बहुत सुस्त और गमगीन सा माहौल लग रहा था । घर – आँगन सजे हुए होकर भी मायूसी की कहानी कह रहे थे , अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था । न जाने इतने रौनक वाले घर से हँसी ठिठोली अचानक कहाँ गायब ।प्रभात जी ने रिटायरमेन्ट से पहले ही इस घर को बड़े शौक से बनवाया था और देविका जी ने अपने सजाने की कला से घर में जान डाल दिया था । दो प्यारी बेटियाँ रूपल और रूपम थीं । रूपल की शादी बहुत धूमधाम से सम्पन्न घर में हुई थी ।
रूपम ने अपने दोस्त अनुराग से शादी करने की इच्छा जताई । लेकिन प्रभात जी इस मामले में बहुत सख्त थे । कुछ सख्ती उनके स्वभाव में थी कुछ उन्हें विरासत में मिली थी । पिताजी के जीवित होते हुए वह अपनी बेटी के इस हरकत के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे । हालांकि अब के समय में अंतर्जातीय विवाह अपराध तो नहीं है लेकिन सोच पर बस ज़िद हावी थी ।
देविका जी ने और रूपल ने भी अपनी ओर से खूब दाव लगा लिया लेकिन किसी की एक नहीं सुनी प्रभात जी ने । रूपल के पति मनीष ने एक आखिरी कोशिश की तो एक पल के लिए प्रभात जी नर्म होकर पिघलना ही चाह रहे थे तब तक पिताजी ने कह दिया…”तुम्हारे लिए अगर परिवार की इज्जत का मोल नहीं है तो मेरे लिए तुमलोगों का मोल नहीं है । पर असलियत कहीं न कहीं ये भी थी कि जिस परिवेश में वो पले थे उसका मान भी रखना था और घर के विरुद्ध भी नहीं जा सकते थे ।
देखते – देखते महीने बीत गए । आए दिन बस इन्हीं बातों को लेकर कलह – क्लेश होते रहते । देविका जी और प्रभात जी को दूसरे जाति से ज्यादा कठिन समस्या ये लग रही थी कि परिवार में उसके मम्मी – पापा नहीं हैं तो सारी जिम्मेदारी खुद को देखनी पड़ेगी। पर रूपम की आँखों पर अनुराग के नाम की पट्टी लगी हुई थी । वो अनुराग के अलावा कुछ नहीं देख पा रही थी ।रूपम घर की स्थिति देखकर समझ गयी थी कि उसे अकेले ही खुद के लिए कदम उठाना पड़ेगा । एक दिन उसने घरवालों के लिए चिट्ठी लिखी और मौका देखकर शहर के बाहर मंदिर में अनुराग से शादी कर लिया ।
घर के अंदर रिश्तेदारों में बात फैल गयी थी । पुलिस को खबर कर दिया गया । जल्दी ही अनुराग के गाँव वाले घर को ढूंढ लिया गया जहाँ वो ठहरे हुए थे ।जब रूपल अपने पति के घर से मायके आ गयी तो मम्मी का सूजा हुआ चेहरा देखकर उसने मम्मी को दिलासा दिया…”मम्मी ! हम दोनों साथ मिलकर रूपम से मिलने चलेंगे, आप अपनी तबियत खराब मत करिए । रूपल के पति मनीष ने भी सांत्वना दिया…”हम मिलकर पापा से बात करेंगे मम्मी जी ! परेशान मत होइए , अगर पापा मना करेंगे तो मैं आपलोगों को मिलाऊंगा, भरोसा रखिये । इतना सुनते ही जैसे देविका जी के चेहरे की चमक बढ़ गयी और होंठो पर वापस मुस्कान तैर गयी ।
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एक महीने बाद..रूपम के दादाजी का देहांत हो गया । प्रभात जी काफी सुस्त से रहने लगे थे । रूपम अपने पति अनुराग के साथ घर मिलने आयी, देविका जी उसे गले लगाकर फूट पड़ीं । प्रभात जी ने सुखी रहो कहकर मुँह फेर लिया । बहुत समझाने की कोशिश की देविका जी और रूपल ने लेकिन प्रभात जी ने मना कर दिया उसे घर आने को । मौत की खबर सुनकर बहुत से परिवार रिश्तेदार आए थे सबने अंदर अंदर कानाफूसी शुरू कर दी , पर देविका जी और रूपल ने मुँह पर चुप्पी साध ली । तेरहवीं के बाद सब अपने अपने घर को रवाना हो गए । रूपम ने भी सजल आँखों से विदाई ली और अगली बार मिलने का वादा करते हुए चली गयी ।
बीच – बीच में फोन से बातें हो जाती थीं रूपल और देविका जी की आपस में । देखते – देखते कई महीने निकल गए । एक दिन रूपल ने देविका जी को गुड न्यूज देने के लिए फोन किया तो देविका जी ने फोन नहीं उठाया । पापा और रूपल को भी कॉल किया तो किसी का जवाब नहीं आया । घबराहट से रूपम की धड़कने बढ़ने लगीं । दो दिन बाद कॉल आया रूपल के पति मनीष का तो पता चला देविका जी को सीरियस अटैक आया है और वो अस्पताल में भर्ती हैं । अनुराग के साथ चलने की इच्छा जताई रूपम ने पर वो डॉक्टर से पूछी तो पता चला
अभी ट्रेवल नहीं करना है । रूपल को मानो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति थी , उसके आँखों के आगे सारे खुशियों वाले पुराने दृश्य तैर गए , खुद को इसका जिम्मेदार मानते हुए उसने खाना पीना बंद कर दिया । रूपल ने बहुत समझाया मम्मी ठीक हो जाएंगी पर रूपम अंदर से टूट रही थी । उसने रूपल को बताया कि वो सात महीने गर्भ से है और उसका यूट्रस नीचे की ओर आ गया है उसे मम्मी के प्यार और साथ की जरूरत है । रूपल ने पापा को भी रूपम की स्थिति बताई तो प्रभात जी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा…”कुछ दिनों की बात है रूपम..मम्मी ठीक हो जाएंगी तो तुम्हारे पास जरूर आएंगी । रूपम का मन तरस के रह गया ।
उस दिन आठवां महीना लगा था । रूपम डॉक्टर केबिन में अल्ट्रासाउंड कराने ही गयी थी तो अनुराग को प्रभात जी का फोन आया…देविका जी नहीं रहीं अनुराग बाबू ! अनुराग का शरीर लगा जैसे शिथिल सा हो गया । ऐसा लग रहा था गले से थूक भी नहीं घोंटा जा रहा। फोन ही काटने वाला था तो प्रभात जी की आवाज़ आयी..”रूपम को मत बताइएगा, जाने वाली तो चली गयी लेकिन रूपम की सेहत के लिए खतरा हो जाएगा , आने वाले का इसमें क्या कसूर है ?
जी पापा जी ! बोलकर अनुराग फोन रख दिया । अभी उसके दिमाग में उहापोह चल ही रहा था कि प्यार से रूपम को बता दूं बहलाते हुए भूमिका बनाकर ताकि उसको बाद में ज्यादा दुःख न पहुँचे। तब तक डॉक्टर ने आकर कहा…”प्री मेच्योर डिलीवरी के चांसेज बन रहे हैं, बी.पी बहुत ऊपर नीचे हो रहा है । इतना सुनते ही अनुराग ने अपनी सोच को लगाम दिया और रूपम का हाथ पकड़ के ले जाने लगा । घर पहुँचकर रूपम ने वापस अनुराग को मम्मी को फोन लगाने कहा । अनुराग के मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे । बड़ी मुश्किल से उसने कहा…”थोड़ा आराम करो, फिर बात कर लेना ।
कुछ सामान लेने अनुराग बाजार गया । घबराहट से रूपम का पसीना छूट रहा था । रूपल ने रूपम को फोन करके बहुत ढाढस बंधाया, दिलासा दिया। तब जाकर वह थोड़ी शांत हुई । रूपम ने रूपल से पूछा..”आवाज़ क्यों इतनी भारी है दीदी ? तुम ठीक तो हो ? रूपल के मुंह से निकल गया…”मम्मी हमें छोड़कर चली गईं रूपम ! अचानक से जैसे सन्नाटा हो गया । दहाड़ मार के रोने लगी रूपम । ये तुम क्या बोल रही हो दीदी ? मैंने क्या गलती किया था जो मम्मी ने मुझे इतनी बड़ी सजा दी , मुझे इतने कीमती समय मे भी गले नहीं लगाया । ये सब कैसे हो गया दीदी ।
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रूपल का गला भर आया वो कुछ बोलने के हाल में नहीं थी । उसने ज़ोर से लंबी सांस लेते हुए फोन काट दिया । मम्मीsssssss…मम्मीssssss..क्यों मुझे छोड़कर चली गयी , कभी नहीं मुझे आप रुलाती थी मम्मी । आज ऐसे शरीर में ऐसे हालात में मुझे क्यों अकेला छोड़ दिया ? ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी रूपम । अब अनुराग घर पहुंचा तो रूपम को अशांत देखकर उसकी पीठ सहलाते हुए बोलने लगा..”घबराओ मत रूपम ! सब ठीक होगा। रूपम ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा..”आपको पता था अनुराग ? मुझे क्यों नहीं बताया ?
