क्या कहा? इस बार भी बेटा हुआ है, बड़ी नसीब वाली है, हमारी मीना, जो इसके होने के बाद चार बेटे और हो गये, हमारा तो जीवन सफल हो गया, ईश्वर ने एक बेटी और चार बेटे दे दिए, अब तो हमारा कुनबा और बढ़ेगा, सुरेश नानाजी जी ने पूरे गांव में लड्डू बंटवाये और ढोल नगाड़े बजवाकर खुशी मनाई थी।
वही उनके छोटे भाई मेरे रमेश नानाजी को एक के बाद एक चार बेटियां हो गई थी, दोनों बड़े परेशान थे, उन्हें चार बेटियां और सुरेश नानाजी जी को चार बेटे हुए थे।
अबकी बार जब नानीजी गर्भवती थी तो सबने बेटे की उम्मीद पाली थी और आखिरकार सालों बाद उन्हें भी बेटा हो गया, तो परिवार में खुशी की लहर दौड़ आई।
सभी एक परिवार में रहते थे, एक ही दुकान थी, उनकी मिठाई की दुकान पूरे गांव में प्रसिद्ध थी, आस-पास के लोग भी उनसे ही मिठाइयां लेने आते थे, शादी ब्याह के अवसर पर सबको मिठाइयां बनाने से फुर्सत नहीं मिलती थी, वो आधी रात तक दुकान में लगे रहते थे।
सभी बच्चे साथ में बड़े हो रहे थे, बेटियां तो सबसे पहले बड़ी हो जाती है, अब मीना मौसी के लिए रिश्ते देखे जाने लगे, क्योंकि सबसे बड़ी वही थी, लेकिन उनका रिश्ता कहीं भी नहीं बैठ रहा था, क्यों कि सबको लग रहा था कि एक ही बेटी है तो हम ऐसे वैसे घर और वर से शादी नहीं करेंगे।
पंडित ज्योतिष बस सलाह देते रहते थे कि शादी तो होगी पर अभी समय नहीं है, चार भाइयों की बहन मीना मौसी की अब उम्र हो चली थी, उन्हें भी कोई लड़का पसंद ही नहीं आ रहा था, उनकी अपनी शादी को लेकर हजार सपने थे, कहीं वो मना कर देती थी तो कहीं पर भाई मना कर देते थे।
हमारे नानाजी की बेटियों के लिए रिश्ते आने लगे थे, वो भी चाहते थे कि पहले मीना मौसी की शादी हो जाएं पर उनका रिश्ता कहीं नहीं हो पा रहा था।
बड़ी बहन के रहते छोटी का ब्याह कैसे कर दूं? मां ये तो मुझसे ना होगा, नानाजी ने अपना निर्णय सुनाया।
तब नानाजी की मां ने समझाया, ‘तेरे चार बेटियां हैं, एक-एक करके भी ब्याह करेगा तो समय लग जाएगा, इसलिए रिश्ता आ रहा है और सब कुछ ठीक है, तो ब्याह करने में बुराई नहीं है, इस बात पर सबने अपनी स्वीकृति दे दी।
मेरे नानाजी ने अपनी बड़ी बेटी का ब्याह यानि मेरी मां का विवाह धूमधाम से कर दिया, और उसे घर से विदा कर दिया।
फिर उन्होंने एक साल इंतजार किया पर मीना मौसी का रिश्ता कहीं ना बैठा तो उन्होंने फिर दूसरी का ब्याह भी तय कर दिया और धूमधाम से शादी कर दी।
मीना मौसी के लिए भी रिश्ते देखे जा रहे थे, पर कहीं संजोग बैठ नहीं रहा था, एक ही बेटी है और उसका भी ब्याह नहीं हो पा रहा है, लड़के वाले आते थे और मौसी मना कर देती थी, ये सोचकर बड़े नानाजी और नानीजी बहुत परेशान रहते थे, उनकी रातों की नींद उड़ गई थी।
मीना मौसी के लिए रिश्ते आते थे, बड़े नानाजी पैसा भी बहुत लगाने को तैयार थे, लेकिन कहीं रिश्ता जुड़ नहीं पा रहा था।
जिन्हें परिवार वाले भाग्यशाली कहा करते थे, वो ही
अब भाग्यहीन कहलाने लगी थी।
अब नानाजी की तीसरी बेटी भी ब्याह के लायक हो गई थी, और चौथी बेटी भी, तो उन्होंने दोनों बेटियों का साथ ही एक ही घर में दो सगे भाइयों से ब्याह कर दिया, चार बेटियों के पिता ब्याह करके बेटियों की चिंता से मुक्त हो गये थे, लेकिन सुरेश नानाजी अभी भी परेशान थे, जगह-जगह रिश्ता ढूंढकर थक गये थे।
