बाऊजी..
सुनियो…
धीरे से, पीछे से धक्का देते हुए मंझले बेटे मिंटू ने पिंटू भाई साहब को आगे की ओर किया ….
क्या कर रहा हैं…
आगे गिरायेगा क्या बाऊ जी के उपर मुझे…
भाई साहब …
आप ही बड़े हैं …
आप ही पहल कीजिए …
पीछे से रिंकु के फुस्फुसाने की आवाज आई …
हां तो …
क्या मैं डरता हूं …
क्या कह रहा छोरा सवेरे सवेरे ….
दीनानाथ जी बोले….
वो बाऊजी …
तुमसे नेक बात करनी है …
नेक ध्यान से सुनियो…
हां सुन रहो हूँ…
बहरों ना हूँ….
का बात करनी है …
अब तो अच्छी खासी तनख्वाह है गई है तेरी…
अब पैसे काहे को मांग रहा तू ….
ना ना….
बाऊजी ….
पैसे वाली बात नहीं ….
कुछ और ही बात है….
तभी अपनी ऐनक ऊपर करते हुए दीनानाथ जी ने पिंटू की तरफ देखा…
अरे ये पिंटू ही नहीं …
पूरी फौज थी…
उसके पीछे दोनों बेटे ,,बेटों के पीछे तीनों बहुएं ,,बहुओं के पीछे बेचारा प्रथम,,और बगल में बैठी उनकी पत्नी संतोषी जी ने भी पति की घूरती आंखों को देखकर अपना मुंह फेर लिया….
यह सुबह-सुबह पूरा कुटुंब एक ही जगह जुड़ ग्यो है…
कोई काम धन्धा ना हैं का….
जाओ जाकर बालकों को तैयार करो …
स्कूल होगो….
दीनानाथ जी बोले ….
और पिंटू बोल तू क्या कह रहा….
तू अपनी बता….
वो बाऊजी …
बाऊजी के आगे तो कुछ बोल…
आ गया बखत खराब करने …
अच्छा ठीक है….
बाऊजी तो सुनो सीधी सीधी ….
छोटे बेंगलुरु पढ़ने जाना चाह रहा है ….
क्या बोली तूने …
फिर से बोलियो ज़रा …
दीनानाथ जी बोले …
अभी तो आप कह रहे बहरे ना हैं…
अपना पल्लू संभालते हुए संतोषी जी बोली….
मंझले बेटे मिंटू में भी थोड़ी हिम्मत आई…
हां बाऊजी …
भाई साहब सही कह रहे हैं …
प्रथम को बेंगलुरु पढ़ने जाना है …
आपकी इजाजत चाहिए…
तभी उसकी हां में हां मिलाकर सभी लोगों ने एक सुर में बोला….
हां ..हां ..
बाऊजी,,प्रथम को पढ़ने भेज दीजिए ….
दीनानाथ जी बिल्कुल शांत थे …
एकदम से उठे….
उनके हाथों में लाठी थी…
एक लाठी उठाकर उन्होंने पिंटू की टांगों में मार दी …
क्या बोला …
फिर से बोलियो…
संतोषी जी पर ना रहा गया …
जे तुम ऐसे मार रहे हो छोरा को…
बच्चे पूछी तो रहे हैं….
कोई हुकम थोड़े सुना रहे है….
भेज देओ लला कूँ …
इसकी हिम्मत कैसे भई…
यह बात बोलने की …
छोरा बाहर पढ़ने जाएगा …
क्या इन सबको पता ना है…
हमारी तीन पुश्तों से कोई बाहर पढ़ने ना गया…
ऐसा तो ना बोलो बाऊजी …
वह सावित्री दीदी का बेटा विवेक बाहर नहीं गया था …
वहां से ही तो पढ़कर आया….
कितनी बढ़िया नौकरी कर रहा है …
छोटा बेटा बोला ….
