गांव में बने पुराने घर के बड़े बरामदे में बंसीलाल जी इस बार अकेले बैठे थे। कुछ साल पहले तक इस घर में उनकी पत्नी और दोनों बेटे थे, और पूरे घर में रौनक रहती थी। लेकिन वक्त ने जैसे परछाई बदल दी थी। उनकी पत्नी का निधन हुए कई साल हो गए, और दोनों बेटे पढ़ाई और नौकरियों के सिलसिले में महानगरों में जा बसे थे। जब तक पत्नी साथ थीं, तब तक अकेलापन बहुत महसूस नहीं हुआ, लेकिन अब वह अकेलापन काटने को दौड़ता था। बेटों की जीवनशैली और व्यस्तता ने गांव का यह पुराना घर अब उनके लिए महज एक यादगार बना दिया था। त्योहारों पर बेटे कभी-कभी परिवार के साथ आते, लेकिन इस बार दिवाली पर दोनों ने फोन पर सिर्फ अपने आने में असमर्थता जताई थी।
बंसीलाल जी मन ही मन मायूस हो गए थे। वह चाहते थे कि त्योहार का समय बच्चों और परिवार के साथ बिताएं, जैसा कि पुराने दिनों में हुआ करता था। दिवाली के दिन उनके पास ढेर सारी यादें थीं, लेकिन साथ में कोई नहीं था जिनसे वे इन यादों को साझा कर पाते। जैसे-जैसे शाम ढल रही थी, गांव में हर घर में उत्सव की रौनक थी। हर तरफ रोशनी थी, दीयों की कतारें जल उठी थीं, पटाखों की आवाजें गूंजने लगी थीं, लेकिन बंसीलाल जी का कमरा उस रौनक से दूर था। उनके मन का अंधेरा उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। वह अंधेरे कमरे में अकेले बैठकर अपने दोनों बेटों के बचपन के दिनों को याद कर रहे थे।
उसी गांव में रामू नाम का एक युवक उनके घर के एक हिस्से में किराए पर अपने परिवार के साथ रहता था। रामू एक मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था, और बंसीलाल जी का आदर करता था। बंसीलाल जी भी उसे अपने बेटे की तरह ही मानते थे। रामू की पत्नी, राधा, और उनके छोटे-छोटे बच्चे अक्सर बंसीलाल जी के पास आते, उनकी देखभाल करते और उनकी जरूरतों का ध्यान रखते। रामू को पता था कि इस बार बंसीलाल जी के दोनों बेटे दिवाली पर नहीं आ पाएंगे। इसलिए उसने अपने बच्चों को कहा था कि वे बंसीलाल जी के साथ दिवाली मनाएंगे।
जब रामू और उसके बच्चे बंसीलाल जी के कमरे में आए, तो उन्हें अंधेरे में बैठा पाया। रामू ने बिना कुछ कहे कमरे की लाइट जलाई और धीरे से बोला, “बाबूजी, अंधेरे में क्यों बैठे हैं? आइए, बाहर चलिए, बच्चों के साथ पटाखे छोड़ते हैं।”
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बंसीलाल जी ने थोड़ी अनिच्छा से रामू को देखा, लेकिन रामू और उसके बच्चों की प्यारी मुस्कुराहट और उनकी सरलता में उन्हें एक अपनापन महसूस हुआ। छोटे-छोटे बच्चे अपनी मासूमियत में बोले, “दादू, पटाखे छोड़ेंगे ना?” और उनका हाथ पकड़कर बाहर ले जाने लगे। बंसीलाल जी ने हल्की-सी मुस्कान के साथ हामी भरी, और बच्चों के साथ बाहर निकल आए।
बाहर का आंगन रोशनी से भरा था। बच्चों ने दीयों की कतारें सजा रखी थीं और रंगोली बनाई थी। राधा ने घर के कोने-कोने को सजाया हुआ था। ये सब देखकर बंसीलाल जी का मन खिल उठा। बच्चों की खुशी देखकर उनके चेहरे पर एक लंबी समय से खोई हुई मुस्कान लौट आई थी।
बच्चों ने पटाखे और फुलझड़ियां जलानी शुरू कर दीं। उनके खिलखिलाते चेहरों और मासूम आंखों में इतनी चमक थी कि बंसीलाल जी का मन प्रफुल्लित हो गया। उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि दिवाली का असली उत्सव बच्चों के साथ है। बच्चों के पीछे-पीछे वह भी थोड़ी फुलझड़ियां जलाने लगे। उनका दिल मानो उनके बच्चों और पोते-पोतियों के साथ होने जैसा ही खुशी महसूस कर रहा था।
थोड़ी देर बाद राधा उनके पास आई और झुककर उनके पैर छुए। वह बोली, “बाबूजी, मैंने आज विशेष भोजन बनाया है। आज हम सब आपके साथ मिलकर ही खाना खाएंगे।” बंसीलाल जी थोड़े चौंके, लेकिन फिर अपनी भावुकता को छिपाते हुए हल्के से मुस्कुरा दिए। राधा की बात सुनकर उन्हें दिल से बहुत अच्छा लगा।
राधा ने खाने के लिए एक छोटी-सी मेज पर अलग-अलग पकवान सजा दिए थे। यह कोई बड़े महंगे पकवान नहीं थे, पर उनमें राधा की मेहनत और अपनापन झलक रहा था। वह किसी बहू की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह बंसीलाल जी का ख्याल रखती थी। पूरे परिवार ने एक साथ खाना खाया। वह पल बंसीलाल जी के लिए बेहद अनमोल थे, उनके मन का सारा अंधेरा इस अपनेपन के उजाले में खो गया।
भोजन के बाद रामू और राधा ने उनसे कुछ बातें कीं, उनके साथ समय बिताया और त्योहार की खुशी बांटी। उस रात बंसीलाल जी को अकेलापन नहीं महसूस हुआ। वह रामू के परिवार को दिल से आशीर्वाद दे रहे थे। उन्होंने मन में यह ठान लिया कि जब तक उनके आसपास ऐसे प्यारे लोग हैं, तब तक वे किसी कमी का अनुभव नहीं करेंगे।
उन्हें महसूस हुआ कि इस बार की दिवाली उनके लिए अलग है, न केवल एक पर्व के रूप में बल्कि रिश्तों की गहराई को महसूस करने के रूप में। उन्हें यह एहसास हुआ कि परिवार का मतलब केवल खून के रिश्ते नहीं होते, बल्कि अपनेपन का अहसास और किसी का साथ होना ही सच्चा रिश्ता है।
बंसीलाल जी का दिल रामू, राधा और उनके बच्चों के लिए स्नेह और अपनापन से भर गया था। उन्होंने यह समझ लिया कि दिवाली का असली प्रकाश किसी की मौजूदगी से आता है, जो उनकी जिंदगी के अंधेरे को रोशन कर दे।
लेखिका : पुष्पा जोशी