करण ने कार में एफ एम ऑन कर दिया और गाना गूंज उठा, ” हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.. कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता..” ये गाना सुनकर सूनी सूनी आंखों से कार की खिड़की के बाहर ताकती सोनाली ने पीठ पीछे टिकाकर आंखें बंद कर लीं और सोचने लगी.. सच ही तो है दुनिया में सब कुछ अपने मन का कब मिल पाता है..
कुछ तो मिल ही नहीं पता है और कुछ मिलकर भी ऐसी छूट जाता है की जीवन भर का घाव दे जाता है…लगा जैसे मन के घाव फिर से रिसने लगे। उस दुर्घटना के बाद से अब उसका कहीं भी आने जाने का मन नहीं करता परंतु अभी सासू मां और करण की ज़िद पर वह उन दोनों के साथ बाहर निकल आई है।परंतु मन का सूनापन भी उसके साथ-साथ हर कदम पर साए की तरह साथ चलता है। बीती बातों को एक पल के लिए भी कहां भूल पाई वह! बंद पलकों में अतीत में घटित सारे दृश्य जैसे पुनः जीवंत हो गए।
करण जैसा जीवन साथी पाकर और मां के जैसी सास पाकर जैसे उसका जीवन धन्य हो गया था। और करण जैसे दीवाना सा हुआ उसके आगे पीछे डोलता रहता था। दिन सोना और रातें चांदी हो गई थी जैसे… विवाह के बाद सपनों की दुनिया की तरह एक साल तो जैसे फुर्र से उड़ गए।
और फिर वह दिन आ ही गया जिसकी सबको जी जान से प्रतीक्षा थी। सोनाली मां बनने वाली है, यह शुभ संवाद पाकर करण तो जैसे बावला हो गया। सोनाली को गोद में उठाकर गोल-गोल घुमाने लगा तो सासु मां ने झिड़का,
“- क्या कर रहा है.. चोट लग जाएगी उसे.. इन दिनों बहुत संभल कर रहना होता है… “
मां की बात पर करण ने हंसते हुए सोनाली को गोद से उतार दिया और मां को गोद में उठा लिया… माँ हंसते हुए मीठी झिड़कियां देती रहीं.. ” अरे छोड़ पगले.. मुझे गिरा देगा क्या..”
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सचमुच कितने प्यारे दिन थे! करण और सासू मां ने उसका ख़्याल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसके हर आराम का और हर खुशी का ख़्याल रखा जाता था। हर दिन उत्सव सा हो गया था। देखते देखते पांचवां महीना चढ़ गया। सब कुछ अच्छा जा रहा था।
उस दिन सोनाली बाथरुम से नहा कर निकली और अपने कमरे में पहुंची कि पैरों में थोड़ा पानी लगा होने के कारण उसका पांव फिसल गया। उसने खुद को संभालने के लिए कमरे में रखी हुई कुर्सी को पकड़ने का प्रयत्न किया परंतु कुर्सी उलट गई और वह पेट के बल ही गिर पड़ी। गिरने की आवाज सुनकर सासू मां दौड़ी दौड़ी आ पहुंची और उसकी हालत देखकर घबरा गई। जैसे तैसे उसे सहारा देकर उठाकर उन्होंने बिस्तर पर लिटा दिया और करण को फोन करके इस बात की सूचना दी और शीघ्र आने के लिए कहा।
परंतु वह हो गया जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। सोनाली का बच्चा नहीं बच पाया और डॉक्टर्स के अनुसार सोनाली को कुछ ऐसी अंदरूनी चोट लग गई थी जिसके कारण वह शायद अब भविष्य में कभी माँ न बन पाएगी। सारी खुशियों को जैसे ग्रहण लग गया ऐसा वज्रपात हुआ।
कलेजे पर पत्थर रखकर सब ने संतोष कर लिया और जीवन पुनः पुराने ढर्रे पर लौट आया।
परंतु सोनाली कभी सामान्य नहीं हो पाई। करण बहुत प्रयास करता कि वह उसे हँसाए.. बातें करें…तो कभी घुमाने ले जाता.. लेकिन सोनाली उदासीन ही रहती।
वह बस मौन ही घर के सारे काम निपटाती रहती और फिर बालकनी में खड़ी होकर दूर पार्क में खेलते बच्चों को निहारती रहती… कभी अपने रिक्त गर्भ को हाथों से पकड़ कर भींच लेती और गालों पर आंसू ढुलक आते। सासू मां और करण का उसे सामान्य करने का हर प्रयास विफल चला जाता। अपूर्ण मातृत्व एक गहरा घाव बनकर सोनाली के मानस पटल पर अंकित हो चुका था।
कार हल्के से झटके के साथ रुकी तो सोनाली की तंद्रा टूटी। वह मुझे मन से कार से उतरी। करण ने सोनाली का हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ा। सासू मां भी साथ-साथ चलने लगीं। करण जहां उसे लेकर आया था वह देखकर सोनाली एकबारगी ठिठक गई….” स्नेह छाया बाल सदन”… शहर के एक कोने में बसा हुआ अनाथालय..!
