“आप इतनी देर से फोन पर किससे बातें कर रहे थे?. ऐसा लग रहा था जैसे आप किसी से रुपयों के लेन-देन की बात कर रहे थे!”
दोपहर के खाने की तैयारी कर रही रश्मि के कान रसोई से सटे हॉल में बैठे अपने पति के द्वारा फोन पर किसी से रूपए पैसे को लेकर हो रही बातचीत पर काफी देर से लगे हुए थे। लेकिन उसे अभी तक यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर उसका पति पैसों की लेनदेन की बात किससे कर रहा है।
“रश्मि तुम इन सब बातों पर ध्यान क्यों देती हो! यह बताओ खाने में क्या बनाया है?”
“जब भी मैं आप से कोई जरूरी बात पूछती हूंँ आप हमेशा मुझे ऐसे ही बहाने बनाकर टाल देते हैं!”
“अरे भाई तुम रुपए पैसों की बात जानकर क्या करोगी! अगर रुपए मेरे पास होते हैं तो मैं सामने वाले की मदद कर देता हूंँ और जब मुझे जरूरत होती है तो वापस मांग लेता हूंँ! इसमें तुम्हें बताने जैसी कौन सी बात है।”
“आप मुझे बताइए तो सही! आखिर अब रुपए की जरूरत किसे आन पड़ी है? अगर जरूरी हुआ तो मैं अपनी तरफ से भी कुछ मदद कर दूंगी!”
रश्मि जानती थी कि राजेश उसे यूं ही कुछ बताने वाला नहीं है इसलिए रश्मि ने अपनी तरफ से सहानुभूति का दिखावा करना जरूरी समझा। रश्मि का निशाना सटीक लगा था। राजेश रश्मि को बताने लगा…
“मांँ कुछ रुपए मांग रही है! छोटे भाई के कॉलेज की फीस भरनी है!”
“एक बात कहूं, अगर आप बुरा ना माने तो!”
“हांँ कहो!”
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“कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे आपके घर वालों ने आपको चलता फिरता बैंक समझ रखा है! कभी छोटे भाई की कॉलेज की फीस के लिए तो कभी भतीजे के एडमिशन के लिए रुपए मांगने ने उन्हें जरा भी हिचक नहीं होती है! उन्हें तो ऐसा लगता है जैसे आप यहां नोट छापने की मशीन लिए बैठे हैं, उन्होंने रुपए मांगे और आपने छाप कर दे दिए!”
“यह तुम कैसी बातें कर रही हो रश्मि! जरूरत पड़ने पर अगर परिवार कि लोग एक दूसरे के काम नहीं आएंगे तो फिर वक्त आने पर कौन एक दूसरे के काम आएगा? और वैसे भी कभी ना कभी जिंदगी में हर किसी को किसी ना किसी की जरूरत ही पड़ती है।”
“लेकिन आपके घर वालों को तो हर रोज आपसे कुछ ना कुछ जरूरत पड़ी ही रहती है! और एक मेरे घर वाले हैं जिन्होंने आज तक कभी मुंह उठाकर मेरे बड़े भाई से अपनी जरूरत बताकर कभी एक रूपया भी नहीं मांगा होगा!”
“देखो रश्मि! एक बात तुम हमेशा याद रखना मदद उसी से मांगी जाती है जो मदद करता है! जो कभी मदद करता ही नहीं है उससे भला कोई मदद मांगेगा भी तो कैसे!”
“आप कहना क्या चाहते हैं?”
“मैं बस इतना कह रहा हूंँ रश्मि की मदद की जरूरत हर किसी को पड़ती है! लेकिन जरूरत पड़ने पर बाहर के लोगों से मदद मांगने से पहले हम अपने घर के लोगों से मदद मांगते हैं क्योंकि हम उन्हें हर हाल में अपना समझते हैं!”
“लेकिन कई बार ऐसा भी तो होता है कि, अपनों से रुपए लेने के बाद लोग रुपए वापस करना भूल जाते हैं!”
“हांँ यह बात तो तुम सही कह रही हो! इसीलिए तो मदद करने के बाद मैं भी जानबूझकर रुपए मांगने की बात भूल जाता हूँ! क्योंकि रुपए वापस मांगने के लिए अपनों को टोकना मुझे अच्छा नहीं लगता।”
“क्यों अच्छा नहीं लगता! रुपए देने के बाद कभी उनसे वापस मांग कर देखिए तो सही, आपको भी पता चल जाएगा कि कौन कितना अपना है!”
रश्मि की बात सुनकर राजेश ने रश्मि को समझाया।
“मुझे तो सब अपने ही लगते हैं अगर तुम्हें अपनों के अपनेपन पर शंका है तो यह काम तुम ही कर लिया करो।”
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“यह कौन सी बड़ी बात है! और वैसे भी अपने रुपए वापस मांगने में कैसी झिझक? आप बताइए तो सही आखिर रुपए वापस मांगने किससे हैं?”
रश्मि अचानक तैश में आ गई थी। लेकिन राजेश धीरे से मुस्कुराया…
“पिछले महीने तुम्हें बिना बताए मैंने तुम्हारे पिताजी के लीवर के ऑपरेशन के वक्त अस्पताल की फीस भरने में तुम्हारे बड़े भाई की मदद की थी! पूरी रकम तो मुझे याद नहीं वह तुम अपने बड़े भाई से ही पूछ लेना, लेकिन वह तुम्हें जितने भी रुपए वापस करें चुपचाप वापस ले लेना!”
कुछ देर पहले अपने पति को सलाह देने वाली रश्मि को राजेश बेहद सहजता से सलाह दे रहा था। लेकिन रुपयों के लेन-देन और अपनेपन का पूरा मामला समझ आ जाने के बाद राजेश के चेहरे के बदलते भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही रश्मि अचानक नि:शब्द हो गई थी। उसे कुछ जवाब देते नहीं सूझ रहा था।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)