“ ये क्या कर रहा है बेटा..अपना सामान क्यों बाँध रहा है…तू यहाँ से कहीं नहीं जाएगा…. समझा… आप क्यों चुप हैं कुछ बोलते क्यों नहीं अपने बेटे को ।” सरला पति और बेटे से घिघियाते हुए बोले जा रही थी
बेटा वरूण आँखों में आँसू रोककर अपना सामान पैक कर रहा था ।
वही कोने में खड़े रामेश्वर जी अपनी पत्नी और बेटे को देख रहे थे… वो कहे भी तो क्या?
“ सुनिए आप बोलिए ना बेटे को वो ये घर छोड़कर कहीं नहीं जा सकता जाना है तो वो कलमुहीं यहाँ से जाएगी… पता नहीं क्या खिला पिला कर मेरे बेटे को अपने वश में कर ली है ।”सरला की आवाज़ ग़ुस्से में आग उगलती प्रतीत हो रही थी
“ बस भी करो सरला…अपने मुँह पर ताला लगा लो… सबको दिख रहा है मानसी तुम्हें फूटी आँख नहीं सुहाती पर इसमें सिर्फ़ उसका ही दोष है… तुम्हारे लाल का नहीं… अच्छा है जो वो यहाँ से जा रहे है नहीं तो तुम सबका जीना दुश्वार कर दी हो…दूर जाकर कम से कम यो चैन से तो रहेंगे ।” रामेश्वर जी ये कह कर कमरे से बाहर निकल गए
घर के मुख्य दरवाज़े पर मानसी की दबीं दबी सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं वो उस ओर चले गए और बोले,” अच्छा है बहु तुम यहाँ से जा रही हों…आखिर कोई किसी की नज़रों में कितना गिर कर रह सकता है…. वरूण की माँ ने सारी हदें पार कर दी…अब जब मैं उसे समझाने गया तो मरने की धमकी देकर मेरा मुँह बंद करवा दिया पर बहू मैंने कभी तुम्हें कुछ नहीं कहा मैं चाहता हूँ हम हमेशा साथ रहे… शायद तुम दोनों के दूर जाने से सरला को कुछ समझ आए।” उनकी आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था जिसे महसूस मानसी ने भी किया
“ पापा जी माना वरूण और मैंने एक दूसरे को पसंद करके शादी की…मुझे पता था मम्मी मुझे पसंद नहीं करती पर वरूण की ही जिद्द थी शादी कर लेते हैं मम्मी को मना लेंगे पर दो महीने हो गए एक दिन भी ऐसा नही गया जब मम्मी ने मुझ पर बेबुनियाद लांछन ना लगाए हो.. परिवार के साथ के लिए सब बर्दाश्त करती रही पर आज वो मेरे परिवार को अनाप शनाप बोलती जा रही थी और फिर जब उन्होंने ये कहा कि उनके बेटे पर मैंने जाने कौन सा जादू टोना कर दिया है ये सब अब सहन करना मुश्किल हो गया…
मैं तो वरूण को उसकी मम्मी के पास छोड़कर जा रही थी पर वरूण ने कहा जब प्यार साथ किए तो जलील सिर्फ़ तुम क्यों… मैं भी साथ चलूँगा जब तक मेरी माँ तुम्हें दिल से नहीं अपना लेगी हम यहाँ कभी नहीं आएँगे… पापा जी मैंने हर वो काम किया जो मम्मी जी चाहती थी… नौकरी घर सबकी ज़िम्मेदारी क्या कमी कर रही थी मैं जो मम्मी जी को फूटी आँख नहीं सुहा रही…. क्या प्यार करना शादी करना इतनी बड़ी गलती कर दी मैंने?” कहते हुए मानसी फफक पड़ी
“ नहीं बहू हम खोज कर भी लाते तो शायद तुम्हारी जैसी बहु नहीं मिलती… वरूण को जो समझ सके वो बस तुम हो…सरला उसकी माँ हो कर भी उसको समझ नहीं पा रही… उसकी आँखों पर पट्टी पड़ी है देखना एक दिन ज़रूर हटेगा ।” रामेश्वर जी कह ही रहे थे कि वरूण भी वहाँ आ गया पीछे पीछे सरला जी ,”मत जा बेटा …मुझे छोड़ कर मत जा कहती जा रही थी ।”
“ बस करो सरला इनको जाने दो…कम से कम बेटे की खुशी ही देख लेती… चलो जाओ तुम लोग अपना ख़्याल रखना ।” जैसे ही रामेश्वर जी ने कहा मानसी और वरूण उनका आशीर्वाद लेकर सरला जी की ओर मुख़ातिब हुए पर वो पलट कर अंदर चली गई रामेश्वर जी ने उन्हें आँखों के इशारे से समझाया कि तुम लोग जाओ नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी ।
वरूण और मानसी के जाते ही सरला जी बहुत रोई… वरूण अपनी माँ से बात करना चाहता तो बस वो जली कटी सुना देती वरूण ने बात करना बंद ही कर दिया जो बातें होती वो रामेश्वर जी के साथ ही
वरूण को भी माँ का ये व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा था… शादी के लिए चार साल तक इंतज़ार किया था फिर सहमति मिली और सरला जी का व्यवहार उसे आहत कर तो रहा था पर मानसी समझा देती अकसर लव मैरिज की दास्तान यही होती फिर बाद में देखना मम्मी जी मान जाएगी पर सरला जी के ताने ख़त्म होने की जगह बढ़ते ही जा रहे थे हार कर उन्हें ये फ़ैसला करना पड़ा… इस उम्मीद में कि शायद एक दिन सब सही हो जाएगा ।
कुछ महीने बाद ही अचानक सरला जी को रात कोदिल का दौरा पड़ा… अस्पताल में भर्ती करवा कर रामेश्वर जी ने वरूण को फोन कर इत्तिला कर दिया वो लोग उसी वक्त घर आने के लिए निकल पड़े
सरला जी की सेहत में जब तक सुधार नहीं हुआ मानसी और वरूण ने बख़ूबी उनकी सेवा की… सरला जी को कहीं न कही ये एहसास होने लगा था वो बहुत गलत कर रही थी पर इसे स्वीकार करना उनके स्वभाव में नहीं था ।
जब सरला जी पूरी तरह स्वस्थ हो गई तो दोनों जाने की तैयारी करने लगे तब सरला जी से रहा नहीं गया वो दोनों के पास गई और बोली,” कहीं जाने की जरूरत नहीं है रहना है तो यही रहना होगा … मैं अब बेटा बहू के बिना नहीं रह सकती और मेरा फ़ैसला सबको मानना पड़ेगा ।” आवाज़ सख़्त करने की कोशिश ज़रूर की सरला जी ने पर आँखें धोखा दे गई वो जल्दी से कमरे से बाहर निकल गई
“ माँ हमें जाने दो जैसे पापा हमेशा तुम्हारी हर बात का मान करते हैं तुम्हारा अपमान बर्दाश्त नहीं करते फिर मैं कैसे ।” वरूण ने कहा
“ हाँ हाँ सब समझ रही हूँ… जो भी है अब यही मेरी बहू है और मुझे उसके साथ ही रहना है जैसे तू मेरे लिए वैसे ही बहू भी।” सरला जी के ये शब्द सुनते ही मानसी सरला जी से लिपट गई और बोली,” आप मैं आपकी आँखों में….!”
“ हट अब ऐसा कभी नहीं होगा ।” कहते हुए सरला जी बहु को सीने से लगा ली
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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