तू भी बेटी बन जा-नीरजा कृष्णा

“अरी श्यामा, तेरी बहु को क्या हुआ है? सुना है महारानी जी की तबियत नासाज़ है और वो दिन रात आराम फ़रमा रही हैं।”

श्यामा जी अपनी पड़ोसन के व्यंग वाणों को अनदेखा करती हुई बोली,”अरे कोई विशेष बात तो नहीं है पर कल नलिनी नाश्ते के लिए मँगोड़े बना रही थी,एक मँगोडा़ एकाएक फट कर उछल कर उसके चेहरे पर सट गया था।”

“बस इतनी सी बात और इतना नखरा… देख, ज्यादा सिर ना चढ़ा। ये आजकल की लड़कियां बड़ी चालू होती हैं, सास को नौकरानी बनाते देर नहीं लगती।”

श्यामा जी चिढ़ कर बोली,”दीदी, जरा धीरे बोलो! मेरी बच्ची के हाथों पर खौलते तेल के कितने छींटे पड़ गए और आँख तो बाल बाल बची है।”


पड़ोसन थोड़ी नरम तो हुई पर अभी भी उनके तरकश में जहरीले तीर बचे हुए थे…वो कुछ बोलने को हुई पर श्यामा जी ने उनके मुँह पर हाथ रख दिया,”अब कुछ मत बोलिएगा! मैंने अपनी नीना को विदा किया है तो नलिनी के रूप में दूसरी बेटी को पाया है। आज नीना को ऐसा कुछ हो जाता तो भी आप ऐसे ही सोचती?”

वो चुप रहीं। तभी वहाँ नलिनी पहुँच गई और पैर छूकर बोली,”मम्मी ,आप आंटी के पास बैठिए, मैं चाय बना कर लाती हूँ।”

“ना बेटा, इस भयंकर गर्मी में अभी तू गैस के पास मत जा। अभी ये फफोले ठीक नहीं हुए हैं।”

वो हिचक कर कह बैठी,”पर मम्मी जी, ऐसे बैठे बैठे कितनी आवभगत करवाऊँ…मुझे पच नहीं रहा है।”

वो तड़प गईं और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,”क्यों नहीं पच रहा? एक तरफ़ मम्मी बोलती है और इतना संकोच भी करती है। अपनी मम्मी के साथ भी इतना संकोच करती है क्या?”

उसने सिर झुका लिया था…वो चहक कर पूछ बैठीं,”अपनी मम्मी के साथ इतनी झिझक नहीं होती ना…अरी बिटिया, मैं तो पूरी तरह तेरी मम्मी बन चुकी हूँ, अब तू भी पूरी तरह मेरी बेटी बन जा।”

नीरजा कृष्णा

पटनासिटी

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