आँखों में आँसू , उलझे बाल, चेहरे पर थकावट और दुःख की मलिनता……… ये दिव्या थी।
साथ में उसका पति दीपक भी कुछ ऐसे ही हाल में साथ बैठा था। कभी दिव्या को तसल्ली
देता कभी खुद को। दोनों हॉस्पिटल की लॉबी में बैठे हुए थे ।उनकी आहें रात के सन्नाटे को
चीर रही थीं।दोनों ने आज अपनी जिंदगी का सबसे ख़ूबसूरत सपना खो दिया था। अब बस
भी करो दिव्या, दीपक ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा……दिव्या फूट -फूट कर रोने लगी ,
कैसे बस करूँ दीपक अभी तो हमने सपने बुनने शुरू ही किये थे , नए -नए कपड़ों के डिज़ाइन
देखने शुरू किये थे , नाम तक सोचने शुरू कर दिए थे ,,पर भगवान् ने मुझसे मेरा बच्चा छीन
लिया। हाँ दिव्या मैंने भी उसके लिए बहुत कुछ सोच रखा था पर भगवान् के आगे किसकी
चली है,कहते हुए दीपक भी उदास हो गया।
आखिर दोनों को भगवान् से शिकायत होती भी क्यों न ? शादी के पूरे पांच साल बाद दिव्या
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की सूनी कोख हरी हुई थी। जिस दिन प्रेगनेंसी का पता चला , दोनों भगवान् को धन्यवाद
कहने मंदिर गए। मंदिर में पंडित जी ने अनजाने में ही कह दिया : बिटिया जल्द ही तुम्हारी
गोद में नन्हा बच्चा खेलेगा , वो प्रभु का आशीर्वाद होगा तुम्हारे लिए। दिव्या मन ही मन
खुश हो रही थी , प्रभु का आशीर्वाद है तभी तो पाँच साल बाद माँ बनने जा रही हूँ। डॉक्टर
से भी चेक अप करवा लिया सब ठीक था। धीरे -धीरे दिन बीतने लगे। दोनों कभी मिलकर
नाम सोचते, कभी ऑनलाइन कपडे देखते तो कभी लड़का होगा या लड़की इस बात पर
झगड़ते। दिव्या खुद को रोज बड़े से शीशे में देखती की पेट बाहर आया या नहीं , उसने
डॉक्टर स्नेहा से भी पूछा था की कब तक बाहर आएगा। डॉक्टर स्नेहा हंस पड़ी, दिव्या अभी
तो दूसरा महीना चल रहा है अभी पेट को बढ़ने में वक़्त लगेगा…हाँ अभी थोड़ा बहुत वज़न
जरूर बढ़ेगा। जिंदगी का यही एक खूबसूरत वक़्त होता है , जब एक औरत चाहती है कि
उसका वज़न जल्दी से जल्दी बढ़े , वरना जिंदगी भर बस बढ़े हुए वजन को कम करने में ही
लगी रहती है। दोनों ने भागकर शादी की थी तो घर में कोई बड़ा तो था नहीं जो सलाह
देता, अतः खुद ही गूगल से ढूंढ ढूंढ कर अहतियातों की लिस्ट बनती रहती।
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तीसरा महीना लगते ही डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड करवाने बुलाया था अल्ट्रासाउंड करते वक़्त
डॉक्टर स्नेहा कुछ परेशान दिखी क्या हुआ डॉक्टर ?? दिव्या ने डॉक्टर के चेहरे के बदलते
भावों को देखकर पूछा….सब ठीक है ना ?……. थोड़ी देर बाद डॉक्टर स्नेहा ने दिव्या को बेड
से उठा दिया और दीपक को भी अंदर बुला लिया। डॉक्टर को सीरियस देखकर दीपक और
दिव्या आशंकित हो उठे। डॉक्टर ने बिना ज्यादा वक़्त गवाए कहना शुरू किया….देखिये 95
% केसेस में बच्चे की धड़कन 6 हफ़्तों में बननी शुरू हो जाती है , और बाकि के केसेस में 2
महीने पूरे होते होते बन ही जाती है , उसके बाद भी न बने तो इसका मतलब है की बच्चा
जीवित नहीं है। उसे अबो्र्ट करना पड़ता है। आपके केस में दो महीने पूरे हुए भी ज्यादा
दिन हो गए हैं , लेकिन आपके बच्चे की धड़कन नहीं बनी है तो उसे….. उसे क्या डॉक्टर
दिव्या चीखते हुए बोली। जी उसे अबो्र्ट करना पड़ेगा ………..डॉक्टर स्नेहा ने बड़ी मुश्किल
से बात पूरी की। दिव्या ने डॉक्टर स्नेहा के हाथ ही पकड़ लिए…..प्लीज डॉक्टर ऐसा मत
कहिये….बड़े सालों के बाद ये ख्वाहिश पूरी होने जा रही है… प्लीज कुछ करिये ना…..हो
सकता हे आपकी मशीन में कोई खराबी आ गयी हो। हम कहीं और चेक करवा लेते हैं……
दिव्या हरगिज मानने को तैयार नहीं थी कि उसकी कोख में पल रहा बच्चा जीवित नहीं है।
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क्या हम और कुछ दिन इंतज़ार कर लें शायद धड़कन बन जाये, दीपक बोला। डॉक्टर स्नेहा
अपनी कुर्सी से उठकर दिव्या के पास आयी और कहने लगी : देखो दिव्या अगर भगवान् ने
एक बार सुनी है तो फिर सुन लेगा , लेकिन हम इस बच्चे के साथ जोखिम नहीं ले सकते।
तुम्हे इन्फेक्शन हो सकता है। तुम चाहो तो कहीं और भी चेक करवा सकती हो , पर होगा
वही जो मैं कह रही हूँ। दिव्या ने भरी आँखों से दीपक की ओर देखा , उसकी मूक सहमति
पाकर भारी दिल से वो एबॉर्शन के लिए तैयार हो गयी। उसे तैयार करके एक कमरे में
लिटा दिया गया जब तक डॉक्टर आयी उसकी आँखों के सामने पिछले दो महीने पल दर पल
गुजरते गए। कुछ देर बाद वो कमरे से बाहर आयी और दीपक के साथ आकर बेंच पर बैठ
गयी।तन के दर्द से ज्यादा मन का दर्द था। दीपक ने उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया।
तभी स्ट्रेचर पर एक प्रेगनेंट औरत को आपातकालीन सेवा सहित हॉस्पिटल में लाया गया।
वो दर्द से तड़प रही थी , शायद उसकी डिलीवरी का वक़्त हो गया था। जैसे ही स्ट्रेचर
दिव्या के आगे से गुजरा , लड़की की हालत देख उसने भगवान् से प्रार्थना की , कि बच्चे को
बचा लेना…… मेरी तरह इसे दुखी मत करना।
थोड़ी देर बाद लेबर रूम से बच्चे की किलकारी गूंजने की आवाज़ सुनाई दी। दीपक को लगा
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कि शायद दिव्या ये सब सुनके, या बच्चे को देख कर फिर भावुक हो जाएगी , उसे घर ले
जाना बेहतर होगा। दीपक ने दिव्या का हाथ पकड़ कर उसे चलने का इशारा किया। भारी
क़दमों से वो दोनों हॉस्पिटल के बाहर चल दिए। अभी दोनों गेट तक पहुंचे ही थे कि एक
नर्स भागती हुई आई , सर क्या आप दीपक जी हैं ? ज़ी हाँ , दीपक ने आश्चर्यचकित होकर
कहा। वो आपको डॉक्टर स्नेहा अंदर बुला रही हैं, जल्दी चलिए। जल्दी से सन्देश देकर वो
नर्स अंदर भाग गयी। दीपक और दिव्या ने एक दूसरे की तरफ़ इस भाव से देखा मानो पूछ
रहें हों क्या बात हो सकती है ? डॉक्टर का इस तरह बुलाना उन्हें खटक रहा था फिर भी
उनके कदम कैबिन की तरफ़ बढ़ गए। अंदर डॉक्टर स्नेहा एक फाइल पढ़ रहीं थीं , उनके
आते ही उन्होंने अपनी फाइल साइड में रख दी और दोनों को सामने वाली कुर्सी पर बैठने
का इशारा किया। डॉक्टर स्नेहा ने बोलना शुरू किया : अपने अभी एक महिला को देखा
होगा जो डिलीवरी के लिए आयी थी। उसकी हालत बहुत क्रिटिकल थी। बच्चे को सर्जरी
करके बाहर निकाला , पर उस महिला की मृत्यु ऑपरेशन के दौरान ही हो गयी। हमने बहुत
कोशिश की पर उसे बचा नहीं पाए। मैंने आपको इसलिए बुलाया है , की क्या आप उस बच्चे
को गोद लेना चाहेंगे ? इतना कहकर डॉक्टर स्नेहा ने प्रश्नवाचक नजरों से दोनों की तरफ़
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देखा। एक पल को तो तो दिव्या और दीपक को विश्वास ही नहीं हुआ कि डॉक्टर क्या बोल
रहें हैं ? तभी दिव्या थोड़ा सँभलते हुए बोली : मैडम उसके परिवार वाले भी तो होंगे , उन्हें
क्या ज़बाब देंगे ? डॉक्टर स्नेहा ने एक ठंडी आह छोड़ते हुए कहा : इस बेचारी का इस
दुनिया में कोई नहीं है। ये अनाथ थी। शादी के बाद ससुराल में सिर्फ माँ -बेटा ही थे। आज
जब ये लोग चेक अप करवाने आ रहे थे , तो इनकी गाड़ी की टक्कर ट्रक से हो गई। टक्कर
इतनी भयानक थी कि गाड़ी का अगला हिस्सा पिचक गया था। माँ – बेटा आगे बैठे थे , टक्कर
की वजह से दोनों की वहीँ मौत हो गई। इसे भी गहरी चोट लगी थी , पर ग़नीमत थी की
बच्चे को कुछ नहीं हुआ। ब्लीडिंग ज़्यादा होने की वजह से ये ऑपरेशन के वक़्त ही चल
बसी।
इतना सुनने के बाद दीपक और दिव्या सोचने लगे कहाँ हम अपने अजन्मे बच्चे के लिए रो
रहे थे और कहाँ भगवान् ने इस बच्चे से पैदा होते ही पूरे परिवार को छीन लिया। दिव्या को
सोच में देख डॉक्टर स्नेहा ने आगे कहा : देखिये अगर आप इस बच्चे को नहीं लेते हैं , तो इसे
हमें अनाथाश्रम में छोड़ना पड़ेगा। बाकि आप देख लीजिये। तभी एक दम से दिव्या बोली
नहीं डॉक्टर मत दीजिये , इसे अनाथाश्रम में मत दीजिये। इस बच्चे को मैं गोद लूंगी……
ऐसा कहकर उसने दीपक की तरफ़ देखा। दीपक ने भी सहमति में सर हिला दिया। डॉक्टर
ने खुश होकर कहा : मुझे आपसे यही उम्मीद थी। उन्होंने बेल बजाकर नर्स को अंदर
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बुलाया। सिस्टर वो जो अभी केस आया था , उस बच्चे को लेकर आना। जी डॉक्टर, कहकर
नर्स चली गयी। दिव्या के मन में अचानक ख्याल आने लगे जाने वो बच्चा दिखने में कैसा
होगा ? लड़का हे या लड़की ये भी नहीं पूछा…… उसकी दिल की धड़कन तेज हो गयी और
ऑंखें बार – बार दरवाजे की तरफ़ देख रहीं थीं। अभी थोड़ी देर पहले तक जो उदासी के
काले बादल उसके चेहरे पर छाए थे , वो कहीं गुम हो गए थे। तभी नर्स तौलिये में लपेटकर
बच्चे को अंदर ले आयी और दिव्या को सौंप दिया। गुलाबी रंगत, गोल-मटोल चेहरा , काले
घने बाल , छोटे -छोटे हाथ , दिव्या तो देखती ही रह गयी। हाय राम ! ये कितना सुन्दर है ,
थू – थू कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए इसे, कहकर अपने सीने से लगा लिया। दीपक भी
उसकी नाजुक उँगलियों को छूने की कोशिश कर रहा था की एकदम से बच्चे ने उसकी ऊँगली
पकड़ ली। यह देखकर दीपक भाव-विभोर हो उठा। उसने धीरे से उसके हाथों को चूम
लिया।दोनों नन्हे शहजादे को पाकर खुश हो गए थे। डॉक्टर ये देखकर खुश हो गयी की चलो
बच्चा अनाथ होने से बच गया।
दिव्या और दीपक ने जरूरी कागज़ी कार्यवाही करके उसे अपने साथ ले जाने लगे , दिव्या
सोच रही थी : सही कहा था उस पंडित ने , ये भगवान् का आशीर्वाद बनकर ही तो आया है।
कहाँ हम खाली हाथ जा रहे थे , और कहां इस बच्चे ने सारे जहान की खुशियां एक पल में दे
दी।उसने शुक्रगुज़ार दृष्टि से आसमान की तरफ़ देखा , मानो मन ही मन ऊपरवाले को
धन्यवाद दे रही थी।
समिता बड़ियाल