सुनो मीता मैं एक बात सोच रहा हूं कि मेरी सेवा निवृत्ती में केवल दो ही बर्ष शेष हैं फिर सारा समय हमारा ही होगा। खूब घूमेंगे फिरेंगे जीवन भर की कमी पूरी करेंगे। अभी तक तो हम अपने लिए जी ही कहां पाए। शादी के बाद पहले भाई-बहन की जिम्मेदारी मेरे ही कंधों पर थी, फिर मां पापा,तब तक अपने बच्चे हो गये। उनका पालन पोषण, पढ़ाई लिखाई, नौकरी,व्याह शादी, मकान इन्हीं सब में उलझे कैसे कब जिन्दगी निकल गई पता ही नहीं चला।
अब कोई जिम्मेदारी नहीं है। मकान है ही पैंशन इतनी मिलेगी कि हम दोनों का गुजारा सम्मान पूर्वक हो सकेगा, हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।जब तक हाथ पैर चलेंगे तब तक आराम से अपने तरीके से जिएंगे ।
मीता जी कह तो तुम सच रहे हो पता ही नहीं चला भागते दौड़ते हम बूढ़े हो गए। कभी दो पल चैन के न मिले किन्तु तुम तो नौकरी से सेवा निवृत्त हो जाओगे किन्तु मेरी घर से सेवा निवृत्ति मुश्किल है। मेरी जिम्मेदारीयां मरते दम तक खत्म नहीं होंगी।
कैसे, क्या समझाकर बताओगी।
हां पहली जिम्मेदारी तो तुम ही हो। तुम्हारा खाने-पीने का ध्यान रखना, तुम्हारी चींजे सम्हालना, कपड़ों का ध्यान रखना आदि।
दूसरी जिम्मेदारी बच्चों की है, सिर्फ शादी कर देने भर से पूरा नहीं हो गया। अभी बच्चे होंगे तब उनको मदद की जरूरत पड़ेगी। फिर उनके घर में शादी व्याह होंगे तब लेन-देन की तैयारी करना, वहां जाना सब अपनी ही जिम्मेदारी है। और हां नंनद देवर के बच्चे भी अब बडे हो गये हैं उनके भी सम्बन्ध होंगे बड़े होने के नाते वहां भी समय-समय पर पहुंच जिम्मेदारी निभानी होगी। और फिर मैं बुआ और मौसी भी हूं उन दोनों के बच्चे भी बड़े हो रहे हैं वहां भी तो फर्ज निभाना पड़ेगा।
मानव जी बोले यार मीता तुम कितना सोचती हो, मेरे तो ख्याल में ये सब बातें आईं हीं नहीं।
तभी तो पुरुष जल्दी सेवा निवृत्ती का आनंद भोगते हैं, जबकि
स्त्री को मरने तक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।
बात आई गई हो गई।
इनके केवल दो ही बच्चे थे और उनमें भी केवल दो बर्ष का अन्तर था।सो एक साल के अन्तर से ही पहले बेटी नीरजा की शादी कर फिर बेटे नमित की शादी कर दी। नमित शादी के बाद कनाडा चला गया फिर उसने इधर आने का रूख ही नहीं किया। वहां की सुख सुविधा छोड़ अब भारत आने का मन नहीं किया सो वहीं सेटल हो गया। बेटी की ससुराल दिल्ली में थी सो वहीं रहती थी।
अभी उन्हें एक साल ही हुआ था सेवा निवृत्त हुए। चैन से रहते थे। अपने हिसाब से रूटीन सेट किया। सुबह शाम घूमने जाना थोडा योगा करना, समय से खाना पीना आदि।
तभी बेटी ने खुश खबरी दी कि आप लोग नाना नानी बनने वाले हैं।वे खुश हुए किन्तु मीता जी कुछ सोचने लगीं।
तब मानव जी बोले मीता तुम किस सोच में डूब गईं।
अब एक नई जिम्मेदारी निभाने का समय आ गया।
और वही हुआ नियत समय से पहले बेटी का फोन आ गया मम्मी आपको आना है मुझे सम्हालने।
क्यों निलेश की मम्मी नहीं आ रहीं क्या।
नहीं मम्मी मैं उन्हें नहीं बुलाना चाहती तुम आओगी तो मुझे संतोष रहेगा।
फिर एक दिन निलेश का फोन आया मम्मी जी मैं कब आपको लेने आऊं,समय पास आ रहा है।
अरे नहीं बेटा आपको आने की जरूरत नहीं मैं स्वयं आ जाऊंगी।
अब उन्होंने मानव जी से चलने को बोला ।
वे बोले मैं क्या करूंगा चलकर मेरा क्या काम है तुम चली जाओ।
पर तुम्हारा यहां खाने-पीने का क्या होगा।
वो मैं सब देख लूंगा तुम चिंता मत करो, जाकर नीरजा को सम्हालो।
नीयत समय पर नीरजा ने बेटे को जन्म दिया। खुशी का माहौल था। आराम से दो महीने हो गए।अब उन्होंने नीरजा से कहा बेटी अब तुम अपनी गृहस्थी सम्हालो मैं अब जाऊंगी वहां तुम्हारे पापा परेशान हो रहे होंगें।
पर मम्मी बच्चा अभी छोटा है और घर का इतना काम कैसे होगा।
ऐसा कर अब कुछ समय के लिए अपने सास-ससुर को बुला ले तेरी मदद हो जाएगी और वे भी अपने पोते के साथ समय गुजार लेंगे।
नहीं मम्मी उनके आने से तो मेरे ऊपर काम का और बोझ बढ़ जाएगा।वे आपकी तरह थोड़े ही सब सम्हालेंगी। कुछ दिनों और रूक जाओ मम्मी थोडा और बड़ा हो जाए अनय।
मन मार कर ही सही बेटी के प्रेम के वशीभूत हो वे एक महीने और रूकीं।अब वे इतना काम नहीं कर पा रहीं थीं थक जातीं किन्तु बेटी थी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर वे चलीं गईं।घर अस्त-व्यस्त मिला।मानव का खाना पीना अनियमित रहने से उनकी तबियत भी गड़बड़ हो गई।सब समेटने में उन्हें पंद्रह बीस दिन लग गए।अब जाकर उन्होंने चैन की सांस ली। तभी दो माह बाद बेटे ने खुश खबरी सुनाई मम्मी आप लोग दादा-दादी बनने वाले हैं। सुनकर खुशी तो बहुत हुई किन्तु मीता जी फिर एक नई जिम्मेदारी आने से चिन्तित हो गईं।
समय पर बेटे का बुलावा आ गया। मम्मी आप दोनों के कब के टिकट करा दूं। आपको आना ही है नहीं तो निशी को कौन सम्हालेगा।
ऐसा कर बेटा उसकी मम्मी को बुला ले वो उनके साथ ज्यादा सहज रहेगी। मैं बाद में कुछ दिनों बाद आ जाऊंगी।
नहीं मम्मी वे नहीं आ सकतीं फिर पापा जी वहां अकेले परेशान होंगे आप तो दोनों ही आ जाओ। मैं सप्ताह भर बाद के टिकट करा देता हूं।
ठहर मैं अभी बताती हूं।
उन्होंने मानव जी को बताया तो उनका वही जबाब था इस काम में मैं क्या करूंगा चलकर।
नहीं मैं अकेली नहीं जाऊंगी साथ चलोगे तो चलूंगी।
खैर दोनों कनाडा पंहुच गये। दो-तीन दिन तो थकान दूर होने एवं जेटलाॅग से निपटने में लगे। फिर बेटा उन्हें घूमाने फिराने ले गया।बहु निशी को अधिक समय तक अकेले नहीं छोड़ सकते थे सो ज्यादा दूर नहीं जाते।
निशी ने समय पर एक सुन्दर से बेटे को जन्म दिया। फिर वही पुरानी प्रक्रिया दोहराई गई घर का काम एवं बच्चे को सम्हालना।
दो माह बाद वे बोलीं बेटा अब हम चलते हैं अब कुछ दिनों के लिए अपने मम्मी-पापा को बुला लो।
नहीं मम्मी कुछ दिन और रूक जाओ मेरी मम्मी से इतना काम नहीं हो पायेगा।
यह सुन वे ठगी सी रह गईं। मेरे बच्चों को मेरी चिंता नहीं है। मेरी परेशानी, मेरी थकावट उन्हें नहीं दिखती ।अब इस उम्र में और कितना काम लेंगे मुझसे। बेटी को अपनी मां चाहिए क्योंकि उसकी सास काम नहीं करैंगी और बहू को अपनी सास चाहिए क्योंकि उसकी मम्मी काम नहीं करेंगी। मैं कब तक करूंगी,जो करता है उसे ही जोता जाता है।
वे वहां कुछ दिन और रहकर वापस आ गईं। अभी थकान नहीं उतरी थी कि बेटी का फोन आ गया उसे डेंगू हो गया था सो मम्मी आ जाओ। फिर चल दीं एक ओर नई जिम्मेदारी सम्हालने।
ऐसे ही आते -जाते पांच बर्ष बीत गए।वे बुरी तरह थक चुकीं थीं। बिस्तर पकड़ लिया।उनकी हालत देख कर मानव जी बहुत दुःखी हुए और बोले बहुत हो गया बहुत सम्हाल ली जिम्मेदारी यह तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही अब तुम कहीं नहीं जाओगी। बहुत मना लिए मुंडन, जन्मदिन,भात शादी व्याह।
अब हम अपने लिए जियेंगे सिर्फ अपने लिए । बच्चों का मोह छोड़ अपने स्वास्थ्य को देखो। काम करने की अब तुम्हारी उम्र नहीं है। थोडा स्वार्थी बन अपने लिए सोचो और जिन्दगी जीओ।
पर हां हंसते हुए बोले पर मेरी जिम्मेदारी तो खत्म नहीं होगी वो तो पूरी करनी पड़ेगी किन्तु अब मैं तुम्हारा पूरा सहयोग करूंगा।
बच्चे भी अब समझ गये थे कि मां से मदद नहीं मिलेगी सो उन्होंने उनसे इस छोड़ दी।
शिव कुमारी शुक्ला
15-10-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
वाक्य***जिम्मेदारीयां कभी खत्म नहीं होंगी