भाभी के तेवर – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 मनीषा अपनी भाभी तानिया को खाना खाने के लिए छत पर बुलाने गई थी। उसने देखा कि तानिया किसी से फोन पर बात कर रही है। उसकी बातों से लग रहा था कि वह फोन पर अपनी मम्मी से बात कर रही है।

मनीषा ने सुना की तानिया कह रही थी -” मम्मी आपको तो पता ही है यह आ गई है मेरी छाती पर मूंग दलने तलाक इसका हुआ है और मुसीबत मेरी हो गई, पहले ही क्या घर के काम काम थे अब इस महारानी की भी सेवा करो, हां मम्मी आप सही कह रही हो ऐसा ही करूंगी। ” 

 मनीषा आंखों में आंसू लिए चुपचाप तानिया को बिना बुलाए वापस नीचे आ गई। वह सोच रही थी क्या यह वही मेरी भाभी तानिया है जो पहले मेरे साथ एक सहेली की तरह रहती थी अब तो इसके तेवर ही बदल गए हैं। मेरा तलाक हो गया, इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी यह बात भी इसे अच्छी तरह पता है

और जब से मैं यहां आई हूं तब से मैं कितना सारा घर का काम संभाल रखा है ताकि तानिया को मेरा यहां आना बोझ ना लगे। जब से मैं आई हूं यह सुबह 10:00 से पहले सो कर नहीं उठती,

यहां तक की इसने भाई रोहित का खाना भी बनाना बंद कर दिया है।उसका खाना भी बनाकर मैं ही पैक करती हूं और सोनू को भी तैयार करके स्कूल छोड़कर आती हूं मम्मी  की चाय भी बनाती हूं,तब भी अपनी मम्मी से कह रहीहै कि महारानी की सेवा करनी पड़ेगी।।  

 थोड़ी देर बाद तानिया छत से नीचे आ जाती है। अगले दिन मनीषा के भाई रोहित की छुट्टी थी उसे पता था कि मम्मी तो पिक्चर देखने चलेंगी  नहीं इसीलिए वह केवल चार टिकट ही लाया था।

इसीलिए उसने मनीषा और तानिया को तैयार होने के लिए कहा। जैसे ही तानिया ने सुना कि मनीष भी हमारे साथ जाएगी, वह कलपने लगी और चिढ कर बोली, ” मुझे कहीं नहीं जाना,घर में बहुत काम है और रात का खाना भी बनाना है। ” 

 रोहित-” मूड खराब मत करो तानिया, जल्दी तैयार हो जाओ अब तो टिकट भी आ चुके हैं। 

 तानिया -” दिखाओ जरा टिकट” 

 रोहित ने जैसे ही टिकट दिखाई तानिया ने एक टिकट उसके हाथ से लेकर फाड़ दी और बोली लो मैंने अपना टिकट फाड़ दिया अब जो अपनी बहन के साथ।” 

 मनीषा सब कुछ समझ रही थी उसने तानिया से कहा-” आप लोग बहुत दिनों से कहीं घूमने नहीं गए हैं आप लोग जाओ, मैं मम्मी के साथ घर पर हूं और मैं खाना भी बना लूंगी।” 

 तानिया फटाफट तैयार होने चली गई। भाभी के इस व्यवहार पर मनीषा को और उसकी मम्मी को बहुत दुख हो रहा था। 

 पहले भी एक बार जब रोहित ने सबको मंदिर चलने को कहा था तब तानिया ने रसोई में  बर्तनों के साथ तोड़फोड़ की थी। आवाज सुनकर साफ पता लग रहा था कि बर्तन जानबूझकर फेके जा रहे हैं तब मनीषा की मम्मी ने कहा था कि “रोहित हम मां बेटी कल मंदिर चले जाएंगे

आज तुम लोग होकर आओ।” यह सुनकर तानिया खुश हो गई थी और जल्दी से तैयार हो गई थी। रोहित को उसका व्यवहार खटकता था  पर वह उसे कुछ कहता नहीं था, यही उसकी कमी थी और तानिया इस बात का फायदा उठाकर सिर पर चढ़ती जा रही थी। 

 भतीजा सोनू जो अभी छोटा बच्चा था लेकिन फिर भी कुछ-कुछ बातें समझता था। अपनी बुआ से बहुत प्यार करता था और बुआ भी उसके ऊपर जान छिडकती थी। सोनू हमेशा चाहता था कि हम जहां भी घूमने जाएं, बुआ हमारे साथ जाए। एक बार मार्केट जाने के नाम पर उसने हुआ से बहुत जिद करी

कि आप भी साथ चलो, लेकिन तानिया नहीं चाहती थी कि मनीषा साथ जाए। रोहित मनीषा को कुछ दिलवाता था तो उसे अच्छा नहीं लगता था। तब सोनू ने बुआ को साथ ले जाने की जिद की थी। तानिया ने उसे डांटते हुए कहा था कि “तुझे भी घर पर रहना है बुआ के साथ” 

 तब सोनू ने कहा “हां ” 

 तानिया -” मैं तेरी मम्मी हूं मेरी बात नहीं मानेगा, आगे से कभी भी कहीं घूमाने नहीं ले जाऊंगी। ” 

 तब सोनू ने अपने छोटे-छोटे हाथ हिलाते हुए कहा -” मत ले जाना, वैसे भी जब मैं स्कूल से आता हूं, तो आप कहते हो कि बुआ से कह दे यूनिफार्म बदल दो, बुआ से कह दे खाना खिला दो, मैं अभी तेरी नानी से फोन पर बात कर रही हूं। बुआ मेरे सारे काम करती है, मुझे शाम को पार्क में झूला झूलाने भी ले जाती है, फिर बुआ हमारे साथ क्यों नहीं जा सकती। बुआ नहीं जाएगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा। ” 

 तब तानिया ने सोनू को एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया था। मनीषा ने सोनू को प्यार से समझाया-” सोनू बेटा मम्मी से इस तरह बात नहीं करते, वैसे भी आज मेरा कहीं जाने का मन नहीं है, आज आप मम्मी पापा के साथ घूम कर आओ कल फिर हम दोनों दोबारा चलेंगे। ” तब सोनू मान गया। 

 मनीषा रोहित को कई बार मना कर चुकी थी, भाई मुझे साथ चलने के लिए मत बोला कर, भाभी को अच्छा नहीं लगता। 

 अब मनीषा को लगने लगा था कि मैं इसके लिए इतना कुछ करती हूं पर इसे तो बिल्कुल शर्म नहीं है। तब मनीषा ने अपने लिए एक अच्छी जॉब ढूंढ ली और वह सुबह से शाम तक उसी में व्यस्त रहने लगी।

कहीं घूमने का मन होता तो अपने ऑफिस फ्रेंड्स के साथ चली जाती। वैसे भी उसकी मां उसकी शादी के लिए बहुत दिनों से एक अच्छा लड़का खोज रही थी। थोड़ा समय लगा

लेकिन एक अच्छे परिवार का लड़का मानस उन्हें पसंद आ गया। मानस भी तलाकशुदा था। दोनों का मंदिर में साधारण तरीके से विवाह करवाया गया। अब मनीषा जब भी अपने पति मानस के साथ आती तो तानिया मीठी-मीठी बातें करती। 

 तानिया -” मनीषा, अबकी बार तो बहुत दिनों बाद आई हो, आती रहा करो, तुम्हारी बहुत याद आती है। ” 

 मनीषा उसके फिर से बदले हुए तेवर देखकर हैरान थी। उसे पहले वाली बातें याद आ जाती थी और वह मन ही मन सोचती थी कि वाह भाभी वाह! आपने मुश्किल भरे दिनों में मेरा मायका

, मेरे लिए पराया कर दिया था, मुझे अपने फ्री की नौकरानी समझा था, जबकि मैं अपना घर समझ कर सारा काम करती थी पर आपने मेरे घर को ही मेरा नहीं होने दिया,, तब मैं आपके लिए बोझ बन गई थी

और अब आप मेरे पति के सामने अपनी बातों में मिठास घोलकर अच्छी बन रही हो। सुख में और दुख में मैं आपके अलग-अलग तेवर देखकर आपको अच्छी तरह पहचान लिया है। मेरी मां ने कोशिश करके अगर समय पर मेरा दूसरा विवाह करवाया ना होता तो आप तो शायद मेरा जीना ही हराम कर देती। 

 मनीषा यह सब कुछ मन में सोच रही थी और बाहर से केवल मुस्कुरा रही थी। तलाकशुदा या विधवा बेटी को  बोझ ना समझे। 

 स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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