जैसी करनी वैसी भरनी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ सुना तुमने वो शेखर जी के बेटे बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया… एक साल पहले तो बीबी चल बसी अब बेटे बहू ने भी मुँह फेर लिया… भगवान जाने अब वो कहाँ जाएगा ?” चिंतित स्वर में रमाकान्त जी ने पत्नी उमा से कहा 

“ये बात अब साफ़ हो गई है कि जो अपने माँ बाप का दिल दुखाते है भगवान उन्हें सज़ा देते हैं… और अब शेखर जी वही कष्ट भोगेंगे जो उन्होंने अपने माता-पिता को दिया था ।” उमा जी का लहजा सख़्त भी था और उन्हें शेखर जी के लिए जरा भी हमदर्दी नहीं थी

“ ये कैसी बातें कर रही हो उमा कल को कहीं हमारे बच्चों ने हमारे साथ ऐसा किया तो …. नहीं नहीं हम ऐसा कुछ नहीं होने देंगे… सुनो एक बार इंसानियत के नाते शेखर जी को घर बुला कर चाय नाश्ता करवा दो….

वो सुबह से चुपचाप अपने घर के बाहर बैठे कुछ बुदबुदा रहे हैं… पड़ोसी होने के नाते हम इतना तो कर ही सकते हैं ।” रमाकान्त जी की भावनाओं को समझते हुए उमा जी ने हामी भर दी 

  रमाकान्त जी शेखर जी का हाथ पकड़ कर घर ले आए… उनका उतरा चेहरा….माथे पर परेशानी की लकीरें साफ़ दिख रही थी ।

“ ये लो शेखर पानी पी लो… उमा हमारे लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था कर रही है थोड़ा खा लो फिर मुझे बताओ तुम इतने परेशान क्यों हो ? “ रमाकान्त जी ये जताना नहीं चाहते थे कि उन्हें भनक लग गई है कि शेखर को उसके बेटे बहू ने घर से निकाल दिया 

शेखर जी किसी तरह चाय नाश्ता कर तो लिए पर बार बार भगवान से माफ़ करना की गुहार लगा रहे थे ।

“ क्या हुआ है शेखर … तुम सुबह से परेशान दिख रहे हो घर के अंदर भी नहीं जा रहे हो बाहर बैठ कर क्या बड़बड़ा रहे थे?” रमाकान्त जी ने प्यार से उनके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा 

शेखर जी जो पन्द्रह साल से रमाकान्त जी के पड़ोसी रहे हैं…. आते जाते बातचीत भी होती रहती थी ऐसे में उन्हें इस हाल में देख उनसे रहा नहीं जा रहा था ।

“ रमाकान्त कमला के जाने के बाद समझ आ रहा है कभी भी अपने माता-पिता का दिल नहीं दुखाना चाहिए था….।” बुझे मन से शेखर जी ने कहा 

“ हाँ भाई ये बात तो सौ फ़ीसदी सही है पर अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो तुम घर नहीं जा रहे?” रमाकान्त जी ने पूछा 

“क्या बताऊँ रमाकान्त…. जैसी करनी वैसी भरनी का फल मिल रहा है….ब्याह के बाद कमला के अक्खड़ स्वभाव ने घर में कलह करना शुरू कर दिया उसे मेरे माता-पिता के लिए कोई भी काम करना पसंद नहीं था…अपने मायके में कभी कोई काम नहीं की थी तो बस उसका हर दिन का रोना रहता सब कामों के लिए सहायिका रख लो पर मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी

और ना माँ बाबू जी इन सब का वहन करने में सक्षम थे…माँ को तो रसोई खुद करना पसंद था वो कमला से कहा करती थी चलो बहू मिलकर बना लेंगे ….तुम बात बात पर नाराज़ होकर कमरे में बंद मत रहा करो…. ये हमारा घर है हम अच्छे से मिलकर सब ठीक कर सकते हैं पर कमला माँ को ही सुना देती …

आपको पसंद है तो कीजिए पर मुझसे चार लोगों का खाना नहीं बनेगा…. कुछ दिनों तक माँ ने ही हमसब का खाना बनाया फिर जब कमला गर्भवती हुई उसने तो हाथ पैर बांध ही लिए एक काम नहीं करती और उन दिनों माँ की तबियत ख़राब रहने लगी….मैं परेशान हो इन सब में पीसने लगा….

