याद – प्रीती सक्सेना

# चित्र आधारित कहानी

 

         असहनीय दर्द में डूबा चेहरा,,, विस्मृत हुई यादों के पिटारे में से एक न भूलने वाली, याद,, याद दिला गई। ।

 

          हम टीकमगढ़ में थे,, आर्ट्स कॉलेज सिविल लाइंस से बहुत ज्यादा दूर था,,, हमें पूरा बाजार पार करके कॉलेज जाना पड़ता था,,, करीब,,, पांच किलो मीटर का फासला था,,, जिसे मैं और मेरी एक सहेली,, पैदल ही पार करते थे,,, साइकल चलाना आती नहीं थी,,, पापा,, सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने नहीं देते थे।

 

     बाजार में एक महिला पूर्ण नग्न घूमती थी,,, मानसिक संतुलन पूर्णरूपेण खो चुकी थी,,,

महिलाओं ने उसे कपड़े पहनाने का कई बार प्रयास किया,, पर वो सारे कपड़े उतारकर फेंक देती,,


 

   कॉलेज जाते समय रोज ही वो दिखाई पड़ती,, आदत सी हो गई थी उसे देखने की।

 

        कुछ दिनों बाद उसकी,,, देह में परिर्वतन दिखने लगे,,, सुनाई पड़ा,,, कुछ लोगो ने उसका

बलात्कार किया,,, मन चीत्कार कर उठा,,, इस हालत में भी लोगों ने उसका इस्तेमाल कर लिया।

 

    उसे हॉस्पिटल वाले ले गए,, पर वो इतना चीखती की ,,,,कहीं नहीं टिकती,,, बस कुछ खोजती सी रहती,,, घूमती रहती,,,, सब लोग

उसकी हालत पर तरस खाकर खाने को देते,,, कुछ खाती,, कुछ फेंकती,,, आते जाते  बस यही देखा।

 

प्रीती सक्सेना मौलिक

 

      एक दिन मम्मी के साथ साइकल रिक्शा से हम,,,,, बाजार आए,,,, दर्द भरी चीखें सुनाई दी,,, मम्मी तुरंत रिक्शे से उतरी,, मैं भी साथ गई,,,, भूल नहीं पाती,,, अपार दर्द में डूबा चेहरा,,, पसीने में लथपथ,,, छोटे छोटे बाल,,, एक गली में,, एक चबूतरे पर पड़ी थी,, बच्चा आधा शरीर के अन्दर आधा ,,, शरीर के बाहर,,, शायद समय से पहले ही बच्चे का जन्म हो रहा था,,, मम्मी ने दुकानदारों से कहकर  हॉस्पिटल फ़ोन करवाया,,, गाड़ी आकर ले गई,,,, उसके बाद की खबर मुझे नही  मिली ,,,, हां,, पगली फिर दिखने लगी थी।

 

      जिस चित्र को देखकर रचना लिखनी है,,, उसमें और उस,,,, विक्षिप्त माता के चेहरे में इतना अधिक साम्य दिखा मुझे,,, कि और कोई,, विषय,,,,, सूझा ही नहीं मुझे,,, और पुनः एक संस्मरण आप सबके सामने ले आई।

 

प्रीती सक्सेना

स्वलिखित

इंदौर

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