सविता और मंजू पक्की सहेलियां थी। बचपन से लेकर स्कूल कॉलेज में साथ ही रहीं। धीरे धीरे बचपन का साथ जीवन भर की दोस्ती में बदल गया।
सविता और मंजू दोनों की शादी उदयपुर में हुई और इस तरह उनकी दोस्ती नदी की अविरल जलधारा की तरह ताउम्र बहती रही। लेकिन बचपन में गुड्डे गुड़िया के खेल से इतर जीवन की कठिन परीक्षा में दोनों ने अपनी क्षमता, समझ और जीवन के अनुभवों से अलग अलग प्रदर्शन किया।
एक ओर सविता की शादी मध्यम वर्गीय परिवार में हुई तो मंजू की शादी शहर के बड़े उद्योग पति के बड़े बेटे से हुई। मंजू के पास धन ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं रही। लेकिन अधिक ऐश्वर्य के साथ साथ एक अवगुण भी धीरे धीरे उसके भीतर अपनी बुनियाद जमाने लगा। दिखावा और कट्टरपन उसके व्यक्तित्व की पहचान बन गए थे। कोई भी अवसर हो वह धन का अपव्यय और दिखावा करने से पीछे नहीं रहती। परिवार में सबसे बडी होने के कारण सब पर अपना हुक्म चलाना और हर गलत बात को सही साबित करना उसकी आदत बन गए थे।
घर हो या बाहर उसका रुतबा ऐसा बन गया था कि कोई उसके खिलाफ बोल न पाता।
दूसरी ओर सविता सीमित साधन होने के बावजूद बेहद सुलझी हुई और मिलनसार थी। पति की आमदनी में वह अपना घर बेहतर ढंग से चला रही थी और बेहद खुश व संतुष्ट थी। उसका सबसे बड़ा गुण था सोचविचार कर फैसला लेना और फिजूल खर्ची से हर संभव दूर रहना।
विपरित स्वभाव होने के बाद भी दोनों की अच्छी दोस्ती थी। सविता और मंजू ने एक दूसरे के बच्चों को भी हमेशा मां सा प्रेम दिया।
मंजू अपने इकलौते बेटे के लिए वधु तलाश रही थी। एक दिन अचानक वह सविता के घर आ पहुंची।
बिन सूचना के अपनी बचपन की सहेली को सामने खड़ा देख सविता खुशी से झूम उठी।
उसने सविता का प्रेम पूर्वक अभिवादन किया और स्नेह पूर्वक उसे घर के भीतर लेकर आई। किंतु एक प्रश्न निरंतर उसके मन में दस्तक दे रहा था कि आख़िर बिना सूचना के आज अचानक दो साल बाद मंजू कैसे पहुंच गई। चाय बनाते हुए उसका ध्यान बार बार उसके खिले हुए चेहरे की ओर जा रहा था।
हो न हो जरूर कोई विशेष बात है जो मंजू का चेहरा ऐसे आत्मविश्वास से दमक रहा है। सोचते हुए सविता ने चाय नाश्ता लगाया और प्याला मंजू की ओर बढ़ाते हुए कहा। कोई ख़ास बात है क्या मंजू ?? या आज यूं ही मेरे घर का रास्ता भूल गई??
चाय का प्याला हाथ में लेते हुए मंजू ने बात आरम्भ की,” सुन सविता! आज मैं एक खास वजह से तेरे घर आई हूं। मेरा बेटा अभय , अमेरिका से एमबीए करके आया है। अब अपने पापा के साथ यहीं बिज़नेस में हेल्प करेगा। तू तो जानती ही है कि मैं काफी दिन से उसके लिए रिश्ते देख रही थी।
सुन !तेरी बेटी प्रिया मुझे अपने अभय के लिए बहुत पसंद है। बचपन से देखा है प्रिया को,जब सामने इतना अच्छा रिश्ता है तो हम बाहर क्यों जाएं?? क्यों सही कहा न??”मंजू ने सविता की ओर मुस्कुरा कर पूछा।
चाय की सारी मिठास एक पल में कड़वाहट बन कर सविता के जहन में उतर आई। मानो किसी ने उठाकर अतीत में ले जा पटका हो उसे।
एक के बाद एक दृश्य उसकी आंखों के सामने तैरने लगे।
मंजू की इकलौती लाडली बेटी थी अनु । कितने नाजों से पली। लेकिन मां के स्वभाव से बिलकुल उलट थी। उसके चेहरे से शीतल तेज़ झलकता। जितनी सुंदर उतनी ही सौम्य, मृदुभाषी, और कम बोलने वाली। कौन जानता था उसके गुण ही अवगुण बन जायेंगे और वह ऐसा नरकीय जीवन जीने को मजबूर हो जायेगी।
कितने धूमधाम से शादी हुई थी उसकी। ऐसी शानो शौकत, दिखावा, और पैसे की चकाचौंध थी कि ब्याह में आमन्त्रित सभी अतिथियों की जुबान पर बस मंजू ही छाई हुई थी।
अपनी पलकों पर ढेरों सपने सजाए अनु विदा हो गई। पूरे एक महीने बाद जब वह अपने पति के साथa अमेरिका से लौटी तो उसकी गुलाबी रंगत पीली पड़ चुकी थी। आंखों के नीचे बने काले घेरे उसके जीवन में हुई किसी अनहोनी की ओर इशारा कर रहे थे।
सविता भी उस रोज अनु से मिलने पहुंच गई थी।
मायके आकर अनु ने अपने ससुराल का जो वर्णन किया उसे सुनकर सविता का कलेजा धक से रह गया।
अनु का पति कोई बिजनेस मैन नहीं बल्कि स्टॉक मार्केट में गैंबलर था। हर रोज़ वह लाखों रुपए का सट्टा लगाता और अक्सर अपनी सारी राशि डूबा देता। फिर आक्रोश निकालने के लिए शराब पीकर अनु को बेदर्दी से पीटता और मायके फोन करके उसके नुकसान की भरपाई करने को कहता।
हनीमून के नाम पर विदेश ले जाकर अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ ऐसा जानवरों जैसा सलूक करने वाले व्यक्ति के लिए सविता के मन से गुस्सा फूट पड़ा।
“मंजू मुझे लगता है तुम्हे और भाई साहब को अभी इस मामले को गंभीरता से लेकर अपने समधी से बात करनी चाहिए।”
“देख सविता यह मेरे घर का मामला है तू बीच में न पड़े तो बेहतर होगा।”मंजू का टका सा जवाब सुनकर सविता वहां से चली आई थी। उसी दिन के बाद दोनों सखियों का आपस मे मिलना जुलना लगभग बंद हो गया था।
“अरे इतना क्या सोच रही है, तू बस ये समझ ले अपने राजमहल में रानी बनाकर रखूंगी तेरी प्रिया को।”मंजू ने गर्दन अकड़ाकर कहा तो सविता वर्तमान में लौट आई।
“”देख मंजू हम दोनों दोस्त ही भले हैं। हमारे बीच रिश्तेदारी न ही हो तो बेहतर होगा।””
“”क्यों भला ऐसी क्या कमी है मेरे अभय में??””उसकी त्यौरियां चढ़ गई।
“”अभय में कोई कमी नहीं है वो तो लाखों मे एक है। लेकिन तेरे घर में अपनी बेटी का ब्याह…… नहीं नहीं…. ये नहीं हो सकता।””
गहरी सांस छोड़ते हुए सविता ने कहना प्रारंभ किया।
“मंजू तेरी बेटी अनु को मैंने कभी अपनी प्रिया से कम नहीं समझा। उस दिन जब उसने अपनी आपबीती बताई तो मेरा कलेजा फट कर रह गया लेकिन तुझपर कोई असर नहीं पड़ा। तूने अपनी मासूम बच्ची को वापिस उन दहेज के लोभी भेड़ियों को सुपुर्द कर दिया। कितनी बार उसने तुझे फोन किया मदद की गुहार लगाई, लेकिन तुझपर अपने सोशल स्टेटस और झूठी शान की ऐसी धुन सवार है कि तुझे उसके सामने अपनी बच्ची का दुख नहीं दिखाई पड़ रहा। दामाद के मुंह में हर महीने नोटों की गड्डी भरने की बजाय अगर अपनी बेटी का साथ देती तो आज वो ऐसी हालत में नहीं होती। तुझे क्या लगता है शादी के बाद ससुराल ही लडकी का घर होता है फिर चाहे वो वहां मरे या जिए तुझे कोई परवाह नहीं। तेरे लिए तेरी बेटी सुसराल गई तो मतलब पराई हो गई।
बुरा मत मानना लेकिन बेटी की शादी में लाखों रुपए का धन प्रदर्शन करने और पैसों को पानी की तरह बहाने की बजाय अगर उसके दुख में तू उसके साथ खडी होती तो उसके सुसराल वालों की हिम्मत इतनी नहीं बढ़ती।
उसके रोने गिड़गिड़ाने पर भी तूने कभी हस्तक्षेप नहीं किया न ही भाईसाहब को बोलने दिया जिसके कारण बच्ची वहां मर मर कर जी रही है।
अपने पेट से पैदा की हुई संतान को अगर तू अपनी रूढ़िवादिता और दिखावे की बलि चढ़ा सकती है तो मेरी बेटी को तू क्या खाक समझेगी!!
मैं गरीब घर में तो अपनी बेटी ब्याह सकती हूं लेकिन जहां मान सम्मान न मिले , उसे इंसान नहीं सजावटी सामान समझा जाए ऐसे घर में मैं अपनी बेटी नहीं ब्याहुंगी।””
हाथ जोड़कर सविता उठ खडी हुई।
मंजू ने सोचा था उसकी मध्यम वर्गीय सहेली बड़े घर से रिश्ता आने पर खुशी से झूम उठेगी लेकिन सविता ने तो जैसे उसे आइना दिखा दिया था।अपनी वास्तविकता सविता के मुंह से सुनकर लज्जित सी मंजू पैर पटकती हुई वहां से निकल आई। उसके मन में रह रहकर यही बात आ रही थी कि ‘ सोचा था क्या और क्या हो गया ’!
आपको यह विवाह प्रस्ताव कैसा लगा?? क्या सविता ने उचित निर्णय लिया?? कॉमेंट करके जरूर बताएं।
धन्यवाद।
सोनिया सैनी