” भैया एक महीने बाद अपनी निशु की शादी है आप सभी लोगों को कम से कम पंद्रह दिन पहले आना है क्योंकि आपको ही सब काम देखने है !” राजन पत्नी स्मिता के साथ अपने बड़े भाई निरंजन के घर आया और बोला।
” एक तो तुम्हारी बेटी अपनी पसंद से उस पंजाबी से शादी कर खानदान की इज्जत पर बट्टा लगा रही है ऊपर से तुम लोग उसकी शादी इतनी धूमधाम से कर सारे खानदान को ये बता रहे जैसे तुम्हे इससे कोई फर्क नही पड़ रहा कि लड़का गैर बिरादरी का है !” निरंजन थोड़े गुस्से मे बोला।
” भैया लड़का भले गैर बिरादरी का है पर निशु उसके साथ बहुत खुश रहेगी और फिर उसका परिवार भी इतना अच्छा है आप उनसे एक बार मिलिए तो सही !” राजन आदर सहित बोला ।
” तुझे बस बेटी की खुशी दिख रही खानदान की इज्जत नही ?” निरंजन जी दहाड़े।
” माफ़ कीजियेगा भैया मेरे लिए मेरे बच्चो की खुशी सबसे ऊपर है और आजकल जात बिरादरी कौन मानता है । अगर निशु ने अपने लिए गलत लड़का पसंद किया होता तो शायद मैं भी विरोध करता पर वो हर मायने मे निशु के लायक है तो सिर्फ गैर बिरादरी का होने पर मैं अपनी बेटी का दिल कैसे तोड़ दूँ ? आप अपनी बेटी के साथ ये कर चुके है और आज वो घुट घुट कर जी रही है मैं नही चाहता मेरी निशु के साथ भी ऐसा हो !”
” तुझे तो अपनी भी इज्जत की परवाह नही उसपर भी बट्टा लगाने पर तुला है पर हम इस पाप के भागीदार नही बनेगे । अगर तुझे खानदान , जात बिरादरी की परवाह नही तो हम इस शादी का हिस्सा नही बनेगे !” निरंजन ने फैसला सुना दिया।
” भैया मेरे बच्चो को हमारी बिरादरी ने नही मैने पाला है उनके हर सुख दुख का भागी मैं हूँ तो अब बिरादरी के कारण उसकी खुशियां कैसे छीन लूं ये पाप मुझसे भी ना होगा। मेरी बेटी ने कोई गलत कदम उठाने की जगह अपना फैसला मुझे बताया है तो मैं भी उसके साथ हूँ । आप आएंगे तो हम सबको खुशी होगी !” ये बोल रजत हाथ जोड़ वहाँ से चला गया । पीछे छोड़ गया ऐसे दंभी बाप को जिसने बिरादरी की इज्जत के लिए अपनी बेटी को नर्क मे धकेल दिया था पर अभी भी दम्भ नही गया ।
संगीता अग्रवाल
#बट्टा लगना