सुकून – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

  रंजीता और सविता हल्की गपशप संग सैर करते हुए जैसे ही सड़क पर पहुंचीं कि कल के मेले के‌ कारण सड़क के दोनों तरफ पड़ी प्लास्टिक की जूठी प्लेटों, कटोरियों ,गिलास, चम्मच तथा तुड़ी-मुड़ी जूठी पत्तलों को देखकर सविता भड़क उठी, 

    ‘ उफ़्फ ! यह इधर-उधर बिखरा पड़ा कूड़ा मुझे फूटी आंखों नहीं भाता है। प्लास्टिक के प्रयोग पर मनाही के बावजूद कितनी गंदगी फैला दी है लोगों ने यहां ? मक्खियां भी भिनभिना रही हैं। प्रशासन को मेले के दौरान जगह-जगह कूड़ेदान रखवाने की व्यवस्था करनी चाहिए थी।’

  फिर, कोई प्रतिक्रिया न पाकर और रंजीता को अन्यमनस्क देखकर वह पुनः बोली,’अरे तुम क्यों गुमसुम हो ? किसे ढूंढ़ रही हो ?’

    ‘ हुम्म ! कुछ नहीं !’ 

   अब तक दोनों सड़क को पार करके अपनी सैर के‌ दूसरे इलाके में पहुंच गई थीं ।‌ तभी सामने से अपने कंधे पर फटा-पुराना झोला उठाए, कूड़ा बीनने वाली एक स्त्री को आते देखकर रंजिता ने जोर से आवाज लगाई, 

    ‘  सुनों जरा  ! आज तुम इस इलाके की बजाय सड़क के उस पार चली जाओ।‌ वहां आज प्लास्टिक का अंबार लगा है। तुम्हें एक ही स्थान पर‌ बहुत सा सामान मिल जाएगा जिससे तुम्हारा काम आसान हो जाएगा।’

   ‌दरअसल रंजीता प्रतिदिन सुबह इस इलाके में इस स्त्री को यहां-वहां पड़े‌ कूड़े में से प्लास्टिक की वस्तुएं चुनते देखती थी और आज उसकी निगाहें उसी को ढूंढ रही थीं।

    रंजीता के सुझाव पर स्त्री के मुख पर प्रसन्नता युक्त हल्की-सी मुस्कान आ गई थी। एक अद्भुत संयोग था कि सविता को फूटी आंखों न भाने वाला कूड़ा, रंजीता की अन्यमनस्कता के राज को जानते ही उसके लिए भी प्रसन्नता का कारण बन गया था और रंजीता के‌ चेहरे पर तो ‘भलाई भरी सुबह की शुरुआत’ के अहसास का एक अद्भुत सुकून था ही। 

 

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब

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