एक सुबह उनके दूर के रिश्तेदार मीना मौसी के लिए रिश्ता लेकर आये, लड़के का अपना व्यापार था और वो लोग जल्दी शादी करना चाहते थे, ये सुनकर सबका चेहरा खिल गया, नानाजी ने तुरंत लड़के के पिताजी से बात की, शाम तक घर- वर देख आयें और रात तक तो रिश्ता हो भी गया, इतने लड़कों को नकार चुकी मीना मौसी को इस बार हां करनी ही पड़ी, परिवार वालों ने उनकी एक ना सुनी, क्योंकि उनकी उम्र हो गई थी।
घर में खुशी का माहौल था, सब भाई अपनी बहन की शादी की तैयारी में लग गये, और छोटी बहनें भी ससुराल से आ गई थी, गीत-संगीत हुए , मेंहदी रची और इन सबके बीच उनकी शादी हो गई, उनको घर से विदा करते वक्त सबके चेहरे खिले हुए थे।
उस रात बड़े नानाजी और नानीजी चैन की नींद सोये थे, एक महीने तक सब ठीक रहा, उसके बाद मीना मौसी का फोन आया कि इनको व्यापार में घाटा हुआ है तो पिताजी आप कुछ रूपयों से सहायता कर दीजिए, नानाजी ने एक बार में हां कर दी, और पैसों का इंतजाम कर दिया ।
उस दिन के बाद सब शांत रहा, मीना मौसी भी हंसी खुशी मायके आती-जाती रही, कुछ महीनों बाद फिर से उनके पति का पैसों के लिए फोन आया, इस बार नानाजी को अजीब सा लगा कि जंवाई होकर खुद पैसे मांग रहे हैं, फिर भी उन्होंने शर्म के मारे पैसे भिजवा दिए।
कुछ महीनों बाद एक सुबह मीना मौसी बुरी हालत में घर के बाहर खड़ी थी, बड़े नानाजी और नानीजी के होश उड़ गए, उन्होंने पहले बेटी को घर के अंदर लिया और फिर उससे सारी पूछताछ की।
पिताजी, “आपने मेरा ब्याह क्यों किया? मै कुंवारी ही अच्छी थी, उस आदमी ने मुझसे बस पैसों के लिए शादी की थी, उसे पता था कि मै इकलौती बेटी हूं तो मेरे मायके वाले मुझे बहुत सारा धन देंगे, इनको शराब और जुएं की बुरी लत लगी हुई है, ये इसमें लाखों रुपए डूबा चुके हैं, और इन्होंने पहले से शादी भी कर रखी है, मै तो केवल घर का काम करने और पैसे मंगवाने का जरिया थी, उसने मुझे मानसिक और शारीरिक तौर पर बहुत प्रताड़ित किया है, मै चार महीने गर्भ से हूं, और मै उस घर में वापस नहीं जाना चाहती हूं।’
अपनी बेटी के मुंह से ये सुनकर उनके पैरों तले जमीन सरक गई, इतनी बड़ी उम्र में ब्याही बेटी का, चार भाइयों की लाडली बहन का भाग्य ऐसा निकलेगा, ये किसी ने सोचा नहीं था।
बड़े नानाजी ने हार नहीं मानी, वो दूसरे दिन उसके ससुराल गये तो पता लगा कि वो तो घर बेचकर कहीं भाग गये थे, उन्हें पुलिस ढूंढ रही थी, क्योंकि वो ऐसे ही कारनामे जाने कितने शहरों में करके आये है।
कुछ दिनों बाद खबर आई कि उनके पति को जेल हो चुकी है, और अभी बाहर निकलने की कोई उम्मीद नहीं है।
