अहमियत रिश्तों की (भाग-11) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

अब आगे…

देवेश उठ चुका है…

वह प्रथम के कमरे में आता है..

उसे निहारिका अपने कमरे में दिखाई नहीं देती  है …

वह प्रथम का कॉलर पकड़ लेता है …

कि तभी प्रथम अपने कॉलर से उसका हाथ हटाकर,,बाहर खिड़की की ओर देखता  है …

निहारिका फिर से कुछ मिट्टी में खोद रही है …

देवेश भी फुर्ती से खिड़की की ओर आता है …

यह क्या हो गया है इस लड़की को…

मैं तो परेशान हो गया हूं…

क्यों …

क्या हुआ सर …??

निहारिका जी क्या कर रही  हैं वहां इतने  अंधेरे में….??

प्रथम पूछता है….

तुम नहीं जानते प्रथम …

यह लड़की पागल है …

मानसिक रोगी है…

मैं कैसे  झेल रहा हूं इसे…

तुम मुझे गलत समझ रहे होगे…

तुम जब आये थे ,, तुमने देखा भी होगा…

कि मैं इसे  मार रहा था…

तुम  समझ नहीं पाए  कि मैं  क्यों मार रहा था  इसे जानवरों की तरह. ..

अब तो प्रथम का सर चकरा  गया…

कि आखिर माजरा क्या है…

निहारिका जी तो कुछ और बोल रही है…

और यह देवेश  सर  क्या कर रहे  है …

आप उनको क्यों मार रहे थे …??

क्या बताऊँ …

अब तुमने मुझे और निहारिका को इस तरह देख ही  लिया है तो…

तुम्हें बताता हूं ….

लेकिन पहले चलकर निहारिका को रोकना होगा…

क्यों सर…

वह क्या कर रही है …??

मैंने इससे पहले भी उन्हें एक बार मिट्टी में से कुछ खोदते  हुए देखा था…

वह हर रात ऐसे ही करती है…

जाकर मिट्टी को कुदाल से खोदती रहती है…

थक जाती है..

पसीना तक आ जाता है …

लेकिन फिर भी  मानती  नहीं…

जब तक मेरी नजर नहीं पड़ती है..

उसका यह काम चालू रहता है…

वह तो अच्छा है …

कि मैं जाकर के उसे रोक लेता हूं …

नहीं तो पता नहीं यह …

क्या करके माने ….

सर ऐसा क्या है उस मिट्टी में …??

इस मिट्टी में निहारिका किसी की हड्डियां ढूंढती है ….

और मुझे यह भी नहीं बताती कि वह किसकी हड्डियां ढूंढ रही है…

यह कई बार इतनी बुरी  तरह रोती हैं…

मुझे इसमें से उसे  निकालना  है,,वो ज़िन्दा हैं…

यह बोलकर जोर-जोर से चिल्लाती है….

लेकिन मैं समझ नहीं पाया…

एक  बाहर निहारिका घर पर नहीं थी…

तो मैंने उस जमीन  की खुदाई करवाई …

तो सच में इसमें किसी की हड्डियां थी…

मैने जल्दी से फिर से उसे मिट्टी से ढक  दिया…

लेकिन यह आज तक नहीं बताती …

कि उसमें क्या देखती हैं…

उनका वह क्या करेगी…

और यह है किसकी …

सर आपने तो मुझे डरा दिया …

सुबह का समय है …

आपका और निहारिका जी का जो भी मैटर है …

अब तो मैं इन सब से दूर ही रहूंगा…

मैं चलता हूं…

प्रथम के चेहरे की तो हवाइयां उड़ गई थी…

 माथे से पसीने की बूंदे उसके चेहरे पर आ रही थी…

वह बुरी तरह डर गया था …

कि यह तो कोई भूत का घर लगता है…

भूतिया हवेली है …

अब आज के बाद कभी भी निहारिका जी और देवेश से कभी नहीं मिलूंगा…

मैं पढ़ने आया हूं…

पढ़ाई करूंगा…

ये किस चक्कर में फंस  रहा हूं…

जल्दी से सरपट प्रथम नीचे की ओर जाने लगता है…

गेट से बाहर जाता ही  है कि निहारिका दौड़ती हुई आई. ..

वह प्रथम की बाजू  पकड़ लेती है….

छोड़िए मुझे निहारिका जी…

जाने दीजिए….

मैं लेट हो रहा हूं…

कहां जा रहे हो प्रथम…??

रुको ना…

मुझे भी साथ लेकर चलो …

मुझे यह देवेश मार डालेगा …

नहीं नहीं….

अब आप देवेश सर कर के साथ ही रहिए…

आप ठीक नहीं है …

आपकी हालत सही नहीं है …

सर ने मुझे बताया…

आप ठीक से इलाज करवाइए…

प्रथम तुम यह क्या कह रहे हो …??

एक तुम्ही  तो मेरा सहारा हो …

तुमसे मेरी उम्मीद थी…

तुम गलत समझ रहे हो …

मैं पागल नहीं हूं ..

मैं कैसे कहूं…

मैं पागल नहीं हूं…

निहारिका गिड़गिड़ा रही है….

अगर आप पागल नहीं है …

तो ये  मिट्टी में क्या कर रही हैं …

तुम जानना चाहते हो …

इस मिट्टी में क्या खोज रही हूं …

तो आओ बैठो यहां …

दिखाती हूं तुम्हें…

जोर-जोर से निहारिका मिट्टी में प्रहार करने लग जाती है …

मिट्टी का गड्ढा गहरा होता चला जाता है…

अगला भाग

अहमियत रिश्तों की (भाग-12) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

तब तक के लिए जय श्री राधे …

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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