किस्मत वाली बहू – रोनिता : Moral Stories in Hindi

क्या बात है मां? कुछ कहना था? राज ने खाना खाते हुए अपनी मां प्रभा जी से कहा। 

प्रभा जी:   हां वह पूछना था कि आज भिंडी कैसी बनी है?

 राज:  हां अच्छी बनी है।

 प्रभा जी: वह तो बननी ही थी, भिंडी के काटने के तरीके पर ही उसका स्वाद निर्भर करता है, बहू को कितना भी कह लो थोड़ा छोटा काटो, पर उसे तो अपने मन की करनी होती है, इसलिए कभी उसके बने खाने में स्वाद ही नहीं आता। इसलिए आज मैंने सारी सब्जियां खुद काटी और उसे खड़े होकर मसाले वगैरा बताएं तब जाकर इतना स्वादिष्ट खाना बना है, वह तो बड़ी किस्मत वाली है जो मेरी जैसी सास मिली, जो उसे हाथ पकड़ कर सारा काम सिखाती है। जब प्रभा जी राज से यह सब कह रही थी रसोई में काम कर रही पूनम सब कुछ सुन रही थी।

पर यह सब उसे सुनने की आदत हो गई थी। पूनम और आज की शादी को अभी 1 साल भी नहीं हुआ था। पर पूनम अपनी सास को अच्छी तरीके से समझ चुकी थी। वह कोई भी काम कितने भी अच्छी तरीके से कर ले, नुक्स तो निकलेगा ही। इसलिए पहले पहल तो वह अपने कामों को सासू मां के बताए अनुसार सुधार कर भी लेती थी, पर फिर भी सासू मां नाम की प्रजाति को क्या कभी खुश किया जा सकता है भला? और जब से यह बात पूनम ने भी समझ ली तब से उसने भी प्रभा जी के हर नुक्स को एक कान से डालकर दूसरे कान से निकलना शुरू कर दिया। 

अगले दिन पूरे परिवार को किसी शादी पर जाना था। तभी प्रभा जी तैयार होकर राज के कमरे में आई और कहा, वाह! क्या जच रहा है यह कुर्ता तुझ पर, किसी की नजर ना लगे! 

राज:  मां! अब यह मत कहना कि यह कुर्ता भी आपने बनाया है, क्योंकि मुझे अच्छे से याद है दिवाली पर यह तो पूनम खरीद कर लाई थी। 

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प्रभा जी:  हां इसे तो बस चीज खरीदना ही आता है संभालना नहीं पता है इसलिए तो धोकर बस रख दिया था। पर प्रेस? वह कौन करता? वह मैंने किया तभी इसमें आज एक भी सिलवटें नहीं है, पूनम वही अपना मेकअप कर रही थी। प्रभा जी की बातें उस पर जैसे कोई असर ही नहीं डाल रही थी और वह अपने मेकअप पर पूरे तरीके से व्यस्त थी। फिर प्रभा जी ने कहा, बहु जिस तरह अपने रूप पर ध्यान देती हो ना, उसी तरह इस घर का और हमारा भी ध्यान रख लिया करो, तुम्हारा ही घर है तुम्हारा ही परिवार है। पूनम कुछ नहीं कहती और फिर सभी शादी में पहुंच जाते हैं। शादी में पहुंचते ही प्रभा जी ने कहा, बहू सर पर पल्लू कर लेना, यहां काफी बड़े बुजुर्ग होंगे, पूनम ने वैसा ही किया। तभी कुछ औरतें वहां आकर प्रभा जी से कहती है, अरे प्रभा बहन कैसी हो? बड़े दिनों बाद भेंट हुई, अरे वाह आपकी बहुत बड़ी सुंदर और संस्कारी है। 

प्रभा जी इतराते हुए कहती है, आखिर बहू किसकी है? हां वह बात अलग है की बड़ी किस्मत से ऐसी सास मिलती है। मैं तो बिल्कुल इसे अपनी बेटी की तरह रखती हूं और हाथ पकड़ कर सारा काम सिखाती हूं, वरना आजकल की लड़कियों का तो पता ही है, बस फैशन करवा लो, काम का तो कुछ आता ही नहीं। यह कहकर वहां सभी हंसने लगी। पर पूनम को काफी बुरा लगा, उसने मन में सोचा घर पर मम्मी जी तो करती ही है पर अब बाहर भी? इन्हें तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, उन्हें यह समझाना पड़ेगा कि उनका हुकुम जो मैं ना सुनू तो उनकी यह बड़ी-बड़ी बातें व्यर्थ ही हो जाएगी। 

