समाधि (भाग-3) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

पिछले अंक ( 02 )  का अन्तिम पैराग्राफ •••••••

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मौली के पीछे छुपे छुपे ही सिम्मी कहती – ” आंटी, यह अभी आपकी और अंकल की बात नहीं सुन रहा है। पढ़ेगा लिखेगा नहीं, तो इसको नौकरी भी नहीं मिलेगी। आपको क्या करना आगे चलकर खुद ही रोयेगा। आप लोग इसको मूॅगफली की रेहड़ी लगवा दीजियेगा। ” गली गली जाकर ” मू़ॅगफली गरम ••••• मू़ॅगफली गरम ••••• की आवाज लगाकर बेंचा करेगा।”

अब आगे •••••••

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उसके यह कहने पर समाधि के साथ मौली भी जोर से हॅस पड़ी लेकिन रत्ना ने समाधि के साथ मौली को भी डॉटा –

” तुम दोनों को मेरे बच्चे को चिढाने की जरूरत नहीं है।” फिर उसने एकलव्य के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा – ” तुम क्यों इन लोगों को अपना मजाक उड़ाने का अवसर देते हो? मेहनत से पढ़ा करो तो इन दोनों का मुॅह खुद बन्द हो जायेगा।”

” पढता तो हूॅ आंटी, अब नम्बर कम आते हैं तो क्या करूॅ?”

इस बात पर मौली और समाधि फिर हॅसने लगतीं और हॅसते हुये मौली कहती – ” केवल इतना ही पढ़ते हो कि फेल न हो सको, बाकी नम्बर तो तुम्हारे आस पास बैठे बच्चों की नकल करने से मिल जाते हैं।”

मौली के पीछे छुपे छुपे ही सिम्मी कहती – ” आंटी, आपने इसका नाम ही गलत रखा है। एकलव्य तो बहुत लगनशील थे। अपनी  लगन के कारण ही बिना गुरू के उन्होंने धनुर्विद्या सीख ली थी। एकलव्य जैसी लगन इसमें होती तो। अपनी कक्षा में नीचे से पहला नम्बर न रहता। इसका नाम तो भोंदूराम या बुद्धू चन्द्र रखना चाहिये।”

यह कहकर वह मौली के पीछे से ही ओम को जीभ निकाल कर चिढ़ाती। बस फिर क्या था ओम हाथ बढाकर  सिम्मी  के बाल पकड़ कर मौली के पीछे से खींच लेता और फिर शुरू हो जाता महायुद्ध। दोनों में इतनी घमासान लड़ाई और मार – पीट हो जाती कि मौली और रत्ना उन्हें अलग करने के चक्कर में थक कर बेहाल हो जातीं लेकिन के दोनों को छुड़ाना मुश्किल हो जाता –

” मम्मी मना कर लो इस छिपकली को। आपको इसकी गलती दिखाई नहीं देती है। मैं पढूॅ या न पढूॅ, इससे क्या मतलब? देखो कैसे बिल्ली की तरह नोंच लिया है। बन्दरिया ने  इतनी जोर से काटा है कि खून निकल आया है।”

” तुमने मेरे बाल खींचकर कितने सारे बाल उखाड़ दिये हैं, उसका क्या? इतना ही बुरा लगता है तो क्यों नहीं ठीक से पढाई करते हो? आंटी को दिन भर तुम्हें पढाई के लिये टोंकना पड़ता है। सारा दिन आंटी का मोबाइल चुराकर उसी में घुसे रहते हो। नहीं तो मैं रोज तुम्हें ऐसे ही मारूॅगी, नोचूॅगी और काटूॅगी।”

” अच्छा, फिर मैं भी रोज तुम्हारे बाल नोंच नोंचकर टकली कर दूॅगा जिससे कभी शादी न हो सके। सूर्पनखा जैसी लड़ाका और टकली से कौन शादी करेगा?

हॅसते हुये रत्ना और मौली दोनों को शान्त करतीं क्योंकि जानती थीं कि यह लड़ाई कुछ ही देर की है। दोनों को एक दूसरे के बिना चैन नहीं है, थोड़ी देर में फिर सुलह हो जायेगी और वे हॅसने खिलखिलाने लगेंगे।

बच्चे बड़े हो रहे थे। शिक्षा के सोपानों पर बढ़ते जा रहे थे। एकलव्य ने इण्टर मीडियट करके बी०एस०सी० के लिये कालेज में एडमिशन ले लिया। समाधि हाई स्कूल करके ग्यारहवीं में आ गई। अब समाधि और एकलव्य में मानसिक और शारीरिक के साथ भावनात्मक परिवर्तन भी आ रहे थे। अब उन दोनों में झगड़े भी कम हो गये थे।  एकलव्य बी०एस०सी०बाद एल० एल० बी० करना चाहता था।

एकलव्य को अब एक नया अनुभव हुआ जिसकी ओर कभी उसने ध्यान ही नहीं दिया था।अब समाधि के पास आने पर उसे एक अजीब सी झिझक सी होने लगी और उसे न देखने पर और भी बेचैनी होती। वह हर समय सिम्मी को देखना चाहता था लेकिन छुप छुपकर।अब उस बेबाकी और बेफिक्री की जगह एक प्रकार की झिझक ने ले ली थी।अब वह समाधि के चिढाने पर मुस्करा कर रह जाता।

कभी कभी मौली और रत्ना आश्चर्य करतीं – ” इन दोनों को क्या हो गया, अचानक ये राहु – केतु शान्त कैसे हो गये? न मार पीट, न लड़ाई झगड़ा।”

तब गिरीश और अनन्त दोनों को डॉटते- ” तुम लोग भी अजीब हो। अब भी क्या बच्चों की तरह लड़ते – झगड़ते ही रहेंगे? दोनों समझदार हो चुके हैं। इन मॉओं का वश चले तो बच्चों को गोद से बाहर ही न निकलने दें। ओम कालेज में आ चुका है, सिम्मी भी बड़ी हो गई है।”

एकलव्य को कालेज में लड़के लड़कियों को युगल रूप में देखकर समाधि की कमी महसूस होती। कालेज में जब भी कोई लड़की एकलव्य की ओर दोस्ती का भी हाथ बढाती तो एकलव्य को लगता कि वह कुछ गलत कर रहा है।

अचानक उसे अनुभव हुआ कि क्या वह सिम्मी को प्यार करता है?उसे समझ में नहीं आता कि क्या यह प्यार है? उसने तो बचपन से लेकर  अपने ख्यालों और सपनों में सिम्मी को छोड़कर किसी को देखा ही नहीं था। हमेशा एक ही लड़की को अपने निकट देखते रहने की इतनी आदत हो गई थी कि कभी जान ही नहीं पाया था कि साथ खेलकर और लड़ – झगड़ कर वह सचमुच समाधि को बचपन से ही प्यार करने लगा था।

कालेज आकर ही उसे पता चला कि वह सिम्मी को बहुत प्यार करता है। अब जब भी वह भविष्य की राह पर नजर डालता तो उसे लगता कि सिम्मी के बिना तो उसकी जिन्दगी ही सूनी हो जायेगी, समाधि में ही उसकी जिन्दगी का हर रंग समाया है। उसे हर राह पर अपने साथ समाधि ही नजर आती परन्तु उस लड़ाकू और पढाकू लड़की के मन की बात उसे पता नहीं थी। क्या वह भी उसे प्यार करती है? या उसे बचपन का केवल दोस्त ही समझती है?

धीरे धीरे दो साल और बीत गये। समाधि भी कालेज में आ गई। एकलव्य का भी बी०एस०सी० पूर्ण होने वाला था और उसके  बाद वह एल०एल०बी० करना चाहता था।

समाधि भी कालेज में आ गई लेकिन समाधि और एकलव्य के कालेज अलग अलग थे। एकलव्य के लिये अब अपने मन की बात मन में रख पाना कठिन होता जा रहा था। वह अपना प्यार समाधि के समक्ष व्यक्त करना चाहता था लेकिन साथ ही डरता भी था कि कहीं समाधि उसकी बात का गलत अर्थ न लगा ले। इसके बावजूद उसके लिये प्यार की आग को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा था। अभी तक अपने अन्दर की इस आग के बारे में किसी को नहीं बताया था। वह सबसे पहले समाधि को ही अपने प्यार से अवगत कराना चाहता था।

वह जानता था कि दोनों परिवारों में किसी को इस सम्बन्ध में आपत्ति होगी तो केवल समाधि को। मम्मी और पापा उसे अपनी बेटी ही मानते हैं।इसलिये वह किसी से कुछ कहने के पहले इस दुविधा को दूर करना चाहता था। यदि समाधि ने उसका प्यार स्वीकार कर लिया तो ठीक है वरना वह हमेशा के लिये इस बात को भूल जायेगा और वे दोनों हमेशा अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे। प्यार किसी पर थोपा तो जा नहीं सकता।

बाकी अगले अंक में •••••••

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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