पीढ़ियों का फ़ासला – करुणा मलिक  : Moral Stories in Hindi

अरे स्वाति! उठो , आज तो बहुत देर कर दी तुमने । मम्मी भी दरवाज़ा खटखटा कर गई है अभी । 

प्लीज़ राघव , पेट में बहुत तेज दर्द है मंथली प्रोब्लम के कारण ।आप ज़रा मम्मी जी को बता देना । एक टेबलेट खा लेती हूँ अभी , नाश्ते के टाइम तक उठ जाऊँगी । 

मैं कैसे बताऊँगा मम्मी को? लड़कियों की बात है, ना बाबा मैं कुछ नहीं बताऊँगा । मुझे तो शर्म आती है । 

शर्म ….. पर क्यों? हद  करते हो आप भी , अब आपकी शादी हो चुकी है । अच्छा तो  केवल ये बोल दो जाकर कि मैं मंथली प्राब्लम के कारण थोड़ी देर बाद रसोई में पहुँचूँगी , ये पानी की बोतल देना दवा खा लेती हूँ, बिना टेबलेट के उठ नहीं पाऊँगी । 

उतनी ही देर में राघव की मम्मी सुनीता जी वहाँ पहुँच गई ।

—-  स्वाति, क्या हुआ बच्चे? आज तो बड़ी देर लगा दी ? 

— हाँ मम्मी जी, वही प्राब्लम । बस दवाई खा ली है । आधा घंटे में उठकर किचन में चली जाऊँगी । 

—- किचन में ? ना ना …. तुम किचन में कैसे जाओगी? इन दिनों में, हमारे यहाँ किचन में नहीं जाते । और तुमने ख़ाली पेट दवा क्यों खाई ? 

सुनीता जी ने अपनी नई नवेली बहू स्वाति से कहा । दरअसल शादी को तो दो महीने हो चुके थे पर शादी के तीसरे ही दिन स्वाति को अपने मायके वापस जाना पड़ा क्योंकि  बी० ए० की फ़ाइनल परीक्षा बची थी । जब तक परीक्षा समाप्त हुई तब तक सावन का महीना शुरू हो गया, शादी के पहले सावन में लड़कियाँ अपनी ससुराल नहीं जाती इसलिए राघव के साथ वह केरल घूमने चली गई । दो हफ़्ते के बाद फिर से मायके चली गई और अब कृष्ण- जन्माष्टमी के बाद ही ससुराल पहुँची थी । 

क्यों किचन में क्यों नहीं जाना मम्मी जी? हमारे यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं होता । मैंने तो अपने पास-पड़ोस में भी ऐसा कुछ नहीं सुना ।

हाँ बेटा, हर जगह और हर घर के अलग रीति- रिवाज होते हैं, और सुनो अम्मा के तो पास भी मत बैठना । बापूजी के बाद अम्मा कुछ ज़्यादा ही छुआ-छूत मानने लगी है । 

छुआ-छूत…. ये क्या बात हुई ? यह तो कुदरती प्रक्रिया है , इसमें लड़कियाँ कहाँ से अछूत हो गई? क्या अम्मा इस दौर से नहीं गुजरी ? 

बस बस ….. अच्छा बेटा, मैं राघव के हाथ तुम्हारे लिए एक कप गर्म चाय भेजती हूँ, पीकर आराम करना ।चलती हूँ नहीं तो  नाश्ते में देर हो जाएगी । बाद में बात करूँगी । 

मम्मी जी, आप सब्ज़ी बना लीजिए बस , पराँठे मैं सेंक लूँगी ।

स्वाति, मैंने अभी तो कहा कि तुम पाँच दिनों से पहले किचन में नहीं जाओगी । 

इस बार सुनीता जी ने थोड़े कठोर लहजे में ये बात कही ताकि बहू स्वाति उनकी कही  बात को हँसी मज़ाक़ में ना उड़ा दें और रसोई में पहुँच जाए ।

सुनीता… आज तू ही रसोई में लगी है, राघव की बहू कहाँ गई?

अम्मा! माहवारी आई है …..

बता देना अच्छी तरह से, बिना शुद्धि के रसोई और पूजाघर से दूर रहे । हम तो इन दिनों में अलग कमरे में सोते थे पर , आजकल की लड़कियाँ कहाँ मानेंगी जब मेरी बहू ने ही ना सुनी मेरी बात ।

हाय अम्मा, कैसी बात कह दी ? मैं तो आपकी एक- एक बात सुनती हूँ । आपने ही तो कहा था कि अपने कमरे में ही सो ज़ाया कर । 

अच्छा….. मैंने ही कहा था, मरी याददाश्त भी कमज़ोर पड़ गई । हाँ बहू , सच्ची सी बात है पहले जितना परहेज़ ना निभ सकता । चल , बहू को कह दिए कि साफ़ सफ़ाई का पूरा ध्यान रखें कमरे में । और इस पोंछा लगाने वाली …….ए क्या नाम है इसका ….

शकुंतला । 

हाँ , शकुंतला को भी कह दिए कि राघव के कमरे में पोंछा ना लगाए , बहू अलग पोंछा मार लेगी । कहीं एक ही पोंछा सारे घर में फिरा दे , इन कामवालियों का कुछ भरोसा नहीं । कई सालों बाद इन नियमों की बात हुई । 

अम्मा जी , आप चिंता मत करो । स्वाति को समझा दिया है और बचा- खुचा आज ही बता दूँगी । 

राघव, ले बेटा अपना टिफ़िन रख लें और देख कर बता कि स्वाति के दर्द में कुछ आराम हुआ क्या ? नहा- धोकर उसे भी नाश्ता कर लेना चाहिए । 

सुनीता…. देख, ये स्वाति बरामदे में मेरी कुर्सी पर बैठी नाश्ता कर रही है ।  राम ! राम! सुबह से कह रही हूँ कि समझा दे । 

इतना सुनते ही स्वाति हड़बड़ा कर उठी । नाश्ते की प्लेट गिरते-गिरते बची ।

स्वाति, जा बेटा , अपने कमरे में जाकर खा ले । अम्मा ! अभी नई है इस घर में, पहली बार नया माहौल देखा है … आप फ़िक्र ना करें , समझ जाएगी । शकुंतला आएगी ना अभी कुर्सी की गद्दी का कवर  अलग से हाथ से धुलवा दूँगी । 

सुनीता जी स्वाति को बार-बार याद दिलाती रही कि उसे इन दिनों में किन बातों का ख़्याल रखना है पर स्वाति के मन में विद्रोह की भावना ने जन्म ले लिया ।

मम्मी जी, आप तो ख़ुद पढ़ी-लिखी थी । आपको अम्मा की सारी बातें नहीं माननी चाहिए थी । देखो ना , अब मुझसे तो आप जितनी जी हज़ारी नहीं हो पाएगी । मुझसे तो आप करवा लोगी सब बातों का पालन पर कल को माधव की शादी होगी तो कोई लड़की नहीं मानेगी इन बातों को । 

अरे नहीं बेटा, धीरे-धीरे आदत में शामिल हो जाएगी सारी बातें । बड़े – बुजुर्गों की बातों को दिल से नहीं लगाना चाहिए । 

सुनीता जी ने अपनी बहू को कई तरह से समझाने की कोशिश की पर स्वाति हर महीने तारीख़ आने के हफ़्ते पहले ही चिढचिढी हो जाती , बात – बात पर राघव को अम्मा की कही बातों का उलाहना देती  या मायके जाने की ज़िद करती । 

बिना बात के स्वाति और अम्मा के बीच एक शीत युद्ध छिड़ गया । 

स्वाति, एक कप चाय तो बना दे , कई दिन हो गए तेरे हाथ की चाय पीए बिना ।

आपने ही तो कमरे में क़ैद कर दिया था । चार दिन पहले भी यही हाथ थे , आज कौन सा ये बदल गए हैं? 

और बड़बड़ाती स्वाति चाय बनाकर मेज़ पर रख आती । 

ए बहू स्वाति! कब तक हर महीने चार/ पाँच दिन आराम करेगी ? बेटा , पता नहीं कितनी साँसें बची है, मैं भी देख जाऊँ अपनी अगली नस्ल को ..

मम्मी जी! अम्मा हर बात अपने तरीक़े से क्यों मनवाना चाहती है? पीरियड हो जाए तो कमरे में क़ैद होकर बैठ जाओ , अब नया फ़रमान सुना दिया कि बच्चा पैदा करो । मैं तैयारी कर रही हूँ , अभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हुई और….

बेटा ! अब उन्होंने जैसा ज़माना देखा है वैसी ही तो बात करेंगी ना । ये केवल एक फ़ासला है दो पीढ़ियों का । अच्छा, मेरी बातें अटपटी लग रही हो तो अपनी मम्मी से पूछना कभी अपनी दादी- नानी के बारे में । 

स्वाति, पता नहीं कब तक अम्मा का साथ है ? समय बदल रहा है, उनके बाद कौन क्या कहेगा ? और हर महीने तुम क्यों इन दिनों को क़ैद समझती हो? आराम किया करो , मूवी देख लिया करो , अपने दोस्तों से बातें कर लिया करो या राघव के साथ घूम आया करो । यक़ीन मानो , अम्मा को इन बातों से बिल्कुल भी दिक़्क़त नहीं होगी । पीढ़ियों का फ़ासला मिटाना कोई टेढ़ी खीर नहीं है । बस थोड़ी सी अलग सोच द्वारा सारी मुश्किलें दूर हो जाती हैं । 

बेटा , उस जमाने के हिसाब से सोचकर देख । जहाँ औरतों को सुबह से शाम तक चुल्हे- चौके में लगे रहना पड़ता था । कम से कम इन दिनों के बहाने , उन्हें थोड़ा आराम तो मिल जाता था ।

रियली मम्मी जी, मैंने तो इस तरह से सोचा ही नहीं कि चार/ पाँच दिन किचन से छुट्टी, बस फ़रमाइशें । ये तो आपने अच्छा आइडिया दिया , तैयार हो जाइए मेरे लिए अपने हाथों के बने नए-नए व्यंजन बनाने के लिए । 

सुनीता ! आज तो लापसी खाने का जी कर रहा । 

हाँ अम्मा, मेरा भी मन लापसी खाने का है पर मम्मी जी के हाथ की बनी नहीं, आपके हाथ से बनी हुई ।

सुनीता , जा स्टोर से बड़ी लोहे की कढ़ाई निकाल के ला । स्वाति ने पहली बार कुछ बनाने को कहा मुझे, बना के खिलाऊँगी । 

यह कहते- सुनते ही दोनों सास-बहू खिलखिला उठी । और कितनी आसानी से स्वाति को एक घुटन भरे रिश्ते से आख़िर आज़ादी मिल गई । 

करुणा मलिक 

# एक घुटन भरे रिश्ते से आख़िर आज़ादी मिल ही गई

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