ताई जी अपने प्यारे भतीजे कुणाल के विवाह में सम्मिलित नही हो पाई थीं। अब वो सबसे मिलने कुछ दिनों के लिए आई थीं…बहू सुकन्या से मिलने का विशेष चाव था। साथ ही देवरानी यशोदा भी बीमार थीं…एक पंथ दो काज…सोच कर वो चली आई थीं।
उन्हें सुकन्या का सान्निध्य बहुत अच्छा लग रहा था। वो हर तरह से गुणी और सुसंस्कृत निकली। कुणाल तो शुरू से ही बहुत कायदे का शालीन लड़का है। उनकी बराबर यही इच्छा थी…कुणाल की होने वाली पत्नी समझदार होनी चाहिए… उनके देवर देवरानी का घर खुशी से भर जाएगा। वोही हुआ भी…सुकन्या ने आकर घर को असीम खुशियों से भर दिया था पर कुछ ही दिनों बाद यशोदा काफ़ी बीमार हो गई। ब्लडकैंसर जैसी बीमारी से त्रस्त थीं पर अपने प्यारे परिवार के सहयोग से अब स्वास्थ्यलाभ हो रहा था। पर ताईजी की अनुभवी आँखें सुकन्या की आँखों का सूनापन भलीभांति भाँप गई थी।
उन्होने एकान्त में उसे कुरेदना भी चाहा पर वो शांत रही,”नहीं ताईजी, ऐसी कोई बात नहीं है।मैं बहुत खुश हूँ। सबलोग मुझे कितना प्यार करते हैं और मुझे क्या चाहिए?”
वो लाड़ भरे स्वर में बोली,”बेटी, सच में इस मामले में तू बहुत धनी है। कुणाल की तो बात ही छोड़ दे…वैसा हीरा तो चिराग लेकर ढ़ूँढने से भी नहीं मिलेगा, तेरा सास ससुर भी बहुत कोमल और स्नेही हैं। बेचारी बीमारी के कारण त्रस्त है वर्ना उसे तो बहू का बहुत लाड़ चाव है।”
सुकन्या चुपचाप सिर झुकाए सुनती रही एक शब्द भी नही बोली। उनकी अनुभवी आँखें दो चार दिनों में ही बहुत कुछ ताड़ चुकी थी…आज वो मन ही मन एक कठोर निर्णय ले चुकी थीं।
रोज़ की तरह आज भी कुणाल ऑफिस से लौटा और मम्मी पापा के कमरे में आकर बैठ गया और चाय के लिए पुकारने लगा। ताईजी ने खूब लाड़ से उसे डपट दिया,”यहाँ हम तीनों सीनियर सिटीजन चाय पिएंगे… तू उधर जा…बहू के साथ चाय पी…कुछ खा। आज उसने बढ़िया आलू टिक्की का प्रबंध किया है।”
सब चौंक गए। कुणाल तो सब कुछ समझ गया,’जी ताईजी’कह कर बाहर किचन की तरफ़ भाग गया। यशोदाजी जी बहुत स्नेह से भीगें स्वर में कहने लगीं,”आप तो देख ही रही हो…सुकन्या कितनी प्यारी और सुशील बच्ची है। मैं तो उसी की बदौलत जिंदगी की जंग लड़ पा रही हूँ।”
ताईजी भी उनकी बात का समर्थन करते हुए बोली,”हाँ यशोदा, तेरे बेटा बहू तो लाखों में एक हैं…सुकन्या के लिए तो शब्द ही नहीं है मेरे पास। तेरे बच्चों ने तो अपने को साबित कर दियापर तुम दोनों कब साबित करोगे कि तुमलोग भी बहुत अच्छे माता पिता हो।”
वो दोनों हैरानी से देखने लगे। तब वो फिर बोली,”बहू का सूखा मुँह देखो…उसकी आँखों का सूनापन महसूस करो…वो भी सब लड़कियों की तरह कुछ रंगीन सपने लेकर आई होगी। वो बेचारी खामोशी से कर्तव्य पालन कर रही है। तुम बीमार थीं पर अब ठीक हो रही हो। अब दोनों को कहीं भेजो…कुछ तो दोनों को भी एंजॉय करने दो…जिंदगी जीने दो। दोनों को कुछ तो स्पेस दो।”
सुन कर वो गंभीर हो गई ।कुछ देर की चुप्पी के बाद उनका हाथ पकड़ कर हँस पड़ी,”दीदी, आपने तो हमारी आँखें खोल दी। इस बीमारी ने तो मेरी सोचने समझने की शक्ति ही छीन ली थी…और दीदी…वो क्या कहते हैं…जो शादी बाद बच्चे घूमने जाते हैं…वहाँ का प्रोग्राम बनवा दीजिए।”
ताईजी जी और रमेश जी दोनों एक साथ ही बोल पड़े…हनीमून..
जोर के ठहाके से कमरा गूँज उठा।
नीरजा कृष्णा
पटना