Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

नई सोच – रचना गुलाटी

————-

बड़े ही लाड़-प्यार और नाज़ों से पली परी का विवाह एक अच्छे घर में कर दिया गया। नाम के अनुरूप ही परी सौंदर्य की मूरत थी और स्वभाव से भी विनम्र व दयालु। जैसे ही उसका गृहप्रवेश हुआ तो  सभी उसकी सुंदरता के कायल हो गए पर जब रिश्तेदारों को दहेज में कोई भी सामान न मिलने की बात पता चली पर सब उसे तिरस्कृत नज़रों से देखने लगे, तब परी के पति ने कहा कि जिसने अपने जिगर का टुकड़ा मेरे हाथों में सौंप दिया उससे बढ़कर तो कोई दहेज हो ही नहीं सकता।

स्वरचित

रचना गुलाटी

लुधियाना

 

लगन – संगीता त्रिपाठी

  ” मैं स्कूल नहीं जाऊंगा मेरे सहपाठी मजाक उड़ाते थे ,सब मेरा तिरस्कार करते है क्योंकि मैं अपंग हूं , पैरों से लाचार हूं “अमन दुखी स्वर में बोला ।

  “बेटा तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ,याद रखो “कोशिश करने वालों की हार नहीं होती “,बस कोशिश करना नहीं छोड़ना ,फिर देखना मजाक उड़ाने वाले एक दिन सब तुम्हारी प्रतिभा का सम्मान करेंगे “मां उमा ने समझाया ।

     मां का विश्वास और अमन की लगन ने उसे उसका मुकाम दिला दिया ,एक योग्य प्रशासनिक अधिकारी तो बना ही , विकलांग होते हुए भी जिले में बेडमिंटन का चैंपियन भी बना…।

                       —- संगीता त्रिपाठी 

    #तिरस्कार 

 

तिरस्कार – एकता बिश्नोई 

आठ साल की नेहा फुर्ती से बर्तन मांँजते अपनी मांँ को देख रही थी।थोड़ी सी देर हो जाने के कारण मालकिन ने मांँ को खूब सुनाई। नेहा रोज तो अपने विद्यालय चली जाती थी, आज अवकाश होने के कारण माँ के साथ चली आई। इतनी खरी खोटी सुनने के बाद भी माँ के चेहरे पर शिकन न थी। पापा जीवित होते तो माँ को यह काम कभी नहीं करने देते। मांँ का तिरस्कार होते देखकर नेहा की पलकें भीग आईं। उसने निश्चय कर लिया कि वह मन लगाकर पढ़ेगी और बड़ी होकर माँ को यह काम कभी नहीं करने देगी।

एकता बिश्नोई 

।‌। तिरस्कार से पहचान।। – डॉ बबिता कंवल

सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद ससुराल में रोज-रोज तिरस्कृत होने से शालिनी का मनोबल और हौसला टूटने लगा, ऐसा लगता जैसे उसकी जिंदगी खत्म हो गई हो । सब तरफ से निराश शालिनी को एक रोशनी की किरण समाज की ओर दिखाई दी , वो सबकुछ भूलाकर निस्वार्थ भाव से जरुरतमंदों की सेवा करने लगी जिससे उसे मानसिक संतुष्टि और खुशी मिलने लगी । उसकी एक अलग पहचान समाज में बन गई।वो आज उन सबका आभार प्रकट करते नहीं थकती जिन्होंने उसका हर कदम पर तिरस्कार किया। उसका मानना है कि वो उन्ही के कारण आज इस मकाम पर हैं।

स्वरचित –

डॉ बबिता कंवल

सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल 

 *बेबसी* – बालेश्वर गुप्ता

        आज रजनी फिर वाकिंग स्टिक को पोछा लगाने के बाद मोती राम जी के पलंग के पास रखना भूल गयी। घुटनो में दर्द रहने के कारण बिना सहारे चला नही जाता,उन्हें टॉयलेट जाना था,स्टिक तक कैसे पहुँचे यही समस्या खाये जा रही थी।पत्नी की मृत्यु के बाद निरीह से हो गये थे,मोती राम।जब से पैरों ने जवाब दिया तब से वे बेबस से हो गये थे।बेटे बहू के पास समय नही था,उनसे अपने बारे में बताना उन्हे एक धर्मसंकट सा लगती।उनके कमरे में भी वे यदा कदा ही आते,उनके चेहरे के भाव बताते कि उनका बूढ़ा बाप उनके लिये बोझ है।पिता के प्रति आदर के बजाय झल्लाहट के भाव अधिक होते।

       मोतीराम जी सोचते रहते करे तो क्या करे?एक दिन उनका भतीजा मिलने आया,उसने सब स्थिति समझी तो उसने कहा भैय्या ताऊ जी को मैं अपने साथ ले जा रहा हूं, कुछ सेवा का अवसर हमे भी तो मिले, सारी सेवा क्या आप ही करोगे?

     शायद ये बेटा बहू पर मर्मान्तक चोट थी।शर्मिंदगी के भाव चेहरे पर थे,पर मोती राम जी तो भतीजे के साथ गांव चले गये।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

तिरस्कार – डाॅक्टर संजु झा

अमन मन में सैकड़ों ख्वाब सँजोए अमेरिका पहुँच  गया।आरंभ में तो उसे वहाँ का खाना बहुत  अच्छा लगता था,परन्तु अब उसे उस खाने से विरक्ति-सी हो गई है।  अमन को दफ्तर  से आते ही बड़े जोरों की भूख लग गई। कुँवारे अमन को रसोई में जाकर कुछ बनाने का मूड नहीं था,इस कारण उसने खाना आर्डर कर दिया।   आज वही विदेशी खाना देखकर उसकी आँखें भर आईं और बरबस ही माँ की याद आ गई।माँ के हाथों के बने जिस खाने को भारत में हमेशा तिरस्कृत करता था,आज उसी खाने को यादकर उसकी आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगें।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

तिरस्कार – रंजीता पाण्डेय 

सुनीता , सुनीता सुन रही हो? की बहरी हो गई हो? शुभ (६ साल) को समझाती क्यों नहीं ? कैसे बात करने लगा तुमसे  |हमेशा गुस्से में बात करता है | किसी की बात नहीं सुनता | तुमने इसे बिगाड़ के रख दिया है |गुस्से में बिना नाश्ता क्या सुनील ऑफिस चला गया | 

ऑफिस जा के देखा उसकी बेटी शुभी का मैसेज था ” पापा आप मम्मी को ना डाटा करे” क्यों की आप बात बात पे मम्मी का तिरस्कार करते है ,शुभ ये सब आपको देख के ही सीखता है | 

अगर आप ही  मम्मी का तिरस्कार करेंगे,तो शुभ तो करेगा  ही |

सुनील को लगा बेटी बिल्कुल सही कह रही थी | बेटी को मैसेज किया ,मै आगे से ध्यान रखूंगा बेटा | अब ऐसी गलती नहीं होगी मुझसे | 

रंजीता पाण्डेय

तिरस्कार – सीमा गुप्ता 

“बहुत प्यारी जुड़वां बेटियों के पिता बनने पर आपको बधाई हो।”

पहले से एक बेटी का पिता मयंक, यह सुनते ही पत्नी और नवजात बेटियों को त्यागकर अस्पताल से भाग गया। #तिरस्कार से आहत पत्नी, बेटियों के साथ दूर चली गई।

मयंक का बंगला, गाड़ी, सब उस पर बोझ बन गया। वह अकेला चुपचाप अपनी ज़िन्दगी ढोता रहा।

अधेड़ावस्था में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हुआ। पत्नी और बेटियों ने निस्वार्थ सेवा कर उसे मौत के मुंह से बचाया।

जानकर, मयंक आत्मग्लानि से भर गया। स्वयं की नज़र में गिरा, वह अब अपने को सबसे तिरस्कृत व्यक्ति महसूस करता था। 

#तिरस्कार कई गुणा होकर उसके पास लौट आया था।

– सीमा गुप्ता ( मौलिक व स्वरचित)

#शब्द प्रतियोगिता

#तिरस्कार

तिरस्कार – सुनीता परसाई 

गिरजा के आते ही रीता चिल्लाने लगी “तुम लोगों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए ।दिन का कह के गई थी चार दिन में अब आ रही है”।

गिरजा कुछ न बोली चुपचाप काम करने लगी।

थोड़ी देर बाद रीता के पति रमेश छाती दर्द से घबराने लगे।रीता उन्हें सम्हाल ने लगी उसे कुछ नहीं सूझ रहा था।

“गिरजा”, “गिरजा” करके पुकारा और रीता रोने लगी।

गिरजा देखते ही समझ गयी,वह उनकी छाती दबाने लगी।उसके ससुर के हार्ट अटैक के समय डा.ने ऐसे ही किया था।

थोड़ी देर बाद रमेश को ठीक लगा।

गिरजा डा.को बुला लायी।

डा.ने रमेश का चेकअप किया।रीता ने उनकी सब स्थिति बताई।डा.बोले इन्हें तुरंत हास्पिटल ले जाइये।  समय पर गिरजा हार्ट पर पंप नहीं करती तो, कुछ भी हो सकता था।

रीता की आँखे भर आयीं ।उसने गिरजा को गले लगा लिया।और बोली “गिरजा मुझे माफ़ करना”।

रीता  को मन-ही-मन गिरिजा के प्रति अपने तिरस्कार पूर्ण व्यवहार का अफसोस हो रहा था।

सुनीता परसाई 

 जबलपुर मप्र 

तिरस्कार -नीलम शर्मा

“अंधे हो क्या? दिखाई नहीं देता?” नील अपनी चलती बाइक के सामने आए एक वृद्ध को देखकर चिल्लाया। “हां बेटा अंधा तो हूं”, वृद्ध बुदबुदाया और अपने रास्ते चला गया। नील घर पहुंचकर बैठा ही था कि उसका बेटा दौड़कर जैसे ही उससे लिपटा उसका नाखून नील की आंख में लग गया। नील की आंख लाल होकर सूज गई। दर्द से बुरा हाल था। डॉक्टर ने नील की आंख पर पट्टी बांध दी। नील के मन में पछतावा था कि उसने अंधे वृद्ध का तिरस्कार किया था इसलिए ईश्वर ने शायद उसे ये सजा दी।

नीलम शर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!