इसी रविवार को समाधि का बेटा अस्तित्व लेफ्टीनेंट की ट्रेनिंग के लिये जाने वाला है लेकिन उसके पहले उसको अपने बेटे से किया हुआ अपना वादा पूरा करना है। जाने के पहले समाधि को उसे उसके जीवन की सच्चाई बतानी है।
उसे आज भी याद है वह दिन जब रक्तदान करके आये इन्टरमीडिएट के छात्र अस्तित्व ने उससे पूछा था –
” मम्मा, दादी ने बताया है कि पापा का रक्त ग्रुप ‘ बी’ पाजिटिव था और आपका ‘ओ’ पाजिटिव फिर मेरा रक्त ग्रुप ‘ ओ’ निगेटिव कैसे है?”
समाधि पहले तो अवाक रह गई। क्या जवाब दे बच्चे की अस बात का? अभी अस्तित्व इतना परिपक्व भी नहीं है कि सच्चाई का सामना कर सके। हो सकता है कि सच्चाई जानकर उसके कोमल मन को आघात लगे और वह इस बात को सकारात्मक रूप में न ले। किशोरावस्था की इस उम्र में बच्चे वैसे ही तमाम शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझते रहते हैं। वह अपने मेधावी बेटे को सच्चाई बताकर ऐसा कोई तनाव नहीं देना चाहती है जिससे उसका अध्ययन और भविष्य प्रभावित हो।
वह सोंच में पड़ गई। अस्तित्व को सच्चाई से अवगत तो कराना है ही। उसके जीवन की सच्चाई से उसे अवगत तो कराना है ही लेकिन अभी नहीं। अभी उसे अपने बच्चे के हाथों में उसके सपनों का आकाश थमाना है, किसी दुराव छिपाव का कोई इरादा नहीं था समाधि का। वह सोंच में डूब गई। अस्तित्व के दुबारा आग्रह करने पर अपने मन को कड़ा करके कहा –
” बेटा, कुछ सच्चाइयॉ ऐसी होती हैं जिनका उचित समय आने पर ही उजागर होना आवश्यक होता है, वरना बहुत बड़ा अनर्थ भी हो सकता है।”
” इस छोटी सी बात में ऐसा क्या है जिसको आप गुप्त रखना चाहती हैं। क्या मैं आपका अवैध ••••••।” कहते कहते रुक गया अस्तित्व।
सुनकर एक झटका सा लगा समाधि को परन्तु तुरन्त स्वयं पर नियंत्रण करके अस्तित्व को गोद में खींच लिया – ” तुम्हें अपने पापा के बारे में पता है फिर ऐसा कैसे कह सकते हो ?”
” फिर मेरा ब्लड ग्रुप •••••••।”
” तुम्हारी जिज्ञासा को समझ रही हूॅ लेकिन इस समय इतना ही कह सकती हूॅ कि कोई भी बच्चा अवैध नहीं होता। तुम भी पूर्णत: पवित्र हो और तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मैं उचित समय आने पर दूॅगी । इसलिये अभी तुम सब कुछ भूलकर अपनी पढाई पर ध्यान दो। एन० डी०ए०में चयनित होना तुम्हारा ही नहीं मेरा भी सपना है तो जिस दिन तुम ट्रेनिंग पर जाने लगोगे मैं तुम्हें सब कुछ बता दूॅगी। बस आज के बाद तुम इस सम्बन्ध में किसी से बात नहीं करोगे।”
और सचमुच उसके आज्ञाकारी बेटे ने आज तक न उससे कुछ पूॅछा और न ही अपने नाना-नानी और दादी -दादा से। अस्तित्व का रिजल्ट आ गया और चयन के पश्चात अब उसे ट्रेनिंग के लिये जाना था।
इसलिये आज सुबह ही उसने अस्तित्व से कह दिया था – ” रात मेरे कमरे में सोना। हम मॉ बेटे पूरी रात बातें करेंगे और मुझे तुम्हारी उस शंका का समाधान भी करना है जो मैंने उचित समय आने पर बताने के लिये कहा था। बस इतना याद रखना कि मेरे और तुम्हारे बीच के इस रहस्य को हम दोनों के सिवा कभी कोई न जान पाये ।”
इस समय वह बेड पर बैठी थी और उसकी गोद में सिर रखे लेटा अस्तित्व एकटक उसके चेहरे की ओर देख रहा था। समाधि ने ऑखें बन्द कर लीं और जबरदस्ती भुलाई उस सच्चाई की यादें खंगालनी शुरू कर दीं।
गिरीश की नौकरी के बार बार स्थानान्तरण के कारण समाधि और रत्ना कभी एक स्थान पर टिक कर नहीं रह पाये। हर तीन साल बाद वही कहानी दोहराई जाती। स्कूल बदलने और दोस्तों से अलग होने के कारण समाधि बहुत रोया करती थी। नई जगह जाकर जब तक वह नये दोस्तों से आत्मीयता स्थापित करती, गिरीश का दुबारा स्थानान्तरण हो जाता। रत्ना और गिरीश भी हर तीन साल बाद होने वाली परेशानी से अब ऊब और थक चुके थे। शुरू में जहॉ नई नई जगह जाने और देखने का उत्साह रहता था, अब वही सब बार बार दोहरा कर वे दोनों बुरी तरह परेशान हो चुके थे। इसलिये इस बार जब कानपुर से गिरीश का स्थानान्तरण दिल्ली के लिये हुआ तो रत्ना ने कहा –
” गिरीश, मुझे लगता है कि अब हमें यह खानाबदोशों वाला जीवन छोड़कर एक स्थाई आवास बनाना चाहिये। कब तक हम ऐसे ही भटकते रहेंगे। सिम्मी छोटी थी तब तक तो ठीक था लेकिन अब उसकी पढाई पर भी प्रभाव पड़ने लगा है इस बार बार के स्थानान्तरण के कारण।”
” कहती तो तुम सही हो। बार बार स्कूल और दोस्त बदलने से बच्चे को समस्या तो होती ही है। ऐसा करते हैं कि मैं अपने कुछ दोस्तों और ब्रोकर से कहकर किसी अच्छी कालोनी में एक मकान खरीद लेता हूॅ। अभी दस साल नौकरी बाकी है तो रिटायर होने तक लिया गया लोन भी समाप्त हो जायेगा और सेवा निवृत्ति के बाद अपने पास एक स्थाई निवास भी हो जायेगा। सबसे बड़ी बात कि मम्मी पापा भी अब बूढे हो रहे हैं, उन्हें भी अब हमारी जरूरत है। मेरा भी कानपुर से जाने का मन नहीं है लेकिन क्या करूॅ मुझे तो नौकरी के कारण जाना ही पड़ेगा।”
” हॉ, क्योंकि मम्मी -पापा तो शहरों के बन्द घरों में रहने आयेंगे नहीं। यहॉ रहकर हम लोग आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त उनके पास चले जाते हैं और उनके साथ पर्व त्यौहार भी मना लेते हैं। नहीं तो पहले की तरह वही साल में एक बार सिम्मी की छुट्टियों में आया करेंगे।”
” लेकिन सोंच लो, हम कभी अलग नहीं रहे हैं क्या मेरे बिना तुम अकेले घर बाहर सारी जिम्मेदारी सम्हाल पाओगी?”
” जिम्मेदारी तो मैं सम्हाल लूॅगी। सिम्मी भी बड़ी हो रही है, अब वह अपने बहुत काम खुद कर लेती है लेकिन तुम्हारे बिना हम दोनों कैसे रहेंगे?” रत्ना का मन भी दुखी हो गया।
” तुम चिन्ता मत करना। कानपुर से दिल्ली अधिक दूर नहीं है। मैं शुक्रवार की रात में आ जाया करूॅगा और सोमवार को यहॉ से सीधे ऑफिस चला जाया करूॅगा।”
आखिर दोनों ने मिलकर तय किया कि अब गिरीश अकेले जायेगा और रत्ना सिम्मी के साथ कानपुर में रहेगी। गिरीश के माता पिता भी जब इच्छा हो कानपुर उन लोगों के पास आ जाया करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर सिम्मी और रत्ना भी गिरीश की अनुपस्थिति में भी उन लोगों के पास चले जाया करेंगे। यही सब सोंचकर गिरीश और रत्ना ने एक नई बनी कालोनी में छोटा सा मकान खरीद लिया। हालांकि मकान अभी अधबना ही था लेकिन गिरीश के पापा ने यह कहकर उसे चिन्ता मुक्त कर दिया कि वह और गिरीश की मॉ कानपुर में रहकर पूरा मकान बनवा देंगे। गिरीश और रत्ना के इस निर्णय से वे दोनों वृद्ध बहुत खुश थे। साथ ही हर सप्ताह गिरीश तो आता ही रहेगा तो बाकी व्यवस्था वह देख लेगा।
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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर