अब आगे…
कविता अपने बाबा दीनानाथ जी का हाथ पकड़ अंदर वाले कमरे में आ गई…
ऐसी का बात है गई लाली…
तू मोये अंदर लेकर आई हैं …
मेरा मन घबराए रहो है…
बता तो सही…
वो ना बाऊजी प्रथम ,,जो लड़का है…ज़िसे भाभी ने देखा था मेरे साथ…
मैं उसे पसंद करती हूं …
और वो भी मुझे…
उसने मुझसे कहा…
कि मुझसे शादी करेगा…
लेकिन मैं हिम्मत नहीं कर पाई आप लोगों से बोलने की …
उसकी नौकरी लगने वाली है…
उसके बाद आप लोगों को बता देती …
अगर आप हां करेंगे तो ही यह शादी होगी…
नहीं तो मैं उसे मना कर दूंगी …
वह वैसा लड़का नहीं है…
कि मुझे परेशान करें…
कविता के मुंह से यह बात सुन बाऊजी तो बुत से खड़े रहे…
अपने सर पर हाथ रख लिया उन्होने …
भाभिय़ां और घर के बाकी लोग खिड़की पर और दरवाजे पर कान लगाए सुनने में लगे थे…
लेकिन कुछ भी आवाज उनके कानों तक नहीं जा रही थी …
एक दूसरे से धक्का मुक्की कर रहे थे सब….
आज तक हमारे खानदान में किसी ने भी प्रेम विवाह ना करो है…
यह तू क्या कह रही छोरी….
ना तो उसकी जात बिरादरी जाने हैं…
कैसे हो…कहां को हैं …
और तूने इतयी दोस्ती बढ़ाई ली…
मेरी परवरिश को तो तूने बर्बाद कर दियो …
मोये तोते ऐसी उम्मीद न हती ….
तुझे तो बड़े लाडो से पाला मैंने….
दीनानाथ जी भावुक हो गए थे…
कविता ने दीनानाथ जी का हाथ पकड़ लिया…
नहीं-नहीं बाऊजी…
अगर आप नहीं चाहेंगे तो मैं कुछ भी ऐसा नहीं करूंगी…
लेकिन वह लड़का है ही इतना अच्छा…
हमारे बीच में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे घर की इज्जत में कोई दाग लगे…
पढ़ने में भी बहुत ही अच्छा है…
उसकी वजह से ही मैं भी पढ़ने में इतनी होशियार हो पाई हूं…
कि आजकल क्लास में इतने अच्छे नंबर लाती हूं …
आपको तो पता ही है..
कितने कम नंबर आया करते थे मेरे …
रही बात जाति बिरादरी की …
तो हमारी जाति का ही है…
यह बात मुझे शुरू से पता थी इसीलिए मैं इस रिश्ते में आगे बढ़ी….
बाऊजी एक बात कहूंगी …
यह लड़का मुझे जीवन भर खुश रखेगा…
इतना विश्वास है मुझे …
तभी संतोषी जी पर ना रहा गया ….
उन्होंने बार-बार दरवाजा खटखटाया..
का बात है रही अंदर …
जल्दी दरवाजा खोलो जी…
दीनानाथजी ने दरवाजा खोल दिया…
क्या कह रही तुमसे लाली…??
मोये तो बताओ ना..
आखिर मैं ऊँ तो महताई हूं य़ाकी…
सुन री संतोषी…
जो छोरा बताएं रही बहू…
कॉलेज में पढ़े है याके संग…
यह उससे प्रेम विवाह करना चाह रही…
अब तू ही बता …
का कह रहे तुम….
यह सुनने से पहले मेरे कान क्यों ना फट गए…
का कह रही तू छोरी …
दो-चार थप्पड़ संतोषी जी ने कविता को ज़ड़ दिए …
उसे कमरे में बंद कर दिया…
अब यह घर से,,कमरे से,,बिल्कुल बाहर न निकलेगी…
तभी बड़े भाई साहब बोले…
इसे तो मैं गंगा में बहा आऊंगा ज़िन्दा…..
पापा …
बुआ स्विमिंग जानती है …
वह तैर कर बाहर निकल आएंगी गंगा से…
पिंटू का 7 वर्ष का बेटा राजन बोला…
बेटे की ओर घूरकर पिंटू ने देखा …
तो मैं इसे जहर की पुड़िया दे दूंगा…
इसने ऐसा सोच भी कैसे लिया…
हमारे खानदान की इज्जत उछालने बैठी है…
नहीं नहीं …
भईया …
आप गलत समझ रहे हैं…
ऐसा कुछ भी नहीं है…
कविता बोली….
दीनानाथजी भी बहुत ही असमंजस की स्थिति में थे…
नाये छोरी को ऐसे बंद ना कर संतोषी…
क्या फैसला लेना है …
वह मोपे छोड़ दो…
देखता हूं …
कविता रोये जा रही थी..
किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया …
सभी लोग बाहर आ गए …
भाभी अभी तरह-तरह के मुंह बना रही थी…
बड़ो घमंड करते थे मां बाऊजी …
देख लो …
खुद की छोरी का गुल खिला रही…
सब बहुएं आपस में चर्चा कर रही हैं…
दीनानाथ जी अब शांत थे..
चुपचाप जाकर के अपने तखत पर बैठ गए …
इधर प्रथम कॉलेज का पहला दिन खत्म करके अपने रूम पर आ गया था…
दोनों लड़के मिलकर खाना बना रहे थे…
इधर निहारिका भी देवेश के साथ बाहर घूमने आई थी….
की तभी प्रथम का मन नहीं माना …
उसका मन पढ़ने में नहीं लग रहा था…
एक बार मुझे निहारिका और देवेश के रिश्ते का पता चल ज़ाये …
पता नहीं क्यों एक अजीब सी कशिश मुझे निहारिका की ओर खींचती चली जा रही है…
और उसका राज तो मुझे बहुत ही ज्यादा परेशान कर रहा है…
प्रथम ने देवेश को फोन किया…
देवेश बार-बार फोन काट रहा था..
क्योंकि वह दोनों घूम रहे थे…
अब तो प्रथम और परेशान हो रहा था …
कि ऐसी क्या बात हो गई …
फिर उसने फोन करना बंद कर दिया…
रात को 11:00 बजे देवेश का फोन प्रथम के फोन पर आया…
हां सर कहिए…
नहीं…
मैं देवेश नहीं हूं प्रथम…
मैं निहारिका बोल रही हूं…
देवेश मुझे बहुत मार रहा है …
आज मुझे जान से मार डालेगा…
मुझे बचा लो प्रथम …
एक दोस्त के नाते ही सही …
निहारिका की आवाज थी…
बहुत ही घबराई हुई थी…
और चिल्ला रही थी…
निहारिका जी ..
मैं कैसे..??
वैसे देवेश सर आपके क्या लगते हैं…??
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अहमियत रिश्तों की (भाग-9) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi
तब तक के लिए जय श्री राधे…
मीनाक्षी सिंह
आगरा