आखिरी बार – कंचन श्रीवास्तव

सुबह के चार बजे थे जब रेखा की आंख बुरे स्वप्न के कारण खुली  , देखती भी क्यों ना आज साल भर होने को आया अस्पताल से घर और घर से अस्पताल की होके रह गई है।सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया है ना समय से खाना ना पीना और न होना, बिल्कुल अनियमित दिनचर्या ,इसकी वजह से वो कमजोर भी दिखने लगी है पर किसी की हिम्मत नहीं कि कोई कुछ कह सके।

कहे भी क्यों सेवा भाव तो उसकी खून में है जब से ससुराल आई है कोई ना कोई एक चारपाई लगाए पड़ा ही रहता है जिसकी पूरी जिम्मेदारी इसकी होती है।

खैर इससे ये घबराती भी नहीं पूरे मन से तीहमत दारी करती है और ईश्वर की ऐसी कृपा की सब ठीक भी हो जाते हैं।

हां ऐसा भी  नहीं कि कोई मरा नही पर अपनी उम्र पूरी करके मरे।साथ ही अनमोल तौफे के तौर पर बड़े बुजुर्गो ने ढेरों आशीर्वाद दे।

शायद यही वजह है कि मायके से लेकर ससुराल तक में सबसे कम पैसा होने के बाद भी कभी किसी चीज की नहीं है।

सबसे बड़ी चीज की सुकून और संतोष जैसा धन इसके पास है और ये जिसके पास है भला वो कभी दुखी कहां रह सकता ।

ये देखती है कि सबके घरों में सब कुछ भरा है फिर भी किसी के चेहरे पर सुकून नहीं है कारण सिर्फ इतना है कि संतोष का अभाव है।

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लोग इसकी उन्नति से जलते भी है इस भाव को भी इसने सबके हाव भाव से बखूबी पढ़ा।

पर बात आई गई खत्म हो गई सोच अपने में मस्त रहती।

फिर एक दिन अचानक पिता जी की तबियत खराब होने पर किया सभी भाई भोजाइयों ने पर जिसने लड़की होने के नाते इसका कभी मुंह देखना पसंद नहीं किया

खबर पाकर जी जान से सेवा में जुट गई। चुंकि मां नहीं थी तो रात दिन एक करके उनको खिलाना ,पिलाना समय समय से  दवा देना ,कपड़ा धुलना ,पहनाना सभी कुछ किया  जिसे देख सब तो सब कभी तबज्जों न देने वाले पिता ने भी दांतों तले उंगलियां दबा ली और सम्पत्ति में बराबर का हिस्सेदार बनाया पर इसने कहा नहीं पापा आपने मेरे सर पर अपने आशीर्वाद का हाथ रखा  यही बहुत है इससे मुझे जो खुशी मिली , वो अमूल्य है ,उसे ऐसा लगा कि जिसका अंश है वो उसने उसे अपना लिया।उसके लिए इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती । आज वो बहुत खुश हैं जो की खुशी उसके चेहरे से रवि उसके पति साफ पढ़ पा रहे हैं ।

पर ये क्या इतना बुरा स्वप्न देखके वो अचानक उठकर बैठ गई ,मानों किसी ने करुण स्वर में पुकारा हो रे………..खा………..  और बोली नहीं ….. नहीं…….ऐसा नहीं हो सकता खुशियों की उम्र इतनी भी छोटी नहीं हो सकती की चौबीस घंटे भी साथ न रहें।उसने भाई पंकज को फोन लगाया।तो पंकज ने फोन उठाया और फर्राई आवाज में बोला पापा ने अभी अभी दम तोड़ दिया जिसे सुन वो चीख पड़ी न………हीं……ऐसा नहीं हो सकता खुशियों की उम्र इतनी छोटी नहीं हो सकती की चौबीस घंटे भी संग न रहे।इतने में घर के सभी सदस्य जग गए क्या हुआ क्या हुआ कह कर रवि ने सीने से लगा लिया।

इस पर वो इतना ही बोली पापा अब हमारे बीच नहीं रहे

काश!

हम आखिरी बार जीते जी उन्हें देख पाते ।

सच आज उसने बाप बेटी के रिश्ते को दिल से महसूस किया था।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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