“दुर्गा -दुर्गा” – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

निधि जब से ब्याह कर आई थी,देखती थी,कि पति के नौकरी पर जाते समय सासू मां दरवाजे तक आकर दुर्गा -दुर्गा जरूर बोलकर मां दुर्गा को मन ही मन हांथ जोड़कर प्रणाम करती थीं।ऐसा मायके में कभी मां को नहीं देखा करते।शादी के एक महीने बाद ही सासू मां ने कहा निधि से”पति जब नौकरी के लिए निकले,हजार काम फेंक कर सामने खड़ी हुआ करो।शुभ होता है।तुम्हारी मांग का सिंदूर उसकी रक्षा करेगा।”

निधि असमंजस में थी।एक दिन पूछा सासू मां से”मां,अब तक तो तुम ही बाहर निकलकर दुर्गा -दुर्गा बोलती आई हो।अब शादी के बाद तुम्हारी जगह मैं क्यों जाऊं?तुम हो तो।”विनीता जी (सासू मां)ने बड़े प्रेम और अधिकार से कहा”मां-बाप के लिए उनकी संतान कभी बड़ी होती ही नहीं।

हम बुजुर्ग उसे आशीर्वाद के सिवा और क्या दे सकते हैं?तुम अब अर्धांगिनी हो विनय की।उस पर तुम्हारा सबसे पहले अधिकार है।पत्नी का बिंदी से दमकता माथा और सिंदूरी मांग देखकर जब भी विनय बाहर निकलेगा,ख़ुद को सुरक्षित रखेगा।हम अंदर से ही दुर्गा -दुर्गा बोल देंगे।”

निधि ने भी इस सार्वभौमिक सत्य को परख लिया था।अब वह खुद भी कहीं जाने से पहले सास-ससुर से कहती”मैं आ रही हूं ना मां -बाबा।”और वे अपनी जगह पर बैठे-बैठे ही हांथ जोड़कर दुर्गा -दुर्गा बोलते।

समय बीतने के साथ यह पूरे परिवार की आदत बन गई थी।बच्चे भी स्कूल जाने से पहले दादा-दादी का आशीर्वाद जरूर लेकर जाते ।इस मुफ्त  के आशीर्वाद के लिए ,रोज़ उनके पैर भी छूने नहीं पड़ते थे।यह संस्कार विश्वास में बदल गया।

अब जब भी स्कूल में टीचर से डांट या मार पड़ती बेटे को,तो घर आकर दादी से पूछता”आपने मुझे आज आशीर्वाद नहीं दिया था ना,इसलिए आज मार पड़ी है।पापा को तो दिया था आपने आशीर्वाद।”दादी सुनकर खूब हंसती। कई ऐसे मौके आए जब हड़बड़ी में निधि और विनय ठीक से बताकर नहीं जा पाए कि” आ रहे हैं”,और उनके आशीर्वाद के बिना बाहर निकलकर देखा कि बना -बनाया काम अटक गया।निधि के इस विश्वास को विनय ने दकियानूसी कहकर मजाक भी उड़ाया,पर निधि ने कभी यह नियम नहीं‌ तोड़ा।

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निधि‌ की सास दुनिया की सबसे बेहतरीन सास थीं भी।उन्हें अपनी औलाद और उनकी औलादों से बहुत प्यार था।निधि को भी उनमें अपनी मां ही दिखाई देती थी। निःस्वार्थ प्रेम करती थीं वे अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य से।ईश्वर की आराधना में लगी रहतीं थीं वे।उनकी कहीं बात हमेशा सच ही होती थी।

निधि के ससुर को लकवा मार दिया था।बायां अंग निष्क्रिय हो चुका था।उनकी सेवा निधि ही करती,सास मदद कर‌ देती थी नहलाने में।खाना निधि ही खिलाती थी।ससुर को गले में एक टॉवेल लपेटकर जब चम्मच से पतली खिचड़ी,दलिया या सूप पिलाती थी निधि,वे चुपचाप टुकुर-टुकुर देखते। कभी-कभी दाहिने हाथ से उसके सर पर हांथ फेरते।तब सासू मां कहती निधि से”बोल नहीं पाते हैं बाबा,पर दिल से तुझे आशीर्वाद देते हैं।

तू जो उनकी इतनी सेवा करती है ना,बेटी भी ना कर पाती।ईश्वर तुझे संतान से सुख देगा ,देखना।”निधि बड़बड़ाने लगती थी”मैं क्या किसी उम्मीद में सेवा करती हूं।मेरे पिता समान हैं ये।मैंने तो अपने बाबा को खो दिया।अब यही मेरे बाबा हैं।सासू मां भर भरकर आशीर्वाद देते हुए कहती”देखना,हमारी दुआओं का असर तुझे दिखेगा,चाहे देर से हो।”

इसी दौरान निधि के जेठ के बेटे की बारात जाना था।गौरव(जेठ का बेटा)ज़िद करके निधि और बच्चों को ले गया अपनी शादी में।बारात से वापस  आते ही निधि को याद आया कि आज तो होमियोपैथी डॉक्टर का एप्वाइंटमेंट है।स्किन का ट्रीटमेंट चल रहा था ।घर पहुंचते ही विपिन‌ ने अल्टीमेटम दे दिया “फटाक से तैयार हो जाओ।अभी चलना है।”,देर तो हो ही गई थी।जल्दी से दो रोटी बनाकर पहले उन्हें खिलाया,फिर सासू मां से बच्चों‌ को खिलाने के लिए के कहा।दोनों‌ बच्चे दादा-दादी के साथ ही सोते थे।

हड़बड़ी में‌ निधि‌ शादी‌ में‌ पहने सोने के गहने‌ उतार ही नहीं पाई ।तब तो बाइक ही कार होती थी,मध्यम वर्गीय परिवारों में। शाम के सात बज चुके थे।टेंशन भी हो रही थी ।लौटने में रात हो जाएगी। डॉक्टर से मिलकर ,दवा लेकर लौट ही रही थी निधि,विनय ।तभी दिसंबर के महीने में छुट पुट बारिश शुरू हो चुकी थी।

घर जाने का एक शार्टकट रास्ता था,पुल‌ के नीचे से।लोग कहते थे कि वहां छुटपुट चोर खड़े रहते हैं।निधि और विपिन कभी उस रास्ते से पहले नहीं आए।आज एक तो अंधेरा,फाटक में ट्रेन लगी थी।देरी से बचने के लिए दोनों उसी शार्टकट से आने को मान गए।पुल के नीचे अंधेरा था।जैसे ही विपिन की बाइक ढलाई से नीचे उतरी,गाड़ी की लाइट में एक लंबा सा आदमी बांस लिए खड़ा दिखा।

उसके पीछे एक और दिखा।कुछ दूरी पर तीसरा अपने बांस के साथ मुस्तैद खड़ा था।

सड़क में मुरुम थी पड़ी हुई।अब पीछे भी जाया नहीं जा सकता था।जब तक विपिन कुछ सोचते,एक जोरदार डंडा पड़ा,गाड़ी लहरा गई।उस अंधेरे में ना तो निधि को विपिन  दिखा और ना विपिन को निधि।मार जबरदस्त पड़ी थी।वे आपस में गांव की बोली में बोलने लगे”अभी,गाड़ी गिरेगी।तब ये दोनों भी गिरेंगे।तभी छीन लेंगे इनके समान।”

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गहने छिनने से ज्यादा तो निधि खुद की इज्जत जाने से डर रही थी।तभी विपिन ने फुसफुसाते हुए कहा “लगी तो नहीं “निधि ने भी हिम्मत से कहा “नहीं,सब ठीक है।चलो जल्दी।ना जाने पैशन की बाइक में हवाई जहाज का भूत आ गया था।वो तीनों कुछ समझ पाते इसके पहले ही, उन्हें भ्रम में छोड़कर बाइक आगे निकल गई।तब निधि को पता कि डंडे की ठोकर विपिन के कंधे ‌पर पड़ी है

जोर से।विपिन किसी हीरो की तरह जख्मी होकर भी बाइक फुर्ती से चलाकर घर में वे पहुंचे।पहुंचते ही बाइक आंगन में‌ पटक  दी विपिन ने।यह जो होने जा रहा था, बहुत बड़ा हादसा था। दवाईयां खाकर आराम करने के बाद सुबह पता लगाया तो मालूम हुआ कि वे लोग हफ्ते भी वहां से आते -जाते लोगों को लूट रहे थे। एक मोहल्ले वाले ने कहा”भाभी माता रानी का बड़ा आशीर्वाद है ,वरना हादसा हो जाता।”

निधि ने सासू मां के पैर छूकर प्रणाम किये तो चिंता हटाकर मुस्कुरा के बोली”जाते समय तुम तो कह के गई थी,पर वो नहीं बोला था।तुम लोगों का सुरक्षा कवच है हमारा आशीर्वाद। बिल्कुल चिंता मत करना।ठीक हो जाएगा विपिन  जल्दी ।हमारे रहते तुम पर कोई आंच नहीं आएगी।”

आज निधि को यह सत्य प्रमाणित होता दिखा कि माता-पिता के आशीर्वाद में भगवान के आशीर्वाद से ज्यादा शक्ति होती है।

शुभ्रा बैनर्जी 

#मां-बाप की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से बढ़कर शक्ति होती है

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