#एक टुकड़ा
निर्मला अपनी तीन साल की बेटी और पति सुंदर के साथ सुखमय जीवन बिता रही थी। ये अलग बात थी की वो बहुत अमीर नहीं थे, पर उनकी छोटी सी दुनिया में वो बहुत खुश थे। दिन खुशी-खुशी बीत रहे थे। पर उनकी छोटी सी दुनिया में एक कमी थी,दरअसल उनलोगो ने प्रेम विवाह किया था।
तब से पति के घर वाले और निर्मला के घर के लोगों ने उन से संपर्क खत्म कर लिए थे। पति के घर वाले तो उसी समय उन्हें जान से मारना चाहते थे, पर किसी तरह उन्होंने अपना घर बार छोड़कर बहुत दूर यहां मुंबई में आकर अपनी दुनिया बसाई थी। मुंबई सपनों की नगरी है,
ये मेहनत करने वालों को कभी निराश नहीं करती। ऐसा ही कुछ निर्मला और सुंदर के साथ हुआ,दोनों ग्रेजुएट थे, दोनों को अलग-अलग कंपनी में काम मिल गया। सुंदर सेल्समेन और निर्मला रिसेप्शनिस्ट का काम करने लगी।
वैसे तो निर्मला का सपना वकील बनने का था पर अब घर से दूर आने के कारण आगे की पढ़ाई छूट गई थी, पर वो सुंदर को पाकर खुश थी। दोनों की कमाई से घर ठीक से चले लगा।शादी के 2 साल बाद बेटी पैदा हुई तो लगा कि ज़िंदगी की सारी खुशी मिल गई।
ऐसे ही दिन बीत रहे थे।आज दोनों की शादी की पांचवी सालगिरह थी। निर्मला ने सुंदर को सप्राइज देने की सोची। इसलिए वो बेटी को साथ लेकर बाज़ार गई हुई थी। बाज़ार से सब कुछ सुंदर की पसंद का लेकर आते हुए उसकी खुशी देखते ही बनती थी। वो घर आकर जैसे ही दरवाज़ा खोलती है तो उसकी तो दुनिया ही उजड़ चुकी होती है। उसका पति सुंदर छत के पंखे से लटका हुआ था।
उसकी चीख और रूदन सुनकर मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो जाते हैं। जितने मुंह उतनी बातें, कोई कुछ बोल रहा था, कोई कुछ।
निर्मला तो जैसे जिंदा लाश हो गई थी। उसका दिल कह रहा था कि उसका सुंदर आत्महत्या नहीं कर सकता। पर अब जाने वाला जा चुका था। आत्महत्या थी, इसलिए पुलिस भी आई। चाहे सुंदर के घर वालों ने उनसे सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए थे,पर उनको भी खबर दी गई। वो लोग आए और आते ही पुलिस और मोहल्ले वालों के सामने निर्मला
को ही सुंदर की मौत का दोषी ठहराने लगे। निर्मला तो जैसे पत्थर की हो गई थी। एक तरफ उसकी बेटी भूखी प्यासी रो रही थी। किसी को भी उनके दुख से सरोकार नहीं था।
इतने में सामने से सुरेश नाम का एक किन्नर सामने आया उसने मोहल्ले वालों और सुंदर के घर वालों को पुलिस के सामने ही उनकी अमानवीयता के लिए खूब सुनाया। सुंदर के अंतिम संस्कार के बाद निर्मला और बच्ची की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेकर उन्हें पूरी हिफाज़त से घर लाया। निर्मला तो बस कठपुतली बनी सूनी आंखों से बस सब देखे जा रही थी।
उसे ना अपना होश था ना अपनी बच्ची का। सुरेश ने एक-दो दिन देखा फिर उसे लगा ऐसे तो काम नहीं चलेगा।
उसने अपनी योजना के अनुसार निर्मला की बेटी को खूब तेज़ डांटा, बच्ची रोते-रोते अपने पापा को याद करने लगी,निर्मला के कानों में जब बच्ची के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी तो वो कुछ होश में आई। बच्ची को गले लगाकर बहुत तेज़ रोने लगी। सुरेश ने उसे रोने दिया। जब रोते-रोते निर्मला का मन थोड़ा शांत हुआ
तब चंपा ने बोला कि जब तक उसका भाई जिंदा है वो और उसकी बेटी पूरी तरह सुरक्षित है। असल में जब एक बार निर्मला अपने काम के सिलसिले में मुंबई की लोकल ट्रेन में यात्रा कर रही थी,तब सुरेश किन्नर चक्कर खाकर गिर गया था। वो किन्नर था तो कोई भी उसकी मदद लिए नहीं आ रहा था तब निर्मला ने उसकी मदद की थी, डॉक्टर से भी पूरा चेकअप करवाया था।
तब से दोनों के बीच भाई-बहन का रिश्ता बन गया था। सुरेश का संबल पाकर निर्मला थोड़ा संभली। उसने सुरेश को बताया कि उसका मन मानने को तैयार नहीं है कि सुंदर जैसा जीवन से भरपूर इंसान फांसी लगाकर आत्महत्या कर सकता है। सुरेश ने उसको सांत्वना दी, अपनी जान-पहचान के पुलिस इंस्पेक्टर की मदद से सुंदर की आत्महत्या की केस फाइल दोबारा खुलवाई।
वैसे तो मौका-वारदात पर कोई मौजूद नहीं था पर पुलिस के खबरी के आधार पर पता चला कि सुंदर के घर के कुछ लोग दो-तीन हफ्ते से सुंदर के संपर्क में थे वो सुंदर पर निर्मला को छोड़ने का दवाब बना रहे थे जिसके लिए सुंदर तैयार नहीं था। बस इन्हीं सब कारणों से उन्होंने सुंदर की हत्या करके,उसको आत्महत्या का रूप से दिया था।
ये सब पता चलने पर निर्मला ने अपने पति को न्याय दिलवाने के लिए अपने पति का केस खुद लड़ने की ठानी और इस लड़ाई में उसका सारथी बना सुरेश किन्नर। जिसने भाई बनकर उसका कदम कदम पर साथ दिया। उसको अवसाद से बाहर निकालकर उसको और उसकी बेटी को इस मतलबी समाज में सहारा दिया।
डॉक्टर पारुल अग्रवाल