अब तो मायका ही मीना मौसी का फिर से ठिकाना था, उसकी उदासी किसी से देखी नहीं जाती थी, पर उन्होंने भी इसे ईश्वर का फैसला मान लिया, पांच महीने बाद मौसी ने एक बेटे को जन्म दिया तो उनके खुश रहने की उम्मीद बंधी, इधर उनका बेटा बड़ा हो रहा था, और उधर भाई ब्याह के लायक हो रहे थे, सबसे पहले बड़े बेटे का विवाह हुआ, घर में भाभी आने का सबको चाव था, लेकिन ननद और उसका बेटा उसकी आंखों में चुभता था, वो उसको तो घर से नहीं निकाल सकती थी, पर उसने कभी उससे सीधे मुंह बात भी नहीं की, और अपने पति को मजबूर कर दिया कि वो दूसरे शहर में नौकरी कर लें, सारी उम्र क्या ब्याही और छोडी गई बहन का खर्चा हमें उठाना होगा? और अपने पति के कान भर दिएं।
विवाह के दो महीने बाद ही बड़े भाई ने दूसरे शहर की ओर रूख कर लिया, ऐसे ही धीरे-धीरे तीनों भाइयों ने भी विवाह के बाद अलग घर बसा लिये,
चारों मिलकर घर खर्च तो भेजा करते थे, चारों में से कोई बड़ी बहन को पूछता नहीं था, उन्हें अब बहन का और उसके बेटे का खर्चा अखरने लगा था, वो शुरू से लाड़ मे पली थी, बस थोडा बहुत घर का काम कर लेती थी, पर कभी आजीविका के लिए कमाने का नहीं सोचा, उन्हें भी सब समझ आ रहा था, लेकिन वो भी मजबूर थी।
मेरे नानाजी का बेटा भी अच्छा कमाने लगा था, वो उन्हें अपने साथ में ही लेकर चला
गया, मीना मौसी की स्थिति देखते हुए उन्होंने घर और दुकान से अपना अधिकार भी छोड़ दिया।
बड़े नानाजी अब बीमार रहने लगे थे, और नानीजी ने भी खटिया पकड़ ली थी, मीना मौसी अपने माता-पिता की मन से सेवा करती थी, और पूरा घर भी संभालती थी, दोनों ने सोच रखा था कि ये घर और दुकान इसके नाम कर देंगे ताकि ये बेघर ना हो।
लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था, एक दिन चारों भाई एक साथ आ धमके और जबरन घर दुकान अपने नाम करने पर जोर देने लगे, और बहन को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
मीना मौसी का बेटा भी अभी छोटा था, वो उसे लेकर कहां जाती, रात भर वो सोचती रही, और अगले दिन सुबह बिना बताएं घर से निकल गई।
वो हाइवे पर खड़े होकर बस का इंतजार कर ही रही थी कि तेज रफ्तार बस ने दोनों मां -बेटे को टक्कर मार दी, और मौसी की मौके पर ही मृत्यु हो गई, और बेटा गंभीर रूप से घायल हो गया, उसे अस्पताल में ले जाया गया , पूरे गांव में कोहराम मच गया, बड़े नानाजी और नानीजी ने भारी मन से विदाई दी, आज मौसी से ज्यादा भाग्यहीन कोई नहीं थी, पति था पर पति का कांधा ना मिला, सुहागन थी पर जाते वक्त सिंदूर ना मिला, बेटा था पर उसके हाथों मुखाग्नि नहीं मिली, ससुराल से कोई रोने भी नहीं आया, भाई थे पर वो भी जायदाद के लालची निकले, किसी ने लाडली बहन के लिए दो आंसू तक ना बहाए।
बड़े नानाजी और नानीजी यही प्रार्थना कर रहे थे कि उनकी बेटी का जैसा भाग्य था, वो संसार में किसी बेटी का नहीं हो।
मै रमेश नानाजी की सबसे बड़ी बेटी की बेटी हूं, जो अभी छुट्टियों में उनके घर आई हूं, और नानी मुझे मीना मौसी के बारे में बता रही थी।
ये सब सुनकर मेरी आंखें भीग आई, सच है जो बहन शादी के पहले भाइयों के लिए लाड़ली होती है, घर की रौनक, लक्षमी होती है, वो ही बहन शादी होते ही पराई और बोझ बन जाती है, रिश्ते कितनी जल्दी बदल जाते हैं।
इस किस्से से मुझे दो ही शिक्षा मिली कि एक तो लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए, दूसरा सही उम्र में विवाह कर लेना चाहिए।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना