भाग्यहीन – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

मौसी ,ताई, बुआ सबने आरती उतार दी नई बहू की ,और अब दादी पोते आयुष से कह रही थी बेटा आयुष बहू को लेकर अंदर आओ। नहीं दादी सबने तो आरती उतार दी लेकिन मम्मी ने नहीं उतारी वो दिखाई नहीं दे रही है कहां है मम्मी,बुलाओ उनको तभी मैं अंदर आऊंगा। बेटा जिद न करो फालतू में देखो नई बहू का गृहप्रवेश हो रहा है

शुभ शुभ करो तुम्हारी मम्मी नहीं आ सकती अभी। दूल्हा बना आयुष जिद पकड़े बैठा था ।आयुष की बड़ी बहन सोनिया मम्मी कामना को समझा रही थी चलो न मम्मी मैं हूं न आपके साथ कोई कुछ नहीं कहेगा ,आयुष जिद पकड़े बैठा है कि जब-तक मम्मी नहीं आएंगी मैं अंदर नहीं आऊंगा। कामना बोली सोनिया से लेकिन बेटा तुम्हारी दादी और ताई ने सख्त हिदायत दी है कि शुभ काम में सामने नहीं आओगी।

देखो न मैं कितनी भाग्यहीन हूं कि अपने बहू बेटे का स्वागत भी नहीं कर सकती कामना बोली । सोनिया मैं नहीं चाहती हूं कि मेरा ये भाग्यहीन की छाया मेरे बच्चों पर पड़े ।मैं तो हूं ही भाग्यहीन लेकिन मेरे बच्चों पर कोई परेशानी न आए नहीं तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगी । तेरे पापा के जाने के बाद तुम दोनों ने मुझे संभाल लिया नहीं तो मैं कहां जिंदा रह पाती कामना बोले जा रही थी और रोती जा रही थी।

                      कामना और अशोक का अच्छा खुशहाल परिवार था।एक बेटी सोनिया और बेटा आयुष था । घर में सास ससुर जेठ जेठानी तीन ननदें थी ।हंसता खेलता परिवार था।दो ननदों की शादी हो गई थी एक नन्द की अभी शादी नहीं हुई थी।जेठ जेठानी भोपाल में रहते थे और अशोक और कामना झांसी में और सांस ससुर गांव में रहते थे।

परिवार में काफी एकता थी सब मिलजुल कर रहते थे। अशोक बहुत ही खुशमिजाज और मिलनसार इंसान थे। आते जाते सबसे ही उनकी दुआ सलाम और बातचीत होती थी। मोहल्ले पड़ोस सभी जगह वो अपने बिंदास अंदाज के कारण सबके चहेते थे। चूंकि बैंक में थे तो बैक वालों को बहुत कम ब्याज में लोन मिल जाता था। उन्होंने लोन लेकर ही काफी बड़ा और बहुत सुंदर दो मंजिला मकान बनवाया था।

गाड़ी के साथ सारे ऐशो आराम घर में थे । जबकि बैंक में क्लर्क की ही पोस्ट पर थे लेकिन रहने सहन काफी उम्दा था ।और घर में हर चीज लोन से ही उठा रखा था। बेटी बड़ी थी और आयुष सोनिया से आठ साल छोटा था।

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             अशोक को शराब पीने की लत थी और गुटखा भी बहुत खाते थे ।सुबह से ही खाली पेट गुटखा मुंह में भर लेते थे और हर‌ वक्त गुटखा मुंह में रखा रहता था।घर में कामना बहुत गुस्सा होती थी और मना भी करती थी लेकिन इंसान कहां मानता है दिनभर बैंक में निकल जाता और‌शाम को दोस्तों के साथ बैठ गये घर में तो रहना ही कम होता था  तो बाहर खाते रहते थे ।

                 अब उनका ट्रांसफर झांसी की जगह उरई में हो गया ‌‌। वहां पर कोई मना करने वाला तो था नहीं खूब दम से गुटखा खाने लगे और शराब भी रोज पीने लगे। और वहां खाना भी बाजार का खाने लगे जो मिला वो खाया नहीं तो ज्यादा शराब पी ली तो ऐसे ही सो गए ।अब कुछ दिनों से उनको कुछ परेशानी होने लगी पेट में दर्द रहने लगा और भूख भी नहीं लग रही थी । खाना धीरे-धीरे कम सा होने लगा।

            इसी बीच बैठी की शादी आ गई तो शादी में भी व्यस्त हो गए और शादी के नाम पर भी अच्छा खासा बैंक से लोन ले लिया। शादी में व्यस्त हो गए और अपनी बीमारी को नजरंदाज कर दिया। लापरवाही करते रहे और धीरे धीरे बीमारी बढ़ने लगी। डाक्टर को दिखाया कुछ दवाएं वगैरह दिया टेस्ट भी कराया तो डाक्टरों को कुछ समझ नहीं आ रहा था

उन्होंने दिल्ली ले जाने की बात की । वहां पर सारे टेस्ट कराए गए तो आंतों में कैंसर निकला।अब तो सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।बेटी की शादी तो कर दी थी लेकिन बेटा अभी छोटा था।हाई स्कूल में था। अशोक जी का इलाज दिल्ली में चलने लगा। काफी पैसा खर्च हो रहा था। डाक्टर ने कहा आंतों का आपरेशन नहीं हो सकता।और मर्ज बढ़ता गया।

खाना पच नहीं रहा था क्योंकि कैंसर आंतों में ही था और बहुत तेजी से फ़ैल रहा था। आंतों ने काम करना धीरे धीरे बंद कर दिया। अब डाक्टरों ने पेट से एक नली डाल दी थी उसी से तरल पदार्थ डाल दिया जाता था।मुंह से खाना बंद हो गया था।अब अशोक जी चिल्लाते कोई मुझे खाना दे दो मुझे एक पूड़ी खिला दो जलेबी खिला दो मैं बिना खाना के मर रहा हूं ।

बहुत दयनीय स्थिति हो गई थी आखिरकार डेढ़ साल तक बीमारी से जूझते हुए अशोक जी ने दम तोड दिया ।

                  बेटा आयुष इंटर की परीक्षा पास कर चुका था और किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था ।अब पापा रहे नहीं इन्कम का कोई साधन नहीं था , काफी लम्बा चौड़ा लोन सिर पर चढ़ा हुआ था ।मात्र 45 साल की उम्र में कामना वैधव्य को प्राप्त हो गई थी । सारे अरमान उसके चकनाचूर हो गए । कहीं नौकरी भी नहीं कर सकती थी

कामना क्योंकि शारीरिक रूप से हर वक्त थोड़ी अस्वस्थ रहती थी कामना । अस्थमा की भी प्राब्लम थी । चूंकि अशोक को ऐश की जिंदगी जीने का शौक था ।और बचत कुछ था नहीं । अशोक जी भी मृत्यु के समय मात्र पचास साल के ही थे चूंकि शादी जल्दी हो गई थी तो बच्चे भी समय पर बड़े हो गए थे । ज्यादा फंड वगैरह भी नहीं बना और जो कुछ भी फंड था वो सब लोन चुकता करने में खत्म हो गया हाथ में पैसा कुछ आया नहीं।

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                   गांव में सास ससुर की कुछ खेती बाड़ी थी उसी से फिर उन्होंने आयुष के पढ़ाई का खर्चा उठाया।अब सांस ननदों के बीच में कामना बहुत दबी दबी सी रहने लगी थी हर समय की टोका टोकी। ज़रा से ढंग से कपड़े पहन लेती तो जेठानी और ननदें ताना मारने लगती ।ननद कहती भाभी हमारे भइया चले गए और आप साज़ श्रृंगार कर रही हो ।

हर समय कामना की आंख में आंख में आंसू रहते।फिर कामना की बेटी सोनिया मां की ढाल बनकर खड़ी हो गई और मम्मी को अपने साथ ले गई और कामना से बोली आप वैसे ही रहोगी जैसे पहले जब पापा थे तब रहती थी वैसे ही । कोई कुछ कहे तो मुझे बताना मैं जवाब दूंगी सबको । कामना तो अशोक के जाने पर टूट ही गई थी । वैसे भी शारीरिक रूप से वो कमजोर थी और भी कमजोर हो गई।बेटी सोनिया का संबल पाकर थोड़ा थोड़ा संभलने लगी थी ।

               आज आठ साल हो गए अशोक को गए हुए । बेटे ने इंजीनियरिंग कर ली है और अब नौकरी कर रहा है ।आज उसकी शादी है ।आज जब सब लोग इकट्ठे हुए तो फिर सब लोग कामना को टोकने लगे कि तुम विधवा हो कोई शुभ काम नहीं कर सकती। क्यों नहीं कर सकती मम्मी कोई काम पापा नहीं है तो इसमें मम्मी का क्या दोष है

उनको क्यों सज़ा दी जा रही है । क्या पापा के न रहने पर उनको ज़ीने का अधिकार नहीं है क्या।मैं ऐसी ही भाग्यहीन हूं बेटा सोनिया नहीं आप भाग्यहीन नहीं है चलो अपने बहू बेटे की आरती करो और उनको घर के अंदर ले आओ । कामना फिर भी थोड़ा संकोच कर रहूं थी लेकिन सोनिया ने हिम्मत बंधाई और साथ में ले गई हाथ में आरती का थाल पकड़ा दिया । कामना ने आरती उतारी बहू बेटे ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया और घर के अंदर आए ।

          कामना ने दोनों बच्चों और बहू को गले से लगा लिया ।और कहने लगी कहां हूं मैं भाग्यहीन ऐसे बच्चों को पाकर तो मेरे भाग्य खुल गए ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

24 नवंबर

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