आज ‘ह्रदयंगम वृद्धाश्रम’ में फिर कोई नया सदस्य आया है, ह्रदय के सारे गिले शिकवे, व्यवहार दुर्व्यवहार को अंत:भित्तियों मं दफन कर नयी दुनिया को ह्रदयंगम करने!कोई नयी बात तो नहीं है,सप्ताह में अमूमन एक सदस्य का इज़ाफ़ा हो ही जाता है!…महीने में प्राय: एक भगवान को प्यारे भी हो जाते हैं! ऐसे ही संतुलन क़ायम रहता है! पर आज विशेष ये है कि सदस्य का नाम ‘हीरामणि’ ने ‘सोफिया डिसुजा’ को उद्वेलित कर रखा
है..कहीं ये वही हीरामणि तों नहीं..जिसकी साँसों की ख़ुशबू से वो बेचैन हो जाती थी..जिसके बग़ैर अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थी…उसके मन पे कहाँ नियंत्रण हो पा रहा है …झाँक कर देख ही लिया..लम्बी क़द काठी का वृद्ध, बढी हुई दाढ़ी,रंग भी गोरा ही लग रहा है.. लगता है देखभाल की कमी रही है.. कमर भी थोड़ी झुकी हुई पर आत्मविश्वासी कदम.. साथ में एक क़रीब चालीस पैंतालीस वर्षीय व्यक्ति… ये तो हमारे
हीरामणि से काफ़ी मिल रहा है… क्या वो वृद्ध हीरा… पहचान तो नहीं पा रही.. पर वो व्यक्ति तो हीरामणि का पुत्र ही लग रहा है…सोफिया निढाल सी आकर अपने बिस्तर पे पड़ जाती है.. जैसे वर्षों की थकान हो!
वो भी क्या दिन थे… कॉलेज की लाइब्रेरी में हम एक दूसरे को कनखियों से देखा करते थे.. किताब पे नज़र कम, हीरा की नज़रों पे नज़र अधिक हुआ करती थी.. साल बीत गये, पर हमने एक दूसरे से कुछ कहा नहीं..आँखों से तो हर पल इज़हार ही इज़हार हुआ करता.. पर शब्दों में कुछ कहने की हिम्मत कहाँ थी मुझमें! टीन एजर थे हम.. अभी-अभी तो मैट्रिक की परीक्षा पास कर कॉलेज में दाख़िला मिला था! हीरामणि तो
बुद्धि जीवी होने का स्वाँग रचता.. जैसे वो तो सिर्फ़ पढ़ने और दार्शनिक बातें करने को ही यहाँ है..अन्य लड़कों की तरह उसका दिल ख़ूबसूरत लड़कियों को देखकर धड़कता ही नहीं!… हूँह्ह्… अपनी बला से! न जाने क्या था उसकी आँखों में, क्लास की हर लड़की आँहें भरे बग़ैर नहीं रहतीं.. उस दिन तो मेरा कलेजा मुँह को ही आ गया था जब उसने कॉलेज की गेट पे मुझे अकेली देख ‘हलों सोफिया, आज तुम्हारी बस नहीं आई क्या?… चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ…’ कहकर एकदम से मेरे कंधे पे हाथ ही रख दिया था!
मैं कहाँ कोई जवाब दे पाई थी!…उसकी आँखों से आवर्तित वशीकरण किरणों ने मुझे पूरी तरह वश में ही कर लिया था मानो… बस स्टॉप तक उसके साथ मैं कदम से कदम मिलाकर चलती रही…उसने अपने कदम कुछ छोटे किये, मैंने कुछ बड़े.. अवचेतन मन में हम साथ साथ चलने की क़वायद करते रहे.. बस में साथ ही बैठे.. उसने मेरे भी टिकट के पैसे दिये.. मैंने मना भी नहीं किया.. उसने बताया, वो उसके घर के पास ही पाँच छ: मकान बाद ‘हिंदुस्तान लॉज’ में रहता है। उसके पिता गाँव के मुखिया हैं
पर वो उसे राजनीति में नहीं देखना चाहते, और सौभाग्य से पढनें में भी अच्छा है इसलिए उन्होंने मुझे शहर भेजकर पढ़ाने का निर्णय लिया! उसने ये भी बताया था कि उसे मुझसे मिलना प्रारब्ध था.. इसलिए वो यहाँ आया है!.. ये तो जैसे कल ही की बात हो..शर्म से उसने आँखें बंद कर ली.. मानो हीरामणि सामने खड़े होकर कह रहा हो… और वो किशोरी युवती ही हो!! सोचते सोचते उसकी आँखें लग जाती हैं!
सुबह नाश्ते के लिए घंटी बजती है..ओह्ह ये कॉलेज की घंटी है या मंदिर की..या गिरजा घर का घंटा… या हम दोनों की धड़कनें ज़ोर ज़ोर से धड़क कर टकरा रही हैं … और पायल की सरगम तो नहीं बन गईं… धड़कते दिल थामे सोफिया नाश्ते की पंक्ति में लगे अपनी बारी का इंतज़ार कर रही है , उसके ठीक सामने, समानांतर पंक्ति में नवआगन्तुक वृद्ध खड़े हैं… इस बार उसने पहचानने में ग़लती नहीं की…’ वो मेरा हीरा ही है…’
पर हिम्मत नहीं जुटा पाई कुछ बोलने की.. कहाँ पहले भी कभी पहल कर पाती थी वो… न जाने किस वशीकरण में आकर उसने सिर्फ़ समर्पण ही तो सीखा था!… शायद हीरामणि उसे देखे, पहचानें और अपने बाज़ुओं में भींच कर उसे फिर से तरंगित कर दे!!… नहीं नहीं अब ऐसा नहीं हो सकता है!! ये सब सोचते इन दोनों की बारी आ जाती है… काउँटर पर खड़े लड़के ने हीरा की ओर मुख़ातिब होते हुए पूछा “ बाबा आप यहाँ नये आये हैं, क्या नाम लिख दूँ?”….’ हीरामणि जायसवाल ‘
उन वयोवृद्ध ने कहा! एकाएक दोनों एक दूसरे को देखते हैं एक दूसरे की आँखों में देखते हुए मानो एक दूसरे में समाँ जाना चाहते हों… सारे शिकवे गिले, सुख दुख, प्यार मनुहार बस एक ही बार में ह्रदय प्रकोष्ठों में भर कर बंद कर देना चाहते हों!! … खैर, दोनों नाश्ता लेकर अपने अपने स्थान पे चले जाते हैं! … इस उम्र में तमाशा तो नहीं बन सकते थे न!
नाश्ते के बाद आश्रम के छोटे से बाग में सबों की ड्यूटी लग जाती थी, कुछ पौ धों की देख भाल ख़ुद करते, कुछ माली को आइडिया देते.. हीरामणि सफ़ेद लीली की क्यारियों के पास खड़े थे, तभी सोफिया ने बग़ल में आकर खड़े होते हुए पूछा ‘ क्या देख रहे हो हीरा?’
“मैं इन क्यारियों में तुम्हें देख रहा हूँ सोफिया, तुम आज भी मुझे खिली हुई सफ़ेद लीली नज़र आती हो!” हीरा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा… और आँखें बंद कर ली.. किशोरी सोफिया बंद आँखों के अंदर मुस्कुराने लगी..!
‘हीरा, तुमने मुझे क्यों नहीं खोजा?’ सोफिया ने शिकायत भरे लहजे में उसकी आँखों में इतने दिनों के संग्रहित प्रेम कलश उड़ेल दिया !
“सोफिया ऐसा कैसे हो सकता था?… तुम्हारे कॉलेज नहीं आने पर मैं तुम्हारे घर एक दोस्त को भेजकर पता करवाया.. मकान मालिक ने बताया कि तुम्हारे पिता का कहीं स्थानांतरण हो गया, तुमलोग चले गये ! फिर सोफिया, दस वर्षों तक मैं इधर उधर पागलों की तरह भटकता रहा.. पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था, किसी तरह से स्टेट बैंक ऑफ इन्डिया में किरानी के पद पर नौकरी लगी.. फिर क्या था, मेरे पिता ने मेरी शादी करवा दी.. एक बेटा है, पत्नी दस साल पहले ही ह्रदयाघात में चल बसी..बेटा अमेरिका में नौकरी करता है, मैं वहाँ जाना नहीं चाहा, इसलिए मुझे यहाँ छोड़ गया.. और फिर तुमसे यहाँ मिलना था, इसलिए मैं यहाँ आ गया!” कहकर हीरा ने उसकी आँखों में देखा, फिर आँखें बंद कर ली!
“बस करो हीरा, ये सब मत बोलो …अब तुम्हें मैं खोना नहीं चाहती… तुम्हारी इन्हीं बातों के सहारे मैं अब तक तुम्हारे इंतज़ार में जीती रही… ये मेरी धरोहर रही हैं हीरा…ये नहीं होतीं तो तुम्हारी निशानी को मैं तुम्हारा प्रतिरूप नहीं बना पाती..!!” सोफिया ने पानी से निकली मछली की तरह तड़पती हुई कहा.. और आँखें बंद कर ली!
“ क्या कह रही हो सोफू?” हीरा की आँखें फटी की फटी रह गईं…
“ मैं सही कह रही हूँ हीरा” सोफिया ने सर झुकाए सिले हुए अधखुले लवों से जवाब दिया!
“ये कब.. कैसे सोफिया..?”
“तुम्हें क्या याद नहीं…?बारिश के दिन थे… मुसलाधार बारिश हो रही थी,बस स्टॉप पे हम उतरे थे, चतुमने कहीं रूकने नहीं दिया..हम दोनों भीगते भीगते तुम्हारे लॉज पहुँचे,तुमने बोरसी भी जलाई थी.. हम गीले कपड़ों में ही बोरसी के किनारे बैठ गये थे.. पर तुमने मुझे अपने कपड़े देकर चेंज करने को कहा….न जाने कैसी मदहोशी छाई थी तुम्हें..फिर…!!” सोफिया ने बोलते बोलते आँखें बंद कर ली…
“सोफिया… सोफिया…” हीरा ने स्नेहिल आवाज़ में उसका नाम लिया..
“सम्भालो अपने को सोफिया..अब हम साथ हैं.. आगे बताओ… क्या हुआ”
“फिर होना क्या था हीरा.. मैं बीमार पड़ गयी, डॉक्टर से दिखाया गया, पारा टाईफाईड निकला.. महीनों तक बीमार रही.. फिर उल्टियाँ होने लगी… बहुत कमजोर हो गई थी..ब्लड यूरिन सब टेस्ट हुआ…पता चला मैं प्रेगनेंट हूँ मेरे माता-पिता बहुत नाराज़ हुए…स्वभाविक था! उगलोगों ने लड़के का नाम बहुत पूछा.. मैंने नहीं बताया..फिर मुझे मेरे गाँव ले जाकर एक पोलियोग्रस्त लड़के से मेरी शादी करवा दी गई.. वो शराबी था.. चार महीने बाद उसकी मृत्यु हो गई…मुझे वैधव्य का दंश भी झेलना पड़ा हीरा.. जब कि मैं विधवा नहीं थी…
मैंने उस व्यक्ति को कभी भी पति का हक़ नहीं दिया,वो शराब के नशे में दुत रहता..चरित्रवान भी नहीं था..! मुझसे कभी माँग भी नहीं की.. उसकी नज़र में मैं उसके बूढ़े माता-पिता की केयरटेकर भर थी!…ख़ैर… नौ महीने बाद मेरी और तुम्हारी बेटी ‘मणिमाला’ का अवतरण हुआ! वो तुम्हारी कार्बन कॉपी है हीरा.. तभी मैंने उसका नाम मणिमाला रख दिया!” बताते बताते उसने बोतल से एक दो घूँट पानी पिया..
आगे बताओ सोफिया.. हीरा ने कहा..
फिर हीरा…मैं ससुराल में ही रही.. मेरे माता-पिता को मुझमें अब कोई दिलचस्पी नहीं रही थी.. मेरी शादी करवाकर वो अपने कर्तव से मुक्त हो गये थे! सास ससुर तो मेरी बेटी को पाकर बहुत खुश थे.. उनकी पोती जो थी..उनकी नज़र में तो वो उनके नालायक पुत्र की पुत्री थी…पर तीन साल बाद उन दोनों की भी मृत्यु हो गई! मैं पुन: अनाथ हो गई! मैंने गाँव के सरकारी मिडिल स्कूल में शिक्षक हेतु आवेदन किया, तब तो नौकरी आसानी से मिल जाती थी..सो छोटी सी नौकरी कर मणिमाला का पालन पोषण किया..उसे मैने जी जान से प्यार किया..
वो पढ़ाई में भी बिलकुल तुम जैसी ही थी हीरा.. बैंक पी ओ में उसकी नौकरी हो गई! उसने अपनी पसंद से अपने ही कलिग, धीरज गुप्ता से शादी की…मैंने हिन्दू रीति रिवाज से बहुत धूम धाम से शादी करवाई थी हीरा!” कहते हुए हीरा की आँखों में देखा… उसे वहाँ कृतज्ञता के आँसू नज़र आये!
“मुझे मेरी बच्ची से मिलवाओ.. कहाँ है वो और उसका परिवार ?” हीरा ने सोफिया की आँखों में देखते हुए व्यग्रता ज़ाहिर की!
“वो इसी शहर में हैं हीरा… अब तो उसके बच्चे भी नौवीं दसवीं में पढ़ने लगे हैं!” थोड़ी मुस्कुराती हुई सोफिया ने कहा!
तो मिलवाओ न मुझे सोफिया… ज़रा देखूँ, मेरी प्रतिरूप कैसी हैं..! तुमने उसे कैसी बनाया है!!
हाँ हीरा, ज़रूर, वो हर रविवार को आती है… वैसे तो मैंने उसे उसके पिता के बारे में सब बता रखा है, पर ये उसके लिए सरप्राइज़ ही रखती हूँ… वो तो तुमसे मिलकर कितनी खुश होंगी.. न जाने कितनी बलैया लेगी!”
“ठीक है सोफिया… ऐज यू लाइक!”
अब सोफिया और हीरामणि हर दिन मिलते, पुरानी बातें याद कर हँसते रोते.. धीरे धीरे आश्रम में सभी को उनके सम्बन्धों की जानकारी हो गई…अधिकांशत: उनपर सहानुभूति रखते, कुछ ईर्ष्या भी करते..बिन ब्याहे पति पत्नी कह कर ताने देते! पर अब ये दोनों इन बातों से काफ़ी ऊपर उठ चुके थे! केवल एक दूसरे की फ़िक्र करते.. कभी दोस्त कभी पत्नी कभी बहन तो कभी माँ की किरदार में सोफिया पेश आती..अगाध प्रेम और निर्भरता एक दूसरे के लिए उन लोगों ने पा लिया था! इस बीच मणिमाला भी आती रहती,
उसने हीरामणि को बता दिया था कि माँ आत्मनिर्भर रहना चाहती है , इस कारण उसके साथ नहीं रहती, न ही कभी पैसे लेना पसंद करती हैं.. अपने पेंशन के पैसों से ही तो उसका काम चलता है! हीरामणि को तब सोफिया के लिए फ़ख़्र महसूस हुआ था! एकल अभिभावक का किरदार निभाती सोफिया एक सफल अभिभावक साबित हुई थी!
हीरामणि उच्च रक्तचाप के मरीज़ थे, एक रात उन्हें दाहिनी ओर पक्षाघात हो गया.. डॉक्टरी इलाज के अलावा सोफिया जी जान से उनकी सेवा करती.. छुप छुप कर रो भी लेती..पर हीरामणि को उसकी दशा मालूम थी..वो ईश्वर से प्रार्थना करता, “मैं नहीं रहूँगा तब तो ये रो रो कर प्राण त्याग देगी.. हे ईश्वर,हम दोनों को एक ही साथ ले जाना..!”इधर सोफिया भी ईश्वर से यही माँगती..”मेरे बग़ैर इनकी सेवा कौन करेगा.. हम दोनों को साथ ही ले जाना..”
एक रात हीरामणि को वाक़ई ह्रदय आघात आ गया.. अस्पताल पहुँचते पहुँचते उसके प्राण पखेरू उड़ गये! सोफिया फिर बुत हो गई.. हीरामणि के लड़के ने आकर मुखाग्नि मणिमाला के लड़के से करवाई और विधिवत श्राद्ध कर्म की रश्में निभाईं!
श्राद्ध कर्म समाप्त होते ही सोफिया सीढ़ियों से ऐसी गिरी की उठ ही नहीं पाई…कैसे रह पाती वो अकेली.. या हीरामणि वहाँ कैसे रह रहे होंगे….ईश्वर नें हीरामणि की राहों में ही सोफिया का मुख मोड़ दिया!
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स्वरचित, मौलिक,
अप्रकाशित, अप्रचारित
रंजना बरियार