ज़ोर से रूपम ने अनुराग के सीने पर हाथ पीटते हुए कहा..”क्या ठीक होने के लिए बचा ? मेरी कीमती चीज तो मुझसे छीन गयी । अनुराग ने रूपम के आँसू पोछते हुए कहा…” चलो खा लो, नई ज़िन्दगी के बारे में सोचो । आने वाले के लिए तो खाना ही होगा जो बीतना था बीत गया ।
रूपम के आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे । रिश्तेदारों के भी फोन लगातार आ रहे थे । आँखों का शैलाब तो सबको दिख रहा था । पर # अनकहा दर्द तो सिर्फ रूपम ही महसूस कर पा रही थी । सब सांत्वना देने में लगे हुए थे । उसके हृदय में जो # अनकहा दर्द था उसे कोई नहीं टटोल पा रहा था और उसके अलावा कोई नहीं महसूस कर सकता था ।
अनुराग ने प्लेट में दाल रोटी और सब्जी निकाल के दिया । रूपम थाली किनारे रखकर घर के मंदिर के पास बैठ गयी और सुबक – सुबक कर रोने लगी ।
रूपम के पीठ पर हाथ फेरते हुए अनुराग बार बार पुचकार के खाने का इशारा कर रहा था । रूपम की तकलीफ है कि कम ही नहीं हो रही थी । रूपम को गले से लगाते हुए अनुराग ने रूपम का पेट छूकर कहा..एक कीमती चीज तो तुमने खो दी पर ये जो एक कीमती चीज है इसकी हिफाज़त के लिए तो सोचकर खा लो और अनुराग ने एक निवाला लेकर रूपम को खिला दिया ।
देविका जी के तेरह दिन वाले सारे क्रिया कर्म पूरे होने पर दो दिन के बाद रूपम को तेज दर्द उठा और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया । अनुराग वार्ड से बाहर बैठ के इंतज़ार ही कर रहा था कि आधे घण्टे बाद नर्स छोटी सी रोती हुई बच्ची को लेकर आई और अनुराग को दिखाकर बोली..”रूपम के यहाँ से आप हैं ? अनुराग ने हाँ में सिर हिलाया और नर्स ने एक झलक दिखाते हुए कहा.”लड़की हुई है । अनुराग के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और खुशी के मारे उसका रोम – रोम मुस्कुरा रहा था । उसने थोड़ी देर बाद धीरे से जाकर रूपम को देखकर उसका हाल पूछा और उसका माथा चूम लिया ।
वार्ड से बाहर आकर उसने प्रभात जी को फोन करके ये खबर दी । जहाँ पूरे घर में दुःख का माहौल था अब वही माहौल बच्ची के किलकारी से खुशियों में बदल गया था ।
रूपल , मनीष और प्रभात जी सब साथ में अस्पताल बच्ची को देखने गए । रूपम जोर से पापा को पकड़ के उनकी बाहों में छिपकर रोने लगी । प्रभात जी ने खुद से अलग करते हुए कहा…”जो होना था हो गया बेटा ! मुझे माफ़ करना । अब इस नन्हीं सी जान का स्वागत करो ।
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रूपम के चेहरे पर बड़े दिनों बाद मुस्कान लौटी । गमगीन माहौल अब खुशनुमा हो गया था ।
रूपम ने बच्ची को प्रभात जी के गोद में दिया । प्रभात जी देखते ही बोले…”ये तो बिल्कुल देविका लौट आयी हो जैसे । “हाँ एकदम मम्मी के जैसी गोरी और लंबी उंगलियाँ भी हैं । रूपल ने मुस्कुराते हुए कहा और प्रभात जी ने बच्ची का माथा चूम लिया ।
(अर्चना सिंह)
#अनकहा दर्द
मौलिक, स्वरचित