और हां बाऊजी वो विमला दीदी और श्रवण जीजा जी,,उनकी लाली विनीता ,,भी तो बाहर ही गयी …
डॉक्टरी की पढ़ाई करी उसने …
और आज देखिए कैसे बढ़िया-बढ़िया स्टेटस लगाती है वहाट्सएप पर …
देख देख कर मेरा भी मन करे है…
ऐसी ऐसी ड्रेस ,,मैं भी पहनूँ…
और रील बनाऊं …
छोटी बहू काजल अपने मन की बात बोल पड़ी …
उसके पति रिंकु ने उसे खौरायी नजरों से देखा….
धीरे – धीरे कर सब घर के लोग गिनाने लगे …
कौन-कौन बाहर गया…
अच्छा,,तो तू विमला ,,श्रवण और सावित्री की बात कर रहा …
यह सब क्या अपने घर के हैं …
तीन पुश्तों का मतलब समझता है …
छोरियां अपने घर की नहीं होती…
वह दूसरे घर की होती है…
वह कछु करें,,उनके बालक कहीं जाएं ,,वहां से हमें मतलब ना है …
लेकिन हमारे बालक यहीं रहकर ,,यही पढ़कर नौकरी पाएंगे …
यह बात कान खोलकर सुन लो …
ए रे प्रथम क्या पट्टी पढ़ाई है तूने सबको…
सब एक ही राग अलाप रहे…
कहां पीछे खड़ा हुआ है…
सबकी आड़ में …
बाहर आ….
प्रथम डरता हुआ सब के पीछे से बाहर आया ….
वो बाऊजी वह तो बस मैं ऐसे ही भईया से कहा था…
आप मना कर रहे हैं…
तो कोई बात नहीं…
नहीं जाऊंगा…
प्रथम तेरे जीवन का सवाल है …
साफ-साफ बाऊजी से बोलता क्यों नहीं…
कितने अच्छे कॉलेज में तुझे एडमिशन मिला है ….
ऐसा मौका छोटे बार-बार नहीं मिलता ….
कौन सी पढ़ाई करने जाएगा ,,मोये तो पता चले…
जो यहां नहीं हो सकती….
दीनानाथ जी बोले…
हां भईया,, बता दीजिए ना बाऊजी को ….
वह कौन सी बड़े से नाम वाली जो पढ़ाई आप बता रहे थे…
वही तो करने जा रहे हैं….
बीच नंबर वाली बहू बोली…
वो बाबूजी मेरा एडमिशन इंडियन इंस्टीट्यूट आफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी बेंगलुरु में हुआ है …
जिसकी पूरी इंडिया में रैंक 74वीं है…
बहुत ही अच्छा कॉलेज है बाऊजी …
हर साल बहुत से प्लेसमेंट होते हैं….
मैं वहां से बीटेक करूंगा,,फिर वहीं से एमटेक ,,5 साल का डिप्लोमा है …
और नौकरी पक्की है …
अच्छा पैकेज मिलता है…
प्रथम ने बात खत्म की…
तो तूने मुझे बिना बताए ही कॉलेज को पेपर दे दियो….
और यह इतना लंबा चौड़ा जो तूने नाम बताया है …
वह सावित्रीबाई ,,विमला बाई ,,सुभाष चंद्र बोस कॉलेज ऐसे ऐसे नाम थे हमारे जमाने में …
तो कॉलेज के …
यह कौन सा नाम बताए रहो…
अंग्रेजी नाम है…
अंग्रेज तो वैसे भी बस हमें धोखा ही देते आए हैं…
तुझे भी धोखा ही मिलेगा….
दीनानाथ जी बोले…
मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो सब लोग …
कहीं ना जाए रा छोरा …
कछु करना हो तो यहां कर ले …
नहीं तो तेरी आटा की चक्की पक्की है …
बाहर वारे कमरा में …
वहां बैठकर अपनी दुकानदारी संभाल…
अगले साल तेरा ब्याह कर दूंगा…
25 साल का है गयो है…
अभी और पढ़ना है …
क्या बताई ,,वह बीटेक और आई एम टेक,, 5 साल की …
का 40 साल में ब्याह करेगो ….
दीनानाथ जी अपनी बात खत्म कर फिर से अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गए ….
