कॉलेज के पहले साल की बात है, हम तीनों दोस्त, अजय, मोहन ओर मैं इकट्ठे पढ़ाई करते थे।
टेक्निकल बुक्स काफी महंगी होती थी, इसलिए हम सब 3-3 अलग अलग बुक्स खरीदते ओर 2-2 बुक्स लाइब्रेरी से इशू करा लेते थे।
फिर रिटर्न ओर रि-इशू से पूरा साल निकाल देते थे।
एग्जाम के दिन थे, मेरी एक बुक नही मिल रही थी। मैंने अजय से पूछा तो उसने मना कर दिया
कि उसके पास नहीं है, फिर मैंने मोहन से पूछा तो उसने भी मना कर दिया। अगले दिन मैं ओर अजय , मोहन के घर गए।
वहाँ उसके कमरे में देखा की मेरी बुक खुली पडी थी, जिसे वो पढ़ रहा था।
हमें देखकर वो सकपका गया। पूछने पर बोला, तुम हर टेस्ट में मुझसे ज्यादा नंबर लाते थे, इसलिए मैंने ऐसा किया।
दोस्तों के बीच हैल्थी कंपीटिशन अच्छी बात है पर ये तरिका बहुत गलत है।
उसके बाद कॉलिज के अगले 4 साल एक ही क्लास में पढ़ने के बाद आज भी मोहन मुझे “फूटी आँख नही भाता।”
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
15 Jan 25