़ने में ही नहीं, हर क्षेत्र में उससे और नितिन से आगे थी, अमित भी लतिका को मन ही मन पसंद करता था लेकिन लतिका का झुकाव नितिन को ओर देख, उसने अपने कदम पीछे खींच लिये…., विदेशी कंपनी का ऑफर भी इसी लिये स्वीकार किया था, और आज उसी लतिका का ये हश्र देख उसके दिल में अनकहा दर्द उभर आया…. काश लतिका उसकी होती तो आज उसकी ये हालत न होती…।

     “आत्मसंतुष्टि…. हा… हा…, अमित औरतों की संतुष्टि घर -परिवार में ही होती बाहर नहीं,”

     “तुझे क्या हो गया नितिन, कल तक जो स्त्रियों की प्रगति की बातें करता था, आज इतनी पिछड़ी सोच रखता है…”

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   . अमित की बात सुन नितिन संभल गया…, “क्या यार… तू भी सीरियस हो गया… लतिका का ही मन नहीं था नौकरी करने का, फिर मैं लतिका को कोई कमी नहीं रहने देता..”.।

        तब तक लतिका ने खाना टेबल पर लगा दिया, दोनों दोस्तों को बुलाने आई, तो नितिन की कही बात उसके कानों में पड़ी, मन हुआ चीख कर कह दे,”झूठ बोल रहा नितिन ..”लतिका की आँखों के सामने तीन साल पहले की वो घटना सजीव हो उठी, लगता जैसे कल की बात हो….।

      “लता… अभी तो कुछ दिन मुझे हर पल तुम्हारे साथ बिताना है….,तुम अपनी कंपनी का ऑफर छोड़ दो और मेरी कंपनी में अप्लाई करो, वहाँ आसानी से हो जायेगा, फिर हम साथ ऑफिस जाया करेंगे,”

     लतिका नितिन का प्यार देख, कुछ कह न सकी, ऑफर लेटर को रिजेक्ट कर दी , शादी के दो महीने बाद जब उसने नितिन की कंपनी ज्वाइन करना चाहा तो नितिन ने फिर उसे मना कर दिया, अभी रुक जाओ.., ऐसे ही पिछले तीन साल से नितिन उसे किसी न किसी तरह जॉब ज्वाइन करने से रोक रहा था….।

     धीरे -धीरे लतिका को समझ में आने लगा नितिन पढ़ -लिख कर अच्छी नौकरी हासिल कर लिया लेकिन सोच के पिछड़ेपन से निजात नहीं पा सका। लतिका उससे ज्यादा कमाये या उससे आगे निकल जाए, और वो आधुनिक पति बन उसे सपोर्ट करता रहे… न… न… नितिन का दिल इतना बड़ा नहीं है.. वो एक स्त्री को अपने से आगे देखे… भले ही वो बीवी बनी उसकी प्रेमिका ही क्यों न हो….।

  लतिका नितिन की फितरत पहचान चुकी थी, पर उसने तमाम विरोधो को दरकिनार कर नितिन से शादी की, और अपनी शादी बचाने के लिये उसने मौन साध लिया।

         “लाजवाब खाना बनाने में कोई लतिका की बराबरी नहीं कर सकता..”तृप्ति की एक डकार लेते नितिन बोला,

  .”खाना ही क्यों लतिका तो हर चीज में सुपर है… तुम भूल गये लतिका के सुनाये गजल कॉलेज में कितना चर्चित होते थे ..”अमित बोला।

         नितिन वाशरूम गया तो अमित ने धीरे से पूछा,”तुम विरोध क्यों नहीं करती…, क्यों अपनी प्रतिभा को मिट्टी में मिलाने पर तुली हो… अपने हक़ की लड़ाई तुम्हे खुद करनी पड़ेगी…, अपनी मौनता को आवाज दो…..”,

          थोड़ी देर बाद अमित चला गया, नितिन गहरी नींद सो गया लेकिन लतिका की आँखों में नींद नहीं थी…, अमित की बात उसके कानों में गूंज रही थी, “अपने हक़ की लड़ाई तुम्हे खुद लड़नी पड़ेगी…..,

      सुबह नितिन तैयार हुआ तो देखा लतिका भी बाहर के कपड़ों में रेडी थी…

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       .”सहेलियों संग शॉपिंग जा रही हो क्या..”हँस कर पर्स निकालता नितिन बोला…

           “नहीं, मैं सहेलियों संग नहीं, अपने पुराने ऑफर लेटर वाली कंपनी में जा रही हूँ, बस अब मैं नहीं रुक सकती,…….।

           “रुक जाओ लतिका… तुम्हारा ये कदम, हमारे दाम्पत्य जीवन को खतरे में डाल देगा…”

            “बस अब बहुत हो गया…. मैंने तुम्हारे हर निर्णय को माना लेकिन अब और नहीं…..,अब मैंने निर्णय ले लिया नितिन “कहते लतिका बाहर निकल गई।

    नितिन समझ गया,उसका खेल खत्म ..अब वो लतिका को रोक नहीं पायेगा .., कहाँ तो वो अपने को बेहतरीन खिलाड़ी समझ रहा था।

   शाम अपने जॉइनिंग लेटर के साथ लतिका लौटी तो नितिन को इंतजार करते पाया, मुँह फेर लतिका वाशरूम में मुँह -हाथ धोने चली गई, लौटी तो टेबल पर चाय के दो कप लिये नितिन बैठा था,

  .”सॉरी लतिका, मुझ से गलती हो गई, मैंने आज दिन भर मनन किया, आखिर तुम्हे क्या कमी जो तुम नौकरी करना चाहती हो .., फिर समझ में आया…प्रतिभा को रोका नहीं जा सकता, इतने समय तक तुम कुछ न कर पाने के दंश से कितना बेचैन होती होगी ..,मुझे माफ कर दो, मुझे छोड़ कर मत जाओ…”

      “नितिन मैं वो खिलाड़ी नहीं हूँ जो मैदान छोड़ कर भाग जाए…छोड़ने से अच्छा मैं लड़ कर अपनी मंजिल पाने में विश्वास करती हूँ…,”आज लतिका की आँखों में अनकहा दर्द नहीं, आत्मविश्वास का दीप जल रहा था, जिसकी झिलमिलाहट से उसका चेहरा चमक रहा था।

                      —–संगीता त्रिपाठी 

#अनकहा दर्द

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