कमला पर ग़ुस्सा करता तो वो चार बात सुना देती इन सब का ग़ुस्सा मैं माँ पर निकालने लगा… ये सब देख कर पिताजी ने कहा ये हर दिन का झगड़ा बर्दाश्त नहीं हो रहा… सबकी बीबी अपना घर सँभालती ही है पर हमारी बहू के नखरे कम ही नहीं होते…ऐसा कर हम अपनी रसोई अलग कर लेते है….

मैं जैसे तैसे कर के हमारा खाना बना भी लूँगा पर बहू के लिए इस उम्र में ना मुझसे कुछ होगा ना तेरी माँ से तुम दोनों अपना देख लो… ये सब सुन कर माँ बहुत रोई थी… एक ही तो बेटा है हमारा एक ही छत के नीचे अलग-अलग रसोई.. कैसी बात कर रहे हो जी… ना ना अब जैसी भी है बहू है हम निभा लेंगे….

माँ बहुत मिन्नतें की … ये बात जब कमला को पता चली वो तो झट से इसके लिए तैयार हो गई…. उसे बस अपने सास ससुर से अलग होना था और पिताजी शायद उसकी मंशा जान कर ही ये फ़ैसला लिए थे… अब कमला और ज़्यादा मनमानी करने लगी थी…. खाने पीने का परहेज़ नहीं करती थी….

दो महीने भी नहीं हुए थे एक दिन अचानक उसका गर्भपात हो गया…. माँ ने तब उसका बहुत ध्यान रखा…. वक़्त पर माँ ही खाना बना कर खिलाया करती थी फिर भी कमला को जरा सा भी एहसास नहीं हुआ कि वो उसके लिए क्या कुछ कर रही….एक दिन मैंने कमला से कहा हम पहले की तरह साथ में रहते हैं

एक ही छत के नीचे ये अलग रसोई का क्या मतलब पर वो मेरी बात सुनने से पहले ही बोल पड़ी…देखो कान खोलकर सुन लो…ना तो मुझे उनके साथ की ज़रूरत है ना मुझे उनकी हमदर्दी चाहिए…वो अपना देखे हम अपना देख लेंगे… अपने माता-पिता के लिए इतनी हमदर्दी दिखाने की ज़रूरत नहीं है पता नहीं कमला किसी मिट्टी की बनी थी

कई बार जी चाहा उसे छोड़ दूँ घर पर रहना दुर्भर होने लगा था समय गुजरने लगा और अब हमारी ज़िन्दगी में केशव आ चुका था…..माँ केशव से बहुत लाड करती थी… पर कमला को पसंद नहीं आता था वो दादा दादी के साथ रहे …. वो कहती मेरे बेटे को पता नहीं कौन सी पट्टी पढ़ा दे इसलिए उनसे दूर रखती थी पर केशव दादा दादी के और क़रीब आता जा रहा था

इसी बीच मेरी माँ बहुत बीमार हो गई…. उसकी सेवा करने के लिए कमला से कहता तो वो बोलती मैं कोई नौकरानी नहीं हूँ…..और फिर…।” कहते कहते शेखर थक गया था वो पानी पीने के लिए गिलास उठाया ही कि उसके हाथ से गिलास गिर कर टूट गया 

“ माफ़ कर दो … माफ कर दो… अब से ऐसा नहीं होगा।” डरते डरते शेखर ने कहा

“ कोई बात नहीं शेखर काँच का गिलास था गिर कर टूट गया नया आ जाएगा पर तुम इतना डर क्यों रहे हो…. चलो ये बताओ फिर क्या हुआ था?”रमाकान्त ने पूछा 

“ कमला माँ को ऐसी हालत में छोड़कर केशव को लेकर मायके चली गई…. माँ केशव के लिए जितना रोई उससे ज़्यादा केशव दादी के लिए रो रहा था … महीने भर के भीतर माँ चल बसी…. अब पिता की सारी ज़िम्मेदारी मेरी थी कमला को ये सब नागवार गुजर रहा था….

