तकदीर – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

  ओह…. इस बार फिर तीन नंबरों से चूक गया…..अरे मम्मी , शायद मेरी तकदीर में ही नहीं है एसएससी एग्जाम निकालना… वरना पहली बारी में पांच नंबर से और इस बार तीन नंबर से थोड़ी ना चूक जाता ….!

     देख बेटा विप्लव….मुझे लगता है ना ….अभी तुझे और मेहनत की आवश्यकता है बेटा ….. ये कुछ नंबरों से बार-बार चूकना… मेरी समझ से… तैयारी में कहीं ना कहीं कोई कमी रह जाती है… वरना….

” क्या है ना बेटा , तकदीर बनाने में कर्म की बहुत बड़ी भूमिका होती है ” ….!

  फिर तो ठीक है मम्मी…इस बार जी जान लगा देता हूं अपनी तैयारी में….. विप्लव ने हार ना मानते हुए परीक्षा को चैलेंज के रूप में स्वीकार किया…।

अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होने के बाद इंटरव्यू की बारी आई….खुशी-खुशी विप्लव ने मम्मी को बताया ….मम्मी अगले महीने 18 तारीख को मेरा इंटरव्यू है ….पर उस समय मेरी एलआईसी की ट्रेनिंग चलती रहेगी और इंटरव्यू में पक्का तो है नहीं की सिलेक्शन हो ही जाएगा …..इसीलिए पहले से मिली हुई नौकरी की ट्रेनिंग भी नहीं छोड़ सकता ….।

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       एक काम करता हूं मम्मी , ट्रेनिंग के बाद रात वाली ट्रेन पकड़ता हूं ….सुबह 6:00 बजे पहुंच जाऊंगा… इंटरव्यू 9:00 बजे से है ….हो जाएगा ..!  मम्मी , इस बार पक्का आपका बेटा अफसर बनकर ही रहेगा….।

 आपने ठीक कहा था… कर्म ही तकदीर तय करती है…!

पूरी तैयारी के साथ समय से पहले ही विप्लव रेलवे स्टेशन पहुंच चुका था… इधर सविता भी बार-बार फोन कर विप्लव को बोलती… बेटा सही समय पर स्टेशन आ जाना …कहीं ट्रेन छूट न जाए….हां मम्मी अभी आधा घंटा बाकी है ट्रेन आने में….. ठीक आधे घंटे बाद फिर सविता ने फोन किया… ट्रेन आई कि नहीं बेटा ….अरे नहीं मम्मी नेट पर दिखा रहा है एक घंटे और लेट है ….विप्लव ने मायूसी भरे में कहा…!

अन्य विकल्प न होने के कारण सविता चिंतित हो रही थी ….कहीं ट्रेन ज्यादा ना लेट हो जाए और विप्लव  का इंटरव्यू के लिए देर हो जाए…!

  अंदर से तो विप्लव भी चिंतित था ही… पर ऊपर से मम्मी को सांत्वना देते हुए कहा …..अरे मम्मी  सुबह 6:00 बजे ट्रेन पहुंचने का समय है…. कितनी भी देर होगी ….पहुंच  ही जाएगी…. वैसे भी मुझे 9:00 तक इंटरव्यू के लिए वहां पहुंचना है…!

   अब जैसे-जैसे समय बीत रहा था… विप्लव की बेचैनी बढ़ती जा रही थी… उस दिन पूरे 3 घंटे ट्रेन लेट थी…. लाख घबराहट के बाद भी कहीं ना कहीं विप्लव के दिल के कोने में एक आशा थी……शायद रास्ते में  ट्रेन अपनी रफ्तार से कवर अप कर ले….।

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     सुबह 6:00 बजे से ही सविता ने फोन लगाना शुरू किया ….कहां पहुंचा है बेटा …..?  थोड़ी-थोड़ी देर में बार-बार पूछती …अब कहां पहुंचा बेटा… अब कहां पहुंचा ….

    अंत में झल्लाकर विप्लव ने कहा…. अब कुछ नहीं हो सकता मम्मी…. किसी भी हालत में मैं अब इंटरव्यू के लिए नहीं पहुंच सकता ….!

   ओह….अफसोस और दुख भरे स्वर में सविता के मुख से निकला ….अब ये ट्रेन लेट हो गई …. इसका खामियाजा कौन भुगतेगा …..।

  तू शायद ठीक कहता था बेटा ….लाख मेहनत , लगन , परिश्रम , दृढ़निश्चय के बाद भी ….तकदीर का प्रबल होना भी बहुत जरूरी है…!

या कह ले…..कर्म और तकदीर के सही तालमेल से ही सफलता मिलती है…।

(स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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