बड़ी बहू – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

सामने बिस्तर पर रमा देवी बेसुध पड़ी हुई थीं।

डॉक्टर ने अल्टीमेटम दे दिया था, कभी भी कुछ भी हो सकता है। बस अंतिम सांस ही बची हुई है। जितने भी परिवार और रिश्तेदार हैं सभी को बुला लीजिए।

सुगंधा अपनी सास रमा देवी के पास बैठे हुए उनका सर सहला रही थी। वह बार-बार उनका हाथ चेहरा, माथा स्पर्श कर यह बता रही थी कि वह वहां है।

नंद देवर और बाकी परिवार वालों को भी खबर कर दिया गया था मगर कोई पहुंच नहीं पाया था। 

 रमा देवी  बेजान निर्जीव सी पड़ी हुई थीं। उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी। अचानक सुगंधा और उनके पति बैठे हुए थे और उनकी तरफ देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद रमादेवी के शरीर में अचानक ही हरकत सी होने लगी। उन्होंने अपनी आंखें खोल दिया।

उनके सामने सुगंधा बैठी बैठी हुई थी, उसे देखकर उनकी मरती हुई आंखों में एक चमक सी आ गई।

उन्होंने बड़ी उम्मीद से अपनी बहू की तरफ देखा और उसका हाथ अपने हाथों में पकड़ लिया। 

अपने कांपते हुए दूसरे हाथ को आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाने की कोशिश की। हल्की सी मुस्कुराहट उनके चेहरे पर थी और देखते ही देखते उनके प्राण निकल गए।

अब वह निर्जीव बन चुकी थीं ।

नहीं चाहते हुए भी सुगंधा की आंखों से आंसू बह निकले और वह फूट-फूट कर रो पड़ी ।

“ सुगंधा उठो, अभी सारे कामकाज तुम्हें ही देखना है।

अम्मा को तो मुक्ति मिल गई। बहुत कष्ट में थी ।अपने आप को संभालो।”

अड़ोस पड़ोस के लोगों ने सुगंधा को संभालते हुए सांत्वना देने लगे ।

थोड़ी देर बाद उनके अंत्येष्टि का समय आ गया था।

रमा देवी को नहला कर अंतिम यात्रा के लिए तैयार कर दिया गया था।

अब अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई थी। 

“राम नाम सत्य !”के साथ ही शव यात्रा निकल चुकी थी और फिर वह अकेली ही घर में बच गई थी। 

रमादेवी बीमार तो थी मगर ठीक थीं, अचानक ही चार दिनों पहले उनकी तबीयत खराब हुई और 4 दिन में ही वह गुजर गईं ।

उनके दोनों देवर और नंद विदेश में  और दोनों बच्चे हॉस्टल में।

इतनी जल्दी किसी का भी पहुंचना मुश्किल था।

अकेली अपने घर में बैठी हुई सुगंधा उन दिनों में लौट गई थी जब वह और युग दोनों ने लव मैरिज करने का सोचा था।

सभी लोग उनके इस फैसले के खिलाफ थे मगर रमा देवी इस शादी के लिए तैयार हो गई थी।

उन्हें सुगंधा बहुत पसंद थी।

उनके जोर देने पर ही दोनों परिवार वालों ने सहर्ष ही दोनों का रिश्ता स्वीकार कर लिया था।

जब सुगंधा बहू बनकर आई थी तो रमादेवी ने आरती की थाल लेकर उनका आरती उतारा था और कहा था 

“सुगंधा बहू, इस घर की तुम बड़ी बहू हो। अब जो बीत गई वह बात गई। जात-पात सब छोड़कर इस घर की रीति रिवाज को अपनाना ही तुम्हारा धर्म है। हमारे कुल परंपरा की रीति रिवाज को सीख लो ताकि तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को सीखा पाओ। 

इस घर की सभी लोगों को जोड़ने का काम तुम्हारा है, जैसे मैंने किया वैसे ही तुम भी करो, तभी घर सुखी रहेगा।

याद रखना बड़ा हमेशा त्याग करता है और त्याग का फल हमेशा ही मीठा होता है।” सुगंधा रमा देवी की हमेशा ही कृतज्ञ रही थी क्योंकि उन्होंने उनके और युग के प्रेम को स्वीकार कर लिया था।

 रमा देवी जो कुछ बोलतीं वह सुगंधा सिखती जाती थी।

 कुछ वर्षों तक पहले तक एक संयुक्त परिवार ही था, जहां एक छत के नीचे सब लोग रहते थे।चाचा चाची उनके बच्चे सुगंधा के नंद, देवर सब लोग।

धीरे-धीरे सब की नौकरी चाकरी लगती गई शादी विवाह होते गए फिर धीरे-धीरे सब लोग अलग होते चले गए।

इस घर में बचे सिर्फ सिर्फ रमा देवी, सुगंधा और युग।

कुछ वर्ष पहले उनके ससुर की मृत्यु हो गई थी।उसके बाद रमा देवी टूटती ही चली गई थी।

बिस्तर पर पड़ गई थीं, वह सुगंधा और युग के ऊपर ही डिपेंडेंट रह गई थीं ।

सुगंधा में कभी भी बहू बनकर अपनी सास की सेवा नहीं की बल्कि बेटी बनकर उनके  साथ साया की तरह लगी रहती थी।

घर परिवार के पीछे उसने अपने सारे सपने पीछे रख दिए थे। क्योंकि उसे युग के रूप में पति मिल गया था।

दूसरे तीसरे दिन से घर पर परिवार के लोगों का जमावड़ा बढ़ने लगा।

देखते देखते तेरह दिन बीत गए। अब सबके जाने का समय आने लगा था।

नंद और दोनों देवर जाकर सुगंधा के पास बैठ गए 

“भाभी, कभी भी ऐसा नहीं लगा कि आप हमारी भाभी हैं ,इस घर की बहू। हमेशा ही ऐसा लगा कि आप मां की प्रति छाया हैं। मां की पसंद बेमिसाल थी।

मां नहीं है मगर घर को वैसे ही रखिएगा जैसा पहले था।”

बिल्कुल ,तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह घर मेरा नहीं हम सबका है। बस अब मां की जगह मैं इंतजार करूंगी तुम लोगों का और मां की तरह ही कहूंगी “छुट्टी मिले तो एक बार मिलने आ जाओ।” सुगंधा मुस्कुरा दी मगर आंसुओं से भरे हुए दो बूंद उसके चेहरे पर छलक आए। 

नंद पूजा और देवर अविनाश और आकाश दोनों ने उसकी आंखों को पोंछते हुए उनके गले से लिपट गया 

“भैया की चॉइस बिल्कुल राइट है। यू आर राइट बहुरानी!”

उदासी में भी एक हंसी के ठहाके घर में गूंज गए थे।

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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

#बहुरानी

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय #बहुरानी के लिए।

VM

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