” क्या मां,आज आपने फिर ये दाल बना दी…. मुझे नहीं खाना ये खाना … ,, गुस्से में प्लेट सरकाते हुए कुशाल चिल्लाया।
” बेटा, दाल खाना अच्छा होता है । आज मैंने अच्छा सा तड़का भी लगाया है तू चख कर तो देख। ,, गीत मनुहार करते हुए बोली।
“नहीं मां, मैं बिलकुल नहीं खाऊंगा। तुम बहुत बोरिंग खाना बनाती हो… मेरे सभी दोस्त टिफिन में इतनी अच्छी अच्छी चीजें लाते हैं लेकिन आप रोज रोज वही सब्जी रोटी या पुलाव ड़ाल देती हो। मुझे नहीं खाना आपका बनाया खाना।”
दोनों मां बेटे की बहस सुनकर मोबाइल चलाते हुए रमेश जी भी बोल पड़े, ” क्या यार तुम भी… बच्चों को जो पसंद हो वो बना दिया करो… कुछ नहीं आता तो सीख लो बनाना। वैसे ठीक ही बोल रहा है कुशाल … रोज-रोज वही बोरिंग खाना।”
गीत बिल्कुल चुप थी लेकिन उसकी आंखें भर आईं। कितनी मेहनत से वो खाना बनाती है ये भी ध्यान रखती है कि सबको पौष्टिक आहार मिले फिर भी हर कोई नुक्स निकालता रहता है।
पिछले हफ्ते जब उसने छोले-भटूरे बनाए थे तो उसकी वजह से रमेश के पेट में दर्द होने लग गया था क्योंकि गरिष्ठ खाना उन्हें हजम नहीं होता था। अब सारे घर के काम के साथ साथ दो-दो तरह का खाना बनाना बहुत मुश्किल था लेकिन ये बात कोई समझता थोड़े ही है। सबको तो यही लगता है कि घर में रहने वाली पत्नी और मां के पास समय ही समय रहता है ।
ये तो लगभग रोज की हीं बात हो गई थी गीत चाहे कुछ भी बना लेकिन कोई ना कोई उसमें नुक्स निकाल हीं देता था। एक दिन गीत की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी । फिर भी सुबह से वो काम में लगी थी शाम को अचानक से उसे चक्कर आ गया और वो गिर पड़ी।
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जब होश आया तो देखा रमेश और कुशाल दोनों पास खड़े थे और डाक्टर उसका चेकअप कर रहा था वो हड़बड़ा कर उठने लगी तो डाक्टर ने डांटते हुए कहा, ” आप आराम से लेटी रहीए । आपका ब्लड प्रेशर बहुत कम है। लगता है आप अपना बिल्कुल ख्याल नहीं रखतीं।”
फिर डॉक्टर ने रमेश से कहा, ” इन्हें कुछ हल्का सा खाने के लिए दे दें और मैंने ये दवाईयां लिख दी हैं तये टाइम पर देते रहिए …. और हां एक दो दिन इन्हें आराम करने दें।”
रमेश और कुशाल चुपचाप एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। रमेश रसोई में जाकर देखने लगा कि क्या बना सकता है ? गीत तो बीमार होने पर उसे खिचड़ी या दलिया देती है….उसने भी खिचड़ी बनाना हीं तय किया लेकिन सामान का पता हीं नहीं था कि क्या कहां रखा है …. उसने कुशाल को आवाज लगाई, ” कुशाल ये दाल कहां रखी है??”
” पापा, मुझे क्या पता?? सामान तो मम्मी रखती है…. मैं मम्मी से पूछ कर आता हूं।”
जैसे तैसे पूछ कर दो घंटे में दोनों बाप बेटे ने खिचड़ी बनाई। प्लेट में डालकर गीत को खाने के लिए दे कर आए तो गीत की आंखें नम हो गई। बड़े प्यार से उसने खिचड़ी खाई और दवा ली।
इतनी मेहनत करने के बाद उन दोनों को भी भूख लग आई थी तो दोनों भी खिचड़ी खाने के लिए बैठ गए।
आज तो उन्हें खुद की बनाई खिचड़ी भी छप्पन भोग नजर आ रही थी। जैसे ही कुशाल ने एक चम्मच मुंह में डाली उसका मुंह बन गया ,” पापा, इसमें नमक कितना ज्यादा है…. और चावल भी कच्चे हैं … मम्मी कितनी अच्छी खिचड़ी बनाती है। ,,
“हां बेटा, तुम सही कह रहे हो.. खिचड़ी बिल्कुल भी अच्छी नहीं है …”
” लेकिन पापा… फिर मम्मी ने ये खिचड़ी कैसे खाई होगी!! और उन्होंने तो कुछ कहा भी नहीं !”
कुशाल भागता हुआ गीत के पास गया, मम्मी आपको खिचड़ी कैसी लगी??”
” बहुत अच्छी बेटा, इतनी अच्छी खिचड़ी मैंने आज तक नहीं खाई।” गीत ने प्यार से कुशाल के बालों में हाथ फेरते हुए कहा।
कुशाल की आंखें भीग गई । रमेश भी सर झुकाए खड़ा था।
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” साॅरी मम्मी, काश मैं भी आपकी तरह कभी आपकी तारीफ कर पाता। आप इतना अच्छा खाना बनाती हैं फिर भी हम कभी आपकी तारीफ नहीं करते लेकिन आप हमारी बनाई हुई इतनी बुरी खिचड़ी की भी तारिफ कर रही हैं।”
” हां गीत, कुशाल ठीक बोल रहा है। इस एक दिन ने हमें एहसास करा दिया कि तुम हमारा कितना ख्याल रखती हो। सच, जब सबकुछ अपने आप मिलने लगता है तो उस चीज की अहमियत हमें समझ में नहीं आती।”
गीत की पलकें भीग गई थीं। वो अपने अंदर एक नई उर्जा महसूस कर रही थी। सच जब अपनों का प्यार और साथ मिल जाता है तो आधी बीमारी तो ऐसे हीं ठीक हो जाती है।
लेखिका : सविता गोयल