सबके सब यहां से निकर जाओ …
काम पर जाओ…
एक बार सोच लेते बाऊ जी…
छोटे के जीवन का सवाल है …
थोड़ा अपने दकियानूसी बातों से बाहर आओ…
परिवर्तन अपने ही घर से प्रारंभ होता है …
हमारी पीढ़ी इसकी शुरुआत कर दे…
तो इसमें क्या बुराई है …
कोई ना कोई,,तो कभी तो करेगा…
कोई तो हमारी पीढ़ी बाहर पढ़ने जाएगी…
ज्यादा जवान ना लड़ा …
जब तक मैं हूं …
मेरा ही हुकम इस घर में चलेगा…
जिस दिन परलोक सिधार जाऊं …
जो कछु करना है कर लियो…
वह तो मुझे पता है यह पूरे घर का सब सत्यानाश करोगे तुम लोग….
दीनानाथ जी बहुत ही हठी स्वभाव के थे…
वह अपनी बात पर टिके हुए थे….
उनका गुस्सा देखकर और आगे किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई ….
सभी लोग अपने-अपने काम की ओर चल दिए….
प्रथम भी बहुत निराश था …
उसे समझ में नहीं आ रहा था …
कितना पैसा खर्च हुआ है …
इतने अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिला है…
अब आगे मैं क्या करूं ….
अभी बैठा हुआ था प्रथम …
तभी उसकी छोटी बहन कविता उसके पास आई…
भईया डोंट लूज होप…
बोल दिया पापा ने …
कोई बात नहीं भईया….
लेकिन कोई जरूरी नहीं कि पापा आज मना कर रहे …
कल भी मना करें…
आप तो जानते हो आपकी छोटी बहन की बात पापा हमेशा मानते हैं …
आज तक उन्होंने मेरी बात नहीं टाली …
बस मैं थोड़ा मौके की तलाश में हूं…
मैं ही पापा से जाकर बात करूंगी…
उसकी छोटी बहन कविता बोली…
अरे यह तो मैं भूल ही गया …
प्रथम बोला …
तेरी बात को आज तक बाऊ जी ने मना नहीं किया है…
प्लीज,,प्लीज…
मेरी बहना मेरा यह काम बना दे …
तेरा जिंदगी भर शुक्र गुजार रहूंगा…
अरे भईया बहन को भी कोई ऐसे बोलता है क्या…
कविता बोली…
अच्छा भईया,,यह किसका बैग है …
आपका तो कोई दूसरा बैग था ना…
बेड पर पड़े काले बैक को देख करके कविता करने लगी…
हां यार …यह तो मैं भूल ही गया…
पता नहीं किसी लड़की का यह बैग आ गया है …
इसमें उसके जरूरी कागजात है …
लेकिन कोई फोन नंबर नहीं दिया है…
सिर्फ एड्रेस दिया है …
समझ नहीं आ रहा क्या करूं …
उसके एड्रेस पर ही यह बैग भेज दूं …
लेकिन इसमें रिस्क है …
कि कहीं रास्ते में खो ना जाए…
तो भईया मैं एक आईडिया दूं …
कविता बोली…
हां हां…
नेकी और पूछ पूछ …
बोल …
भईया …
आप ऐसा करो एक चिट्ठी लिख दो …
और उसमें बता दो…
कि उसका बैग आपके पास रह गया है…
वह इस पते पर आकर के ले जायें…
आप जहां भी उसे देना चाहे…
वहां पर वह आ जाए तो …
क्योंकि किसी की पढ़ाई लिखाई के कागज है …
वह इधर-उधर ऐसे ना हो जाए …
कविता बोली …
सच में तू बहुत समझदार हो गई है…
ऐसा ही करता हूं …
एक चिट्ठी लिखता हूं…
तभी कागज और पेन लेकर प्रथम बैठ गया…
पहले उसने लिखा…
टू निहारिका ..
आई एम प्रथम हियर …
हाउ आर यू …
तभी प्रथम सोचा…
यह क्या लिख रहा हूं मैं …
क्या पता उस लड़की को अंग्रेजी नहीं आती हो …
और मेरा लैटर ना पढ़ पाए …
उसने उस पेज को फाड़ कर फेंक दिया…
फिर उसने दूसरा पेज लिया…
नमस्ते निहारिका जी…
मