रीमा की शादी को तीन साल हो चुके थे। वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी और ऑफिस की जिम्मेदारियों के बीच घर की देखभाल भी उसकी प्राथमिकताओं में थी। रीमा के ससुराल में उसकी सासू माँ, ससुर जी, और पति रोहन रहते थे। सासू माँ, शारदा देवी, पारंपरिक मूल्यों को मानने वाली एक सुलझी हुई महिला थीं। हालांकि, समय-समय पर सास-बहू के बीच छोटी-मोटी खटपट हो जाती थी, लेकिन रीमा ने अपनी सकारात्मकता और प्यार से हमेशा उस माहौल को खुशनुमा बना दिया।
शाम का वक्त था। रीमा ऑफिस से थकी-हारी घर लौटी। दरवाजे पर पहुंचते ही उसे रसोई से बर्तनों की जोर-जोर से बजने की आवाजें सुनाई दीं। रीमा समझ गई कि शारदा देवी शायद कुछ गुस्से में हैं। वह जल्दी-जल्दी कपड़े बदलने के बाद सीधे रसोई की ओर भागी।
जैसे ही उसने रसोई में कदम रखा, उसने देखा कि शारदा देवी कुछ बड़बड़ाते हुए बर्तन साफ कर रही थीं। रीमा ने बिना कुछ कहे, पीछे से जाकर अपनी सासू माँ को जोर से गले लगा लिया और हंसते हुए कहा,
“लाओ, मम्मी जी! बताइए, मैं क्या काम करूं? आप पूरे दिन काम करके थक जाती होंगी, हैं ना? अब आप आराम कीजिए!”
रीमा के इस अचानक प्यार भरे कदम से शारदा देवी का गुस्सा तुरंत छू मंतर हो गया। उन्होंने हंसते हुए कहा,
“अरे रीमा, तुम ऑफिस से थक कर आई हो। थोड़ी देर आराम कर लेती। मैं सब कर लूंगी।”
रीमा ने उनके हाथ से काम छुड़ाते हुए कहा,
“नहीं मम्मी जी, आप आराम करें। मैं हूं ना! पहले तो आपके हाथ की चाय पीती हूं, फिर आप मुझे बताइए कि क्या करना है।”
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यह सुनकर शारदा देवी ने प्यार से रीमा के गाल पर थपकी दी और मुस्कुराते हुए कहा,
“तुम्हारी यही झप्पी हर दिन मेरा गुस्सा दूर कर देती है। चल, पहले चाय पीते हैं।”
रीमा ने बचपन से अपनी मां को देखा था कि वह कैसे परिवार को प्यार और समझदारी से संभालती थीं। रीमा का मानना था कि रिश्तों में छोटी-मोटी समस्याएं आना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें प्यार और संवाद से आसानी से सुलझाया जा सकता है। उसने यह बात ठान ली थी कि चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, वह अपने ससुराल को एक खुशहाल परिवार बनाए रखेगी।
रीमा को यह भी पता था कि शारदा देवी, जो पूरे दिन घर के कामकाज में व्यस्त रहती थीं, कभी-कभी अकेलापन महसूस करती थीं। वह समझती थी कि उनका गुस्सा असल में थकावट और तनाव का नतीजा है। इसलिए वह हर दिन घर आते ही सबसे पहले अपनी सासू माँ के पास जाकर उनसे प्यार से बात करती।
एक दिन रीमा ऑफिस में एक लंबी मीटिंग के बाद जब घर पहुंची, तो उसने देखा कि शारदा देवी चाय बना रही थीं। वह दौड़कर उनके पास गई और कहा,
“मम्मी जी, आप क्यों इतनी मेहनत करती हैं? आप बैठिए, आज आपकी बहू आपके लिए चाय बनाएगी।”
शारदा देवी हंस पड़ीं और बोलीं,
“रीमा, तुम्हारी यही बातें मुझे हर दिन खुश कर देती हैं। भगवान करे, हर किसी को तुम्हारी तरह प्यारी बहू मिले।”
रीमा ने प्यार से कहा,
“मम्मी जी, आप भी तो मेरी दूसरी माँ जैसी हो। और माँ के लिए मेहनत करना तो खुशी की बात है।”
रीमा की इस आदत ने घर में एक अलग ही माहौल बना दिया था। पहले, जब भी किसी मुद्दे पर हल्की-फुल्की तकरार होती, तो रीमा का प्यार भरा व्यवहार माहौल को हल्का कर देता।
शारदा देवी ने भी यह महसूस किया कि रीमा केवल एक बहू नहीं, बल्कि उनकी बेटी की तरह है। वह भी अब रीमा का ध्यान रखने लगीं। अगर रीमा कभी थकी हुई होती, तो वह खुद काम संभाल लेतीं और उसे आराम करने को कहतीं।
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रीमा और शारदा देवी की यह आपसी समझ पड़ोसियों के लिए भी एक मिसाल बन गई। पड़ोस की महिलाएं अक्सर शारदा देवी से कहतीं,
“आपकी बहू तो बहुत ही समझदार और प्यारी है। ऐसी बहू हर किसी को नहीं मिलती।”
शारदा देवी गर्व से कहतीं,
“यह सब उसकी परवरिश का नतीजा है। उसने हमेशा रिश्तों को निभाना और सम्मान देना सीखा है।”
एक रविवार की बात है। रीमा ने अपने पति रोहन और सासू माँ को सरप्राइज देने की योजना बनाई। उसने घर का सारा काम सुबह-सुबह निपटा लिया और शारदा देवी को उनकी पसंदीदा मिठाई बनाकर दी। फिर उसने रोहन और शारदा देवी के साथ बैठकर परिवार की पुरानी तस्वीरें देखीं।
शारदा देवी भावुक हो गईं और रीमा से कहा,
“रीमा, तुमने इस घर को खुशियों से भर दिया है। तुम्हारी झप्पी सिर्फ मेरे गुस्से को नहीं, बल्कि मेरे दिल के सारे दर्द को मिटा देती है।”
रीमा ने हंसते हुए कहा,
“मम्मी जी, यही तो परिवार है। जहां प्यार और समझदारी हो, वहां किसी कलह की जगह ही नहीं होती।”
रीमा की प्यार भरी झप्पी ने सिर्फ घर में शांति बनाए रखी, बल्कि उसने यह भी साबित कर दिया कि परिवार को जोड़ने के लिए केवल संवाद और स्नेह की जरूरत होती है। आखिरकार, एक झप्पी का जादू कई समस्याओं का हल हो सकता है।
मूल रचना : मीनाक्षी सिंह