“रुक क्यों गई सोनाली.. आओ.. आज हमें अपने जीवन का एक बहुत ही प्यारा उपहार यहां से प्राप्त होगा जो तुम्हें माँ कहेगा.. मुझे पापा..”
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नि:शब्द सोनाली की आंखों से अविरल अश्रुप्रवाह होने लगा। करण ने हाथ बढ़ाकर उसके आंसू पोंछ दिए और कहा, “- अब रोने के नहीं मुस्कुराने के दिन है सोनाली… मैंने सदैव तुम्हारे अनकहे दर्द को तुम्हारे साथ महसूस किया है। यह दर्द मुझे भी था परंतु मुझे इस बात का ज्ञान है कि एक मां के लिए यह कितना कठिन होता है कि वह अपने बच्चों को खो दे और गोद सूनी हो जाए। परंतु अब और नहीं…
मेरे मन में यह कई दिनों से चल रहा था कि हम एक बच्चे को गोद ले लें… परंतु मैं हिचकिचा रहा था कि पता नहीं तुम्हें अच्छा लगेगा या नहीं और पता नहीं मां उसे स्वीकार कर पाएगी या नहीं… परंतु जब यह प्रस्ताव स्वयं मां की ओर से आया तो मुझे आश्चर्य मिश्रित हर्ष हुआ। मुझे बहुत गर्व है कि मैं एक इतनी सुलझी हुई माँ का बेटा हूं… माँ ने सारी रूढ़ियों को किनारे रख कर हमारी खुशियों को सर्वोपरि रखा। अब तुम बताओ.. तुम्हें हमारा निर्णय स्वीकार तो है न…”
सोनाली अब भी जड़वत खड़ी थी। करण ने उसके कंधे पड़कर उसे झकझोरा, “-बोलो सोनाली.. तुम्हें स्वीकार तो है ना..”
सोनाली अचानक फूट कर रोते हुए करण के वक्ष से जा लगी। करण की कमीज आंसुओं से तर हो गई। फिर स्वयं को संयत करते हुए सोनाली सासू मां के चरणों में झुक गई और उनके गले लग गई..”-आज आप लोगों ने मुझे जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे दिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आप लोगों का धन्यवाद कैसे करूं माँ… अब कोई नन्हा सा मेरे आंचल में भी खेलेगा.. कोई मुझे भी माँ कह कर पुकारेगा… अब भी विश्वास नहीं हो रहा कि यह सब सत्य होने वाला है.”
अचानक करण ने नाटकीयता से गंभीर होते हुए कहा, “- भई अब बंदे को कितनी देर यूं ही खड़ा रखोगी? अब अंदर भी चलो.. आगे की कार्यवाहियां भी पूरी करनी है..”
सोनाली के आंसुओं से भीगे चेहरे पर मुस्कान आ गई और सब लोग अंदर चल पड़े परिवार के नन्हे से प्यार सदस्य को लाने…. सूनी बगिया फिर से खिलखिलाने वाली थी।
निभा राजीव निर्वी
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना
#अनकहा_दर्द