” देख, ये फल लाया है तेरा भाई… हम क्या ऐसे सड़े हुए फल खाएंगे!! और ये मिठाई ….. तुम्हारे मायके में ऐसी मिठाई खाते होंगे हमारे यहां तो नौकर चाकर भी ना खाएं ….. अरे औकात नहीं बेटी को देने की तो ले कर ही क्यों आते हैं ….. इस बार अपने भाई से साफ साफ कह देना कि ऐसी हल्की चीजें लेकर आने की कोई जरूरत नहीं है…. ,, मधु जी अपनी बहू के भाई के घर से निकलते ही उसके लाए हुए फल और मिठाइयों की जांच करते हुए अपनी बहू माधवी को सुना रही थी।
माधवी आज भी चुपचाप उनके तंज सुन रही थी। आखिर जब से शादी हुई थी सुनती ही तो आ रही है । चाहे कितना भी अच्छा सामान मायके से आए लेकिन उसमें कमी निकालना जैसे सास की आदत बन गई थी। माधवी जानती थी कि इस सामान को लाने में भी भाई का कितना खर्चा हो गया होगा जिसकी उसके ससुराल वालों को कोई कद्र नहीं है।
माधवी के ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं थी फिर भी मायके वालों को नीचा दिखाकर पता नहीं उन्हें क्या सुकून मिलता था।
माधवी के पिता अपनी बेटी की शादी के सपने संजो ही रहे थे कि एक दुर्घटना में वो अपने परिवार को बीच मझधार में छोड़कर चले गए। माधवी से बड़ा एक भाई तो था लेकिन वो अभी उसकी भी पढ़ाई ही चल रही थी । अचानक से इस हादसे ने माधवी के घर की आर्थिक नींव को भी हिला कर रख दिया था।
इस स्थिति में रिश्ते की एक बुआ जब माधवी के लिए एक रिश्ता लेकर आई तो मां और भाई ने ये सोचकर माधवी का ब्याह कर दिया कि आर्थिक तंगी के वक्त यदि अच्छा रिश्ता मिल रहा है तो कम से कम उनकी बेटी ससुराल में खुश रहेगी।
लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि दिखने में बड़े लोगों का मन कितना छोटा होता है….. जब भी माधवी मायके आती या फिर उसका भाई मायके से कोई शगुन लेकर जाता माधवी को हजार उलाहने सुनने पड़ते थे , ये क्या मिठाई लेकर आई है !! , ये कैसी सस्ती सी साड़ी पकड़ा दी तेरी मां ने…!! ये तेरे भाई को शर्म नहीं आती बहन के ससुराल दो डब्बे लेकर पहूंच गया?? ,,
माधवी को बुरा तो बहुत लगता था… अपने मायके का अपमान उसे अंदर तक भेद जाता था लेकिन फिर भी अपने माता-पिता के संस्कारों की वजह से पलट कर जवाब नहीं देती थी सिर्फ आंसू बहा लेती थी। उसे पता ही नहीं चला कि कब एक स्वाभिमानी लड़की इतनी लाचार बन गई। यदि पलट कर कुछ बोलना भी चाहती तो पति के गुस्से का सामना करना पड़ता था ….
. जब पति ही उसका साथ नहीं देता था तो वो कमजोर पड़ जाती थी। माधवी का पति अपनी मां की हर बात मानता था और उन्हीं के सुर में सुर मिलाकर माधवी को सुनाता था तो माधवी खून का घूंट पी कर रह जाती थी।
एक लड़की अपने पति का हाथ थामकर उसके साथ उसके घर में यही उम्मीद लेकर आती है कि जिस तरह वो लड़की उसके परिवार का सम्मान करेगी वो लड़का भी उसके और उसके मायके वालों का सम्मान रखेगा …. लेकिन यहां तो हर रोज उसके परिवार के सम्मान की धज्जियां उड़ाई जाती थी।
आज भी सास के ताने सुनने के बाद माधवी अपने कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी और अपने माता-पिता की बातें याद कर रही थी…. किस तरह पापा हमेशा गर्व से कहते थे,
” मेरी बेटी मेरा गुरूर हैं …. देखना ये कभी हमारा सर झुकने नहीं देगी ,,
ये बात याद आते ही माधवी को झटका लगा….. बस अब मैं और अपने मायके वालों को बेइज्जत नहीं होने दूंगी …. माधवी ने मन ही मन कुछ तय कर लिया। होली आने वाली थी तो माधवी के मायके से इस बार भी उसका भाई शगुन लेकर आया। भाई को देखते ही माधवी की सास की भौंहें तन गई। भाई को पानी देने के बाद माधवी ने भाई का लाया थैला खोलकर देखा
” ये क्या भाई …. तूं ये दो डब्बे सस्ती मिठाई लेकर आ गया !! अरे, यहां इस घर में ऐसी मिठाई कोई नहीं खाता। एक काम करो आज के बाद किसी त्यौहार पर कुछ लाने की जरूरत नहीं है ….. फ़ालतू में तुम परेशान होते हो …. मेरी ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं है जो वहां से कुछ आने का इंतजार करेंगे ….. आज के बाद ये औपचारिकता निभाने की कोई जरूरत नहीं है … ,,
भाई को अपनी बहन का ये सब कहना बहुत बुरा लग रहा था । बुरा तो माधवी को भी बहुत लग रहा था लेकिन आज वो अपने परिवार को इस झंझट से मुक्त करना चाहती थी। माधवी का भाई चुपचाप भरे मन से वापस चला गया । मन ही मन सोच रहा था कि मेरी बहन सचमुच पराई हो गई है।
माधवी भी अपने कमरे में जाकर फूट फूटकर रो पड़ी लेकिन अब वो कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी। मन ही मन सोच रही थी, मुझे तो उलाहने सुनने ही हैं … लेकिन अब मैं अपने मायके वालों की बेइज्जती और नुकसान नहीं होने दूंगी …. अब देखती हूं मेरी सास किन चीजों में कमी निकालती है !!
उस दिन के बाद माधवी का भाई कभी नहीं आता था ….. और ना ही माधवी उन्हें आने के लिए कहती थी। पीहर वालों की याद तो बहुत आती थी लेकिन उसने अपने मन को कड़ा कर लिया था …..
सास को उम्मीद नहीं थी कि बहू ऐसा करेगी वो तो सोच रही थी कि तानों से तंग आकर माधवी अपने मायके वालों पर ज्यादा लाने का दबाव डालेगी लेकिन अब तो जो आ रहा था उससे भी उन्हें हाथ धोना पड़ गया ….
लेखिका : सविता गोयल