अब आगे …
कविता बाऊजी के कमरे में आई है …
बाऊजी आप भईया को पढ़ने क्यों नहीं भेज देते….
तू भी अपने भाइयों की तरह अलग ही बोल रही छोरी….
तू तो नेक समझदारी से काम ले …
दीनानाथजी सख्त लहजे में बोले…
बाऊजी जरा मेरी बात ठंडे दिमाग से सुनो…
कविता ने दीनानाथ जी का हाथ अपने हाथ में लिया…
देखिए बाऊ जी बेरोजगारी का समय है …
बच्चे कैसे दर बदर इधर-उधर भटक रहे हैं नौकरी के लिए ….
भईया का एडमिशन इतने बड़े कॉलेज में हुआ है…
आप जानते हैं …
वह कॉलेज कितना बड़ा है बाऊ जी….
आप आसपास मोहल्ले वालों को भी बताओगे तो सब दांतों तले उंगली दबा लेंगे …
कि आपके बेटे का एडमिशन इतने बड़े कॉलेज में हुआ है …
वहां से अच्छी पढ़ाई कर लेंगे भईया आगे की तो नौकरी भी अच्छी लग जाएगी…
हो सकता है अपने ही शहर में लग जाए…
तो एक मौका तो देना चाहिए ना बाऊजी…
आपको भी तो बाबा ने मौका दिया था..
फौज में भर्ती होने का …
लेकिन आपको यहीं रहकर कुछ ना कुछ करना था ..
तो आप नहीं गए…
बाकी बाऊजी आप ज्यादा समझदार हैं …
अच्छा बुरा ज्यादा समझते हैं …
लेकिन प्रथम भईया बहुत ही दुखी हैं …
वह आपकी बात को कभी नहीं टालते हैं…
कुछ कहेंगे नहीं….
लेकिन अंदर ही अंदर घुट जाएंगे…
अब इतने समझदार हो गए हैं …
कि बाहर जाकर पढ़ाई कर सके …
और वह कौन सा हमेशा के लिए जा रहे हैं…
बीच-बीच में आते रहेंगे…
जैसे पढ़ाई पूरी हो जाएगी …
आ जाएंगे यहां…
फिर चाहे उनका ब्याह कीजिएगा …
चाहे आटा की चक्की खुलवाइएगा…
कविता ने अपनी बात खत्म की…
दीनानाथ जी कुछ बोले नहीं …
अच्छा ज्यादा ना बोल छोरी…
तू सो जा जायके…
मोते ज्यादा चकर मकर न कर …
जैसी तुमायी मर्जी बाऊ जी…
कविता बाऊजी को प्रणाम कर बाहर आ गई ….
सुबह की भोर हुई थी ….
दीनानाथ जी कुल्ला मंजन कर रहे थे …
रसोई घर से अदरक की चाय की थोड़ी-थोड़ी खुशबू आ रही थी…
सभी बच्चे तैयार हो रहे थे …
चारों तरफ चहलकदमी चल रही थी …
सुबह का समय हर घर में ही व्यस्तता का रहता है ….
जब तक घर के मर्द और बच्चे निकल नहीं जाते…
तब तक यही हाल रहता है …
धीरे-धीरे कर पिंटू, मिंटू और रिंकू भी अपने नौकरी के लिए निकल रहे थे …
और प्रथम वहीं बैठा अखबार पढ़ रहा था …
तभी तीनों बेटे दीनानाथ जी के पैर छूने आए …
अच्छा बाऊजी हम चलते हैं …
नेक देर रुको…
जरा ओ रे प्रथम …
यहां अईयो …
दीनानाथ जी बोले…
हां बाऊजी कहिए…
कुछ लाना है क्या …??
बिस्किट तो आपके अभी है ना…
ना ,,,ना ,,बिस्कुट ना मंगा रहा मैं …
वह तो मैंने खाए ले सवेरे ही….
वो तू कौन से कॉलेज की बात कर रहा था…
ज़हां ते तू बीटेक करेगा…
तोये जानो कब है…
यह बता…
दीनानाथ जी की बात सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कान तैर आई….
प्रथम की खुशी का ठिकाना नहीं था …
उसने बाऊजी के गालों को कसके पकड़ लिया…
क्या सच में बाऊजी …??
गालों को छोड़ रे…
वैसे ही झुर्रिया पड़ गई है …
बिल्कुल नारियल हो बाऊ जी तुम भी….
मैं अभी जाने की हामी ना भर रहा …
पूछ रहो हूं…
कब जानो है…
बाऊजी आप आज हां कर दे…तो कल ही चला जाऊं…
अगले हफ्ते से क्लासेस स्टार्ट है….
वहां जाकर रहने,,खाने की व्यवस्था भी देखनी है….
अगर हॉस्टल सही रहेगा तो वहीं पर रहूंगा…
लेकिन अगर महंगा हुआ तो बाहर कमरा लेकर रहूंगा….
ज्यादा खर्चा नहीं करूंगा बाऊजी…
मुझे पता है इतना बड़ा परिवार आप चला रहे हैं ….
तू ज्यादा खर्च की चिंता ना कर ….
मन लगाकर जाकर पढ़…
और कछु बढ़िया सी नौकरी लेकर अईयो…
मेरी नाक मत कटाये दियो….
पैसा तो तेरा बाप अपने बच्चों पर ,उनकी पढ़ाई पर ,,पानी की तरह बहाने को तैयार है…
बस वह मेहनत सफल होनी चाहिए …
बिल्कुल बाऊजी मैं दिन रात एक कर दूंगा …
आपका और भईया लोगों का विश्वास टूटने नहीं दूंगा ….
अभी तो आपको कुछ भी पैसे नहीं देने …
भईया और भाभियों ने मिलकर इंतजाम कर दिया है ….
यह तो बड़े सयाने है गए ….
यह कब से समझने लग गए ….
दीनानाथ जी व्यंग में बोले….
क्या बाऊजी …
आपने क्या हमें ऐसा ही समझा है…
ब्याह हो गए तो क्या हम अपनी लुगाइयों पर खर्च करते हैं ….
यह भी हमारा छोटा भाई है ….
इसका भी ख्याल है हमें….
पिंटू बोला ….
अच्छा-अच्छा तुम लोग जाओ अब….
आज शाम से तैयारी शुरू कर दो….
कल तो ना छोरा तू परसों चले जइयो ….
दीनानाथ जी बोले….
प्रथम आज बहुत ही चहक रहा था….
पूरे घर में इधर से उधर कभी मां के पास,,कभी कविता के पास,,तो कभी सभी भाभियों के पास बैठा था ….
उसके जाने में बस दो दिन ही बचे थे,,उसे तैयारी की कोई टेंशन नहीं थी….
उसे पता ही था कि उसकी बहन है …
उसकी भाभिय़ां है …
तो उसे किसी चीज की फिक्र की जरूरत नहीं …..
तभी पोस्टमैन आया….
चिट्ठी …
कविता चिट्ठी लेकर आई…
भईया यह देखना …
वह शायद आपने जो बैग वाली लड़की को चिट्ठी भेजी थी….
मुझे उसी की लग रही है ….
निहारिका ही नाम बताया था ना आपने …
हां हां… ला अब… मेरी चिठ्ठी …..
प्रथम ने उसके हाथ से चिट्ठी ले ली …
भईया मैं पढ़ देती तो कोई बुराई थी क्या ….
नहीं ,,नहीं..ऐसी कोई बात नहीं छोटी ….
प्रथम मुस्कुरा रहा था…
आप तो ऐसे कह रहे थे जैसे यह होने वाली भाभी की चिट्ठी हो….
तू भी ऐसे बोल रही ….
जैसे मै इस निहारिका को सालों से जानता हूं …
जा अब…काम कर ….
प्रथम अपने कमरे में चिट्ठी लेकर के आ गया ….
उसने चिट्ठी खोली….
उसमें लिखा था ….
नमस्ते प्रथम जी ….
बहुत खुशी हुई जानकर कि मेरा बैग आपके पास है…
4 दिन से तो मैंने खाना पीना ही छोड़ दिया था….
इतनी टेंशन हो रही थी….
मैं अपनी सहेली के साथ आपके शहर में इंटरव्यू देने के लिए आई थी…..
और तभी मेरा फोन खराब हो गया था…
तो फोन की दुकान पर दिखाने गई….
वहीं मेरा बैग जल्दबाजी में छूट गया….
क्योंकि मेरी ट्रेन छूटने वाली थी …
मैंने ही आपका बैग उठा लिया था….
आपका बैग मेरे पास है…..
और मेरा बैग आपके पास….
आप बताइए….
आपके पास कब समय है….
मैं आपको देने आती हूं …..
प्रथम जी आपके जवाब का इंतजार रहेगा मुझे….
आपको बेवजह ही परेशान कर दिया….
इसके लिए माफी चाहती हूं….
निहारिका….
मन में 10 तरह के सवाल उठ रहे थे प्रथम के….
कि वह कहां का बोले…
उसे बेंगलुरु भी निकलना था …
प्रथम ने भी एक चिट्ठी फिर से लिखी …
उसने बताया कि…
नमस्ते निहारिका जी….
मैं पढ़ाई के लिए बेंगलुरु जा रहा हूं….
तो आप जो भी अगली चिट्ठी भेजिएगा….
मेरे बेंगलुरु के कॉलेज वाले एड्रेस पर ही भेजिएगा….
अगर आपके लिए बेंगलुरु के आसपास कोई पास जगह पड़े ..
तो आप वहां से बैग ले सकती हैं …
अब मैं अपने घर पर नहीं हूं….
और शायद कई महीनों बाद ही जाऊं ….
अगर आपको समस्या ना हो …
तो मैं बाय पोस्ट ही आपका बैग भेज दूं ….
आपके जवाब के इंतजार में….
प्रथम ….
अगला दिन हो चला था…
पूरे घर में चहलकदमी हो रही थी….
अरे प्रथम भईया जा रहे हैं…
छोरे के लिए लड्डू भी बनाए दियो देसी घी के….
पता ना वहां पर क्या खाएगा मेरा लाल…
संतोषीजी चिल्लाती जा रही थी…
और तरह-तरह के अचार बना रही थी ..
कुछ मठरियां भी सिक रही थी धीमी आँच पर…
तीन-चार बैग तो सिर्फ लगता है खाने पीने के लिए ही प्रथम के तैयार हो चुके थे….
अरे मां…
यह सब क्या है….??
इतने बैग मैं कैसे लेकर के जाऊंगा….
तू अकेले थोड़े ना जाये रहो है छोरा ….
तोये करने पूरो खानदान जाएगो …
ताऊ भी आये रहे गांव ते…
बाऊजी क्या कह रहे हैं आप….
सब लोग जाएंगे…
जानते है टिकट कितनी महंगी है…
हां जानतो हूँ बस तीनों तेरे भईया ,,मैं और तेरी अम्मा,,,इतने लोग ही तो जाये रहे हैं ….
सब देखकर आएंगे…
तो अच्छे से…
वहां कमरे में करके आएंगे…
छोरा पहली बार शहर छोड़ कर जाए रहा…
दीनानाथ जी बोले…
पिंटू भैया को ही भेज दीजिए…
वही मेरी व्यवस्था कर आएंगे ….
आप लोग बेवजह परेशान होंगे…
ना ना,,, मोये तो जानो है …
तुम पर चला जाता नहीं …
लाठी लेकर चलते हैं …
आए हैं उसके साथ जाने वाले …
चुपचाप घर में बैठो …
छोरा को और परेशान कर देंगे …
कभी जे चहिए,,कभी वो ,,चहिए …
संतोषी जी बोली…
उनकी बात सुनकर दीनानाथ जी चुप पड़ गए….
ठीक है ….
फिर जैसा तोये ठीक लगे…
ठीक है …
पिंटू भईया ,,आप चलना मेरे साथ…
मैंने तत्काल में टिकट करा दी है…
ठीक है छोटे …
मैं कल दो-तीन दिन की छुट्टी ले लेता हूं…
शाम होते-होते पूरे घर की आंखें नम हो चुकी थी …
घर का बेटा अगले सुबह अपनी नई मंजिल की ओर निकलने जो वाला था….
किसी का आज खाने में भी मन नहीं लग रहा था….
सबके चेहरे देखते हुए दीनानाथ जी पर ना रहा गया…
वह बोले ,,
ए रे लला,,,मोये तो कछू ठीक ना लग रहा …
तू मेरी सुन ….
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अहमियत रिश्तों की (भाग-4) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi
तब तक के लिए जय श्री राधे..
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लेखिका
मीनाक्षी सिंह
आगरा