वो पिताजी को ना वक़्त पर खाना देती ना उनके साथ केशव को खेलने देती…. पिताजी अकेले में खूब रोते थे …. मैं जो जरा पिताजी के साथ दो घड़ी बैठना चाहता तो कमला मुझे किसी ना किसी बहाने बुला लेती पिताजी माँ के जाने के बाद बहुत अकेले हो गए थे…. केशव उन्हें देख देख कर बड़ा हो रहा था और उसके अंदर अपने माता-पिता के लिए जहर भर रहा था इसका पता ही नहीं

चला… जब पिताजी हमें छोड़कर गए तब बीस साल के केशव ने हमें जी भर कर कोसा…. उसकी नज़रों में हम अपने माता-पिता को दुःख देने वाले कारक नज़र आते थे… कमला बहुत चाहती थी केशव उसे अच्छी माँ माने पर केशव की नज़रों में तो हम उसके दादा दादी के गुनाहगार थे….

दो साल पहले जब उसकी शादी हुई तब भी कमला के रंग ढंग में कोई बदलाव नहीं आया वो अपनी बहू से भी बना कर नहीं रख रही थी केशव भी हर बात पर बोलने लगा मुझे इस मामले से दूर रखना जब आपने दादी को नहीं समझा तो फिर कोई आपको समझे ये सोचना ही बेकार है…

कमला भी तब अपनी सास के साथ किए दुर्व्यवहार के लिए आँसू बहाती पर जो चला गया वो माफ करने कहाँ से आता अब जब कमला चली गई तो मैं फिर अपने पिताजी की जगह पर आ गया…. केशव तो पहले से ही मुझे गुनाहगार मानता था…. बहू के दुर्व्यवहार पर कभी कभी बोलता भी पर बहू दो टूक जवाब दे देती तो फिर केशव चुप हो जाता….

दो दिन से मुझे बहू वक़्त पर खाना नहीं दे रही थी मैंने कहा मैं खुद कुछ बना लेता हूँ तो भी मुझे मना कर दी और बोलने लगी …. दिखता नहीं है बेटे के साथ व्यस्त हूँ… उसका खाना पीना पहले देखूँ या आपका…मैं चुप रह जाता बस आठ महीने के पोते के लिए….

कल शाम बहू अपने फ़ोन पर किसी से बात करने में व्यस्त थी मुन्ना रो रहा था मैं उसे चुप कराने की ध्येय से उसे गोद में लेने ही जा रहा था कि वो मेरे हाथ से फिसल गया…उसके रोने की आवाज़ सुन कर बहू बाहर आ गई… बेटे के साथ मुझे देख कर उसने आरोप लगा दिया कि मैं उसके बच्चे को जानबूझकर गिरा दिया….

जब केशव घर आया बहू ने खूब हंगामा किया…. पिताजी अब मेरे बच्चे के लिए खतरा बन गए है वो अब उसे गिरा देते हैं…मारते हैं…. बेटे के दिल में वैसे ही मेरे लिए भावनाएँ नहीं थी उसने भी कहना शुरू कर दिया…. जो अपने माता-पिता का नहीं हुआ वो मेरा और मेरे बच्चे का सगा क्या होगा….

अच्छा होगा आप यहाँ से चले जाएँ वैसे भी इस किराए के घर में आख़िर हम कब तक रहेंगे हम कुछ दिनों बाद कहीं और रहने जा रहे हैं अच्छा होगा आप अपने रहने का इंतज़ाम कहीं और कर ले…

आपको हमसे प्यार नहीं है समझ सकता हूँ पर मुझे अपने बच्चे से प्यार है…. बेटे की बात सुन कर मैं कैसे उस घर में रह सकता हूँ अब तुम ही बताओ?” एक ठंडी सांस भरते हुए शेखर जी ने कहा 

उमा जी दूर बैठी ये सब सुन रही थी अचानक से वो रमाकान्त जी से बोली,” सुनो मैं थोड़ा बाहर से आती हूँ ।” 

रमाकान्त जी कुछ बोलते इसके पहले उमा जी घर से बाहर निकल गई ।

वो सीधे केशव के पास पहुँच गई जहाँ वो अपनी पत्नी के साथ मजे से खाना खा रहा था और पास में ही उसका बच्चा झूले पर सो रहा था।

उमा जी को यूँ अचानक आया देख दोनों हैरान हो गए केशव ने उन्हें अंदर बुलाया और पूछा,” क्या बात है आंटी जी आप अचानक हमारे घर?”

उमा जी झूले के पास गई और बच्चे को देखते हुए बोली,” बेटा तुम कभी अपने माता-पिता के साथ बुरा सलूक मत करना…. नहीं तो इनके किए की सजा कहीं तुम्हें भी ना भुगतनी पड़ी ।” ये कहकर वो उनके घर से जाने लगी तो केशव ने उन्हें रोकते हुए पूछा,” ये आप क्या कह रही है आंटी… हमारे बच्चे को ये सब क्यों बोल रही है ?”

“ बेटा शायद तुम सुन नहीं पाओ पर क्या जो शेखर जी ने किया वैसा ही तुम्हें भी उनके साथ करना ज़रूरी है.. एक बार ठंडे दिल से सोचना… माना उन्होंने बहुत ग़लतियाँ की पर क्या तुम दोनों उनके साथ सही कर रहे हो… माता-पिता का दिल दुखाकर भला कौन सुखी रह पाया है …भगवान उनके किए की सजा किसी ना किसी रूप में देते ज़रूर है….

अगर तुम्हें समझ आ जाए तो आदर के साथ अपने पिता को ले आओ…. ताकि कल को तुम्हारा बेटा तुम लोगों के साथ बुरा सलूक ना करें…. और हाँ शेखर जी अभी हमारे घर पर है वो कुछ समय बाद कहाँ चले जाएँगे हमें भी नहीं पता।” कहकर उमा जी अपने घर आ गई और चहलक़दमी करने लगी उन्हें लग रहा था शायद केशव समझ जाए

और अपने पिता को अपने साथ ले जाएपर एक घंटा गुजर गया वो नहीं आया शेखर जी भी अब जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि दरवाज़े की घंटी बजी उमा जी लपक कर दरवाज़े की ओर बढ़ी सामने केशव खड़ा था वो सिर झुकाए अंदर आया … पिता के पास जाकर बोला ,” घर चलिए पापा जो हुआ उसके लिए हमें माफ कर दीजिए ।” 

ये सुनते ही शेखर जी बेटे के गले लगते हुए बोले,” बेटा मुझे भी माफ कर दे… तेरे दादा दादी से तो माफ़ी नहीं माँग सकता पर तू मुझे माफ़ कर देगा तो समझ जाऊँगा मेरे माता-पिता ने भी मुझे माफ़ कर दिया ।” 

बाप बेटे गिले शिकवे करते हुए घर की ओर बढ़ गए जहां केशव की पत्नी दोनों का इंतज़ार कर रही थी एक बार वो ससुर को देखती दूसरी बार बेटे को और उसे भी समझ आ रहा था वो जैसा व्यवहार करेंगी वैसा ही लौटकर उसके पास आएगा इसलिए अब से ससुर का सम्मान करेगी ताकि उसके बच्चे को अच्छे संस्कार दे सके।”

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#जो अपने माँ बाप का दिल दुखाते है भगवान उन्हें ज़रूर सज़ा देते है

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