अगले दिन पूनम रोज की तरह सुबह उठकर रात का टिफिन बनाती है, सासू मां को चाय देती है, नाश्ता वास्ता करके अपने कमरे में बैठकर अपना फोन चलाने लगते हैं। इधर प्रभा जी को लगता है वह दोपहर का खाना बना रही है। पर दोपहर हो गई और प्रभा जी को खाना नहीं मिला तो वह रसोई में गई, देखा खाना तो बना ही नहीं। उनको काफी गुस्सा आया और वह तमतमाती हुई पूनम के कमरे में गई तो देखा पूनम सो रही है। वह उसे हिलाकर कहती है क्या हुआ बहु दोपहर का खाना नहीं बनाया?

पूनम:  वो मम्मी जी! मुझे सब्जियां काटनी नहीं आती ना और ना ही मुझसे मसाले सही से डलते हैं, तो इसलिए आपको बुलाने गई थी। पर देखा आप माला जप रही है तो सोचा ठीक है आपका हो जाए फिर बोलूंगी, पर फिर मेरी आंख लग गई। 

प्रभा जी:  क्या? अब दोपहर में क्या खाऊंगी?

 पूनम:  एक काम करती हूं, खिचड़ी चढ़ा देती हूं, वह जल्दी बन भी जाएगी, उसके बाद पूनम खिचड़ी बना देती है। 

अब से रोज ऐसा ही होने लगा और दोपहर को प्रभा जी को रोज खिचड़ी खानी पड़ती। प्रभा जी पहले सुबह-सुबह कोई काम नहीं करती थी, बस रात को अपने बेटे के सामने अपनी बड़ाई करने के लिए सब्जियां काट देती थी, अब वह सुबह नाश्ता करके ही सब्जी काटने बैठ जाती है और उसके बाद भी पूनम उन्हें चैन से बैठने नहीं देती। कभी इसमें मसाले कितना डालूं?  छोंक किसका लगाऊं? यही सब में उन्हें उलझाए रखती है, एक दिन परेशान होकर प्रभा जी कहती है, बहू तुम्हें इतना काम तो आता है ना? फिर क्यों छोटी-छोटी बातों पर मुझे परेशान करती हो? तुम पहले भी तो दोपहर का खाना अकेले ही बनाती थी? 

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पूनम:   मम्मी जी! सच में आप परेशान होती हो? मुझे तो लगा था कि मैं कितनी किस्मत वाली हूं जो मुझे मां जैसी सास मिली जो मुझे सिखाने के साथ-साथ मेरी मदद भी करती है! आज पता चला आप मुझसे परेशान होती हो! 

प्रभा जी: सब समझ रही हूं मैं, यह बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं, तुम मुझे बताना क्या चाह रही हो? 

पूनम:   यही के हर काम में नुक्स अगर निकालना है तो अब हर काम आप ही कर लिया कीजिए। क्योंकि बात बात पर अपनी बड़ाई कर मेरे काम में कमियां निकालना यह आपकी आदत बनती जा रही है। पहले तो आप बस घर में ही करती थी अब तो आप हर जगह करने लगी हैं। मम्मी जी हल्दी, नमक, मिर्च और सब्जी कैसे कटी इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण उस खाने को बनाने वाले की मेहनत और प्यार है, जो आपने कभी नहीं देखी ना सराहा। नमक, मिर्च कम ज्यादा भी हो तो चल जाएगा, पर हमारे रिश्ते में इन सब का जो छोंक लग गया ना तो आपका बुढ़ापा बेकार हो जाएगा। मैंने पहले आपको कभी कुछ नहीं कहा, पर उस दिन शादी वाले घर में आपकी बातें सुनकर लगा आपको नमक, मिर्च का असली स्वाद तो चखाना ही पड़ेगा। 

प्रभा जी अब शायद दोबारा ऐसा करने से पहले सोचेंगी, पर मैं इस कहानी को पढ़ने वाली सारी किस्मत वाली बहुओं को यह कहना चाहूंगी, ज्यादा किस्मत अच्छी हो अगर ऐसी सास पाकर, तो अपना मुंह बंद करके रहने से बेहतर है, पूनम की तरह खुद को सच में किस्मत वाली बना लिया जाए, आखिर अपनी अच्छी किस्मत हमें भी तो महसूस हो। 

 

धन्यवाद 

रोनिता 

#किस्मत वाली

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