खुला आसमान। – पूनम भटनागर। : Moral Stories in Hindi

 रीना , जरा अच्छी तरह साफ कर ये जगह, तेरा नाम रीना ही है ,ना, थोड़ा जोर से साफ क्यों नहीं करती, सीमा चिल्लाते हुए बच्चों से बोली। एक को डांट पड़ते ही सारे बच्चे जो कि 7,8थे,सहम गए, तथा पूरे जोर से कार्य करने लगे। सारे ही 10से 12साल के थे। सिर्फ सुमेधा  ही थोड़ी ज्यादा बड़ी  थी। उसने आंखों में पानी लिए सीमा से

थोड़ी दबी आवाज में पूछा, मैडम क्या रोहन अब ठीक है। सीमा उस पर गुर्राते हुए कहा, वह नहीं जानती, सब टाइम से काम खत्म करो। व अपने घर जाओ। मेरे बच्चे का जन्मदिन है , उसे यहां रह कर खराब मत करो।

   सभी बच्चे सुबह से काम में लगे थे। दो तो, रानू और रोहित तो ज्यादा छोटे थे। वे बस सब कुछ न समझते हुए  अपने नन्हे नन्हे हाथों से काम कर रहे थे।भूख लगने पर सीमा उन्हें रोटी की जगह डांट पिला देती, तब किसऩू जो उनसे दो साल बढ़ा था, समझा कर काम में लगा देता। ये सारे नाथ, आनथालय के बच्चे थे, वो अनाथालय जो बच्चों का ध्यान कम रखते, तथा उनकी मदद की बजाय तंग करते। बच्चे कोई और रास्ता न होते हुए

यही रहने को मजबूर थे। ऐसा नहीं कि अनाथालय के पास पैसों की कमी थी। की जगह से डोनेशन आती थी। पर डोनेशन देने वाले कभी यह देखने का कष्ट नहीं करते कि उनका दिया पैसा उन बच्चों के ऊपर काम कर रहा है या नहीं। इसलिए ही सोमू, को बिमारी होने पर भी उसे डॉक्टर को तब दिखाया गया ,जब वह इलाज के लायक ही नहीं रहा।सोमू, जो कि कारपोरेशन के विधालय में पड़ते हुए

बहुत अच्छे अंक लेकर दसवीं में उतरीण हुआ। वह बाकी बच्चों के लिए भी अड़ जाता व उनका भला करा कर ही छोड़ता। अनाथालय की अटेंडेंट उससे सदैव नाराज ही रहती, पर वह बाकी बच्चों को उनका भला करा कर ही दम लेता।उसे दस दिन पहले बुखार आया, सुमेधा की सहायता से उसने दवाई ली। पर बुखार ठीक होने पर बार-बार आने लगा, सुमेधा अटेंडेंट से लड़ कर उसे अस्पताल ले कर गयी।

अस्पताल में पता चला कि उसे चिकनगुनिया हो गया है। उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया पर इलाज के लिए बहुत पैसा चाहिए था। सुमेधा जो कि बच्चों में सबसे बड़ी थी, उसने अटेंडेंट से सोमू का इलाज करने के लिए कहा पर उसने यह कह कर की अनाथालय के पास इतना पैसा नहीं, कह कर मना कर दिया। तब सुमेधा ने एक प्लान बनाया वह सारे बच्चों के साथ लेकर उस डाक्टर के पास गयी, तथा हाथ जोड़कर सारे बच्चों ने डाक्टर से कहा कि वह सोमू का इलाज करा दे। डाक्टर ने मदद करने का वायदा किया तथा उन्हें उनके अटेंडेंट के पास भेज दिया।

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   अटेंडेंट , जिसके बच्चे का जन्मदिन उसी दिन था, उसने कहा कि मेरे घर का जन्मदिन की तैयारी में सुबह से शाम हाथ बंटाओ तब वह उनकी मदद करेंगे। व उन्हें घर सीमा जो कि एक कूरुर महिला थी उसके पास भेज दिया।

 जो समझदार बच्चे थे, वे तो सोमू के ठीक होने के लिए तथा छोटे बच्चे उनकी मदद के लिए सुबह से शाम तक काम करने के लिए आ गये।

जब उनके बच्चे का जन्मदिन मनाया जा रहा था तब, जो सबसे छोटा बच्चा था , वह बोला, सुमेधा। दीदी क्या जन्मदिन ऐसा होता है, क्या मेरा भी जन्मदिन ऐसे ही मनाया गया था। सुमेधा की रूलाई फूट पड़ी वह फूट-फूट कर रोने लगी, यह सब जो ईलाज कर रहा डाक्टर था , वह भी सुन रहा था। सुमेधा से सारा सच जान कर बोला, सोमू का ईलाज मैं करवाऊंगा व सब बच्चों तुम्हारा जन्मदिन भी एक दिन इसी तरह मनाया जाएगा।

इतना ही नहीं उसने अनाथालय वालों से मिलकर सब बच्चों ‌की स्थिति संवारने में भी मदद की। सही मायने में आज ही बच्चों के लिए खास दिन बाल दिवस बन गया। पर हमें भी अपने आसपास चल रहे ऐसे बाल आलयों पर नजर रख मदद करने का बीड़ा उठाना चाहिए। अपने बच्चों के साथ यदि किसी जरूरतमंद की जिंदगी भी संवार ले तो एक शुभ कार्य ही हमारे हाथों संपन्न हो जाए। बाल दिवस केवल अपने बच्चों के लिए ही सीमित न रखें।इन बच्चों को भी खुले आसमान की आवश्यकता है, जिसमें विचरण कर वह भी योग्य नागरिक बन सकें।

  * पूनम भटनागर।

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