निखिल और विनय एक छोटे से कस्बे में रहते थे और एक फैक्ट्री में मजदूरी करते।दोनो का ही सपना था
कि वो बड़े आदमी बने पर क्या करे जितनी मेहनत करते कम ही थी।घर में दोनो की पत्नियां आरती और कविता थी
और उनके दो दो बच्चे थे निखिल के बच्चो के नाम आदित्य और अदिति थे और विनय के बच्चो के गर्व और गरिमा ।
समय अपनी गति से चल रहा था एक दिन निखिल को फोन आया कि उसके रिश्ते के दूर के चाचाजी की तबियत खराब है
और उन्हें मिलने बुलाया है निखिल और आरती अगले दिन सुबह शहर रवाना हो गए ।बच्चो को वो विनय के पास छोड़ गए।
शहर पहुंचे तो देखा वो पता एक बहुत बड़ी कोठी का था।वो दोनों डरते डरते अंदर गए वहां बिस्तर पर एक बुजुर्ग व्यक्ति लेट थे।
और पास में वकील साहब बैठे थे।उन्हें देखकर वकील बोला आपके चाचाजी अंतिम सांसे ले रहे है और ये उनका वसीयतनामा है।
उन्होंने अपनी पूरी जायदाद और फैक्ट्री आपके नाम कर दी है।चाचाजी निखिल को देखकर खुश हुए
और अपनी अंतिम सास ली।उनका दाह संस्कार करके और सारी जरूरी कारवाही करके वो दोनों कस्बे लौटे
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और घर आकर सब सामान वही छोड़ कर मुंह अंधेरे बिना किसी से मिले बच्चों को लेकर शहर आ गए।
इतना बड़ा घर पैसा देखकर उन सब के दिमाग खराब हो गए। निखिल ने बिजनेस में अपना ध्यान लगाया
और कुछ समय बाद अच्छी तरक्की कर ली काम तो पहले से ही जमा जमाया था।पैसों की बारिश हो रही थी।
आरती ने किटी और क्लब ज्वाइन कर लिया।बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ते उनकी दोस्तियां भी अमीरों से थी।
एक बार निखिल की फैक्ट्री में कर्मचारियों की भर्ती हो रही थी वहां पर विनय भी इंटरव्यू देने आया।
निखिल।को देखते ही वहां भागा पर निखिल ने कोई पहचान नहीं दिखाई। खैर विनय को उसकी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई।
फैक्ट्री से वो निखिल का पता लेकर कविता और बच्चों के साथ निखिल के घर मिलने आया ।पर निखिल के दरबान ने उन्हें अंदर ना जाने दिया।
और गेट पर आरती मिली उसने भी कोई पहचान नहीं दिखाई और दरबान को बोली यहां भिखारियों को मत आने दिया करो।
विनय और कविता को इतना बुरा लगा उन्हें वो दिन याद आ रहे थे जब निखिल के यहां कुछ ना होता तब ये कितने प्यार से उन्हें खिलाते
बच्चो की फीस भर देते और आज ये मियां बीवी कैसा व्यवहार कर रहे है। वो घर आ गए और विनय चुप चाप अपना काम करता रहा
और कोशिश करता की निखिल के सामने ना पड़े पर कहते है
कि इतना गुमान ठीक नहीं परिस्थितिया कब मौसम की तरह रंग बदल ले कोई नहीं कह सकता ऐसा ही कुछ निखिल के साथ हुआ
उसे बिजनेस में बहुत नुकसान हुआ ।बैंक का कर्ज उतारने के लिए घर फैक्ट्री सब बेचना पड़ा वो आज फिर
सड़क पर थे पर आज कोई ठिकाना ना था जो अपने थे पैसे की चमक में उनसे संबंध तोड़ लिए थे। दोस्तो पैसा तो हाथ का मैंल है आज यहां कल वहां पर हमें कभी घमंड नहीं करना चाहिए।
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स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी