शालिनी,तू ही तो है मेरे बचपन की सखी,जिससे मैं हमेशा दिल की बात कर लिया करती हूं।
क्या हुआ शालू,क्या कोई प्रॉब्लम है,जो ऐसे बात कर रही हो?
प्रॉब्लम?शालिनी लगता है मैं घुट घुट कर मर जाऊंगी।
बता ना बात क्या है?
संजीव और शालू दोनो पति पत्नी एवं माँ शकुन्तला, कुल जमा ये तीन ही प्राणी रहते थे घर मे,इनमें से भी संजीव अक्सर जॉब टूर पर बाहर रहता।संजीव ने पहली ही रात्रि में शालू को स्पष्ट कर दिया था कि शालू देखो माँ को मैं बहुत प्यार करता हूँ और वे मेरी जिम्मेदारी है,मुझे अपने जॉब के कारण बाहर अक्सर जाना पड़ता है ,शालू मेरी माँ की जिम्मेदारी संभालोगी ना?
भावुक रूप से कही गयी यह बात शालू के अंतःकरण में उतर गयी,उसने संजीव का हाथ पकड़ कर कहा,संजीव अब वे मेरी भी तो माँ हैं, तुम क्यो चिंता करते हो,मैं हूँ ना।एक दीर्घ सांस ले संजीव ने राहत की सांस ली,और दोनो फिर खो गये एक दूसरे में।
शकुंतला जी भी काफी खुश थी,एक तो घर मे बहू आ गयी थी,दूसरे उन्हें लग रहा था कि अब उनका अकेलापन भी दूर हो जायेगा।संजीव तो अक्सर बाहर ही रहता था, पर जबसे संजीव के पिता का स्वर्गवास हुआ तब से शकुंतला जी अपने को अकेला पाने लगी थी।संजीव हालांकि मां का पूरा ध्यान रखता,उनकी देखभाल और घर के कामकाज के लिये एक मेड रख दी थी,जिससे माँ को कोई दिक्कत न हो।लेकिन जब से संजीव की शादी हुई तबसे उनके चेहरे पर रौनक देखते बनती थी।शालू उनका पूरा ध्यान रखती।अधिकतर समय वह मां के साथ ही गुजारती।
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शालू ने ही अपनी सासू मां को शुभ सूचना दी कि वे दादी बनने वाली हैं।शकुन्तला जी ने शालू को गले से लगा लिया।बहू जीवन की यही अंतिम इच्छा रह गयी थी कि पोते का मुँह देखूं, तू वह भी पूरी करने जा रही है।अब मैं तो पूरी तरह संतुष्ट हो गयी।पर माँ यदि पोते की जगह पोती आ गयी तो—-?मन मे आयी आशंका को अनायास ही शालू कह बैठी।शकुंतला जी बोली तो क्या हुआ बेटी घर मे लक्ष्मी आयेगी।शकुंतला जी से यह सुनकर शालू अपने को धन्य समझने लगी,उसने आगे बढ़कर माँ जी के पैर छू लिये।
शालू के गर्भवती हो जाने के कारण अब शकुंतला जी की टोका टाकी,सलाह शालू के लिये बढ़ गयी थी।हालांकि यह सब शकुन्तला जी के स्नेह और गर्भवती शालू के लिये अतिरिक्त सुरक्षा हेतु था पर शालू को इससे खीज होने लगी।वो सोचती कि क्या वह बच्ची है जो हर समय की टोका टाकी करती रहती हैं ये मत करो, ऐसे करो आदि आदि।इसी खीज में शालू भी अब शकुंतला जी उपेक्षा करने लगी।शकुंतला जी भी कोई बच्ची तो थी
नही जो शालू की उपेक्षा को समझ नही पाती।अब उन्होंने भी अपनी टोका टाकी लगभग बंद कर दी थी।इधर जब संजीव अपने टूर से घर वापस आये तो उन्होंने मां का वह प्रफुल्लित चेहरा नही देखा और साथ ही उन्होंने महसूस किया कि माँ और शालू में कुछ न कुछ खिंचाव जरूर है।उन्होंने शालू को रात्रि में ही टोक दिया कि शालू मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारा माँ के प्रति पहले जैसा व्यवहार नही है,ये उचित नही, मैं इसे बर्दास्त नही कर पाऊंगा, तुम्हे इसे सुधारना होगा।
इस वाक्य से शालू के मन मे गांठ पड़ गयी,उसे लगा कि वह तो कुछ है ही नही सब कुछ माँ ही है,फिर मुझसे इन्होंने शादी ही क्यों की थी।ऊपर से कुछ न कह कर अंदर ही अंदर एक कुंठा घर कर गयी।शालू संजीव के टोक देने पर माँ के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील हो गयी,अब उपेक्षा तो नही करती थी,पर पहले वाला लगाव नही था,मां भी सब समझ रही थी,पर वो ये नही समझ नही पा रही थी
कि वह कैसे शालू को अपने मनोभाव समझाये?उन्हें डर लगने लगा था कि कही उनकी कही किसी भी बात को शालू अन्यथा न ले ले।उधर शालू के अंदर घर कर गयी कुंठा उसे घर की भावनाओ से अलग कर रही थी।जब भी संजीव घर आता और वह माँ का किसी भी बात पर जिक्र कर देता तो शालू पहले तो कोई उत्तर नही देती थी पर बाद में वह संजीव को भी उल्टा जवाब देने लगी।उसे लगता घर मे वह कुछ भी महत्व नहीं रखती।संजीव को सब अटपटा लग रहा था पर वह चुप रह जाता,माँ सुनेगी तो उसे दुःख होगा।
शालू की सहनशक्ति जब समाप्त होने लगी तो उसने शालिनी को फोन किया और उसे बताया कि किस प्रकार संजीव उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है।शालिनी समझदार महिला थी,उसने शालू की बातों से ही समझ लिया कि गलती और गलतफहमी की शिकार शालू ही है।
उसने शालू से मिलने को अपने यहां बुलाया और बातचीत में पूछा शालू ये तो बता कि संजीव क्या तुझे कम प्यार करने लगे हैं, शालू बोली नही नही वे मुझसे बेइंतिहा प्यार करते हैं।अच्छा क्या माँ तेरी प्रेग्नेंसी से पहले भी तुझे ऐसे ही टोकाटोकी करती थी,शालू बोली नही तो,क्या उन्होंने कभी तुझे तेरे मायके के बारे में कोई ऊंची नीची बात की,शालू बोली नही कभी भी नही,पर तू ये सब क्यो पूछ रही है।अरे शालू मैं इसलिये पूछ रही हूं
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कि मैं तुझे अपने पावँ में खुद कुल्हाड़ी मारने वाली के रूप में देख रही हूँ।पागल ये तो बता तेरा संजीव तूझे खूब प्यार करता है,तेरी सासू माँ तुझ पर न्योछावर है,तेरी प्रैग्नेंसी से वे तुझ से अधिक उत्साहित हैं, इसी कारण तुझे कुछ न हो जाये इसलिये तुझे निर्देशित करती रहती हैं
और तू उनके प्यार और अधिकार को न समझ अपने मन मे घुटन लिये बैठी है।जा मेरी भैना जा पहले वाली शालू बनकर अपने घर जा,फिर देख उस अपने घर मे दीवाली।एक बात और समझ लेना शालू ,बंधन में भी सुख होता है।ये बंधन ही एक दूसरे को अधिकार भी देते है और प्यार भी।जा अपनी गृहस्थी संभाल।अधिकार देना सीख मेरी बहन।
शालू की आंखों पर पड़ा आवरण हटता जा रहा था।मन पर पडा बोझ उसे हटता महसूस हो रहा था।उसे लग रहा था,वह स्वच्छंद पंछी की तरह आकाश में उड़ रही है।घर आते ही सीधे माँ को बाहों में भरकर बोली शालू , माँ आज मैं तुम्हारे लिये तुम्हारी पसंद का पालक का साग और मकई की रोटी बनाउंगी,अपने हाथ से।लंबे अरसे बाद मां के चेहरे पर आज वही पुरानी वाली प्रफुल्लता थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
*#एक घुटन भरे रिश्ते से आखिर आजादी मिल ही गयी* वाक्य पर आधारित कहानी: