समाधि (भाग-6) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

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पिछले अंक ( 05 ) का अन्तिम पैराग्राफ ••••••

*******************************समाधि और सभी घर वालों ने अनुभव किया कि दिल्ली जाकर शुरू में तो एकलव्य ठीक रहा। जल्दी जल्दी घर भी आता था और लगातार सबसे फोन पर भी बात करता था लेकिन धीरे धीरे उसके फोन आने भी कम हो गये और उसने घर आना भी कम कर दिया। जब भी अनन्त और मौली पूॅछते , वह पढाई का बहाना बना देता।

अब आगे •••••••

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पुलिस की ट्रेनिंग इतनी कड़ी मेहनत और व्यस्तता वाली होती है कि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से थक कर चूर हो जाता है। इसलिये ट्रेनिग अवधि में समाधि का घर आना तो संभव नहीं था लेकिन वह समय निकाल कर सबसे बात कर लिया करती जबकि एकलव्य काफी दिनों तक घर वालों से बात ही नहीं करता था।

एक बार उसने एकलव्य को घर न आने और फोन पर बात न करने के लिये कहा भी – ” ओम, तुम इतना पढाकू कब से हो गये कि अंकल आंटी से फोन पर बात करने की भी तुम्हें फुरसत नहीं मिलती। हम दोनों के चले जाने से दोनों घर के लोग अकेले पड़ गये हैं। एक फोन ही तो सहारा है, वह भी हम लोग नहीं करेंगे तो ये लोग कैसे रहेंगे? मैं इतनी व्यस्तता और थकान के बावजूद बात कर लेती हूॅ, तुम भी चाहे जैसे हो दिन में एक बार बात जरूर किया करो।”

एकलव्य ने हॅसकर बात टाल दी -” अच्छा, मम्मी पापा ने अपनी लाड़ली बेटी से मेरी शिकायत की है लेकिन जब मैं पढाई नहीं करता था तब भी सबको परेशानी थी और अब जब अच्छी तरह पढाई कर रहा हूॅ तब भी सबको परेशानी है। तुम लोग तो मुझ जैसे बेचारे बच्चे को जीने ही नहीं दे रही हो।”

समाधि भी हॅस दी। बात वहीं खतम हो गई और सबने भी इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया।

एल०एल० बी० करने के बाद एकलव्य ने वहीं पर एडवोकेट राहुल सिन्हा के साथ कोर्ट का काम करना शुरू कर दिया। हालांकि अनन्त और मौली को यह पसंद नहीं आया। वह दोनों चाहते थे कि अगर एकलव्य को वकालत ही करनी है तो कानपुर में ही करे लेकिन समाधि ने उसे समझाया – ” आंटी, कानपुर में तो वह फिर पहले जैसा हो जायेगा । बड़ी मुश्किल से उसमें पढाई और भविष्य के प्रति गंभीरता आई है, वहॉ ही रहने दीजिये। कम से कम काम में तो लगा है।”

ट्रेनिंग के बाद समाधि की पहली पोस्टिंग लखनऊ में हुई। अब समाधि के लिये अनन्त, मौली, गिरीश और रत्ना की देखभाल करना आसान हो गया। एक तो लखनऊ और कानपुर पास होने के कारण या तो समय निकालकर वह खुद आ जाती या अपने किसी कानपुर या लखनऊ के सहयोगी या अधीनस्थ को भेजकर दोनों घरों की समस्यायें दूर कर देती। उसने एकलव्य को घर की जिम्मेदारी से पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया – ” तुम पूरी तरह से अपने काम पर ध्यान दो। बिल्कुल चिन्ता मत करना, अब मैं आ गई हूॅ, मैं सब सम्हाल लूॅगी। हो सके तो आगे की परीक्षाओं की तैयारी भी करते रहो।”

” हॉ, मैंने भी सोचा है कि कुछ समय तक राहुल सर के साथ काम करूॅगा फिर उसके बाद या तो अपनी स्वतंत्र प्रैक्टिस करूॅगा या फिर ज्यूडीशियरी की परीक्षा दूॅगा क्योंकि शादी तो तुम अभी करोगी नहीं। मैं ही खाली बैठकर क्या करूॅगा।तुम्हारे अन्दर तो आई०पी० एस० का कीड़ा बैठा हुआ है।”

” बिल्कुल……।” समाधि ने एकलव्य के हाथ पर हाथ रख दिया – ” तुम तो मेरे सपने और जुनून के बारे में अच्छी तरह जानते हो।”

एकलव्य ने फोन द्वारा समाधि की राहुल सिन्हा से बात भी करवा दी तो राहुल ने हॅसते हुये कहा – ” तुम्हारी अमानत मेरे पास सुरक्षित है। चिन्ता मत करना, किसी लड़की की ओर इसे देखने भी नहीं दूॅगा।”

” सर, मुझसे दूर जाने की तो ओम में हिम्मत ही नहीं है क्योंकि मैं मैं ऐसा होने नहीं दूॅगी। केवल अपनी तरह इसे भी एक कामयाब व्यक्ति बना दीजिये। अंकल और आंटी को इसकी बहुत चिन्ता रहती है।”

” यदि यह मेरी सलाह पर चलता रहा तो दौलत और कामयाबी इसके पैरों तले होगी। एक दिन इसके पास इतनी संपत्ति होगी कि ••••••।”

समाधि हॅस पड़ी – ” सर, आप भी इसके शेखचिल्ली जैसे सपनों के चक्कर में आ गये?”

राहुल ठहाका मारकर हॅस दिये – ” तुम इसके लायक तो नहीं हो लेकिन अब क्या हो सकता है? तुम्हारी अपनी पसंद है। पहले मुझसे मिलतीं तो शायद मैं ही …..।” सुनकर राहुल के साथ समाधि भी हॅस पड़ी। पोस्टिंग के एक वर्ष के अन्दर ही समाधि की गणना ईमानदार, कर्तव्य निष्ठ और जुझारू पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में होने लगी। कठिन और जोखिम वाले कार्यों में समाधि को ही प्रतिनिधित्व करना होता था।

एकलव्य घर पर भले ही बात न करे लेकिन समाधि और एकलव्य नित्य बात किया करते थे। एकलव्य अपनी दिन भर की बातें समाधि को बताता और समाधि एकलव्य से अपनी बातें साझा किया करती थी।

एक दिन समाधि ने एकलव्य को बताया कि लखनऊ और आसपास के इलाकों में ” सरफरोश” नाम का गिरोह बहुत अधिक सक्रिय है। लूट- पाट, चोरी, बलात्कार जैसे संगीन अपराधों के अतिरिक्त ऐसा भी पता चला है कि इस गिरोह का सम्बन्ध आतंकवादी संगठन से भी है। ये लोग प्रशासन को चुनौती देते हुये वारदात करके ऐसे तरीके निकाल लेते हैं कि लाख प्रयत्न करने पर भी पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है।

समाधि ने उसे यह भी बताया कि यदि जल्दी ही कोई सफलता न मिली तो हो सकता है कि सरफरोश गिरोह को पकड़ने का कार्य उसे भी सौंपा जा सकता है क्योंकि अभी तक इस गिरोह का कोई भी सदस्य पकड़ा नहीं गया है। पकड़े जाने की संभावना होते ही उस गिरोह के सदस्य आत्महत्या कर लेते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस गिरोह के सदस्य मोबाइल या फोन का प्रयोग नहीं करते हैं , वे अपने संदेश सदस्यों के माध्यम से ही एक दूसरे तक पहुॅचाते हैं।

एकलव्य ने समाधि से एक वादा ले लिया था – ” सिम्मी, तुम्हारी नौकरी इतनी जोखिम वाली है कि मुझे हर समय डर लगा रहता है लेकिन जानता हूॅ कि मना करने पर भी तुम ऐसे अभियानों में जाने से मानोगी नहीं इसलिये कहीं जाने के पहले एक मैसेज जरूर दे दिया करो।”

” यह कैसी बेतुकी मॉग है तुम्हारी। छापा मारना, अपराधी को पकड़ना, मुठभेड़ करना ही मेरे कार्य का एक अंग है। मैं कहॉ तक तुम्हें यह सब बताती फिरूॅगी।”

” मैं यह सब कुछ नहीं जानता लेकिन खतरनाक अभियान जैसे मुठभेड़, छापा मारने के लिये जाते समय तुम मुझे मैसेज कर देना। अपने प्यार के लिये क्या इतना नहीं कर सकती? तुम्हारा मैसेज पढकर भी न तो मैं तुम्हें फोन करूॅगा और न ही कोई उत्तर दूॅगा लेकिन ईश्वर से तुम्हारी सफलता और कुशलता की प्रार्थना तो कर ही सकता हूॅ। मुझसे यह अधिकार मत छीनो।”

समाधि निरुत्तर हो गई और उसने एकलव्य की बात मान ली।

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समाधि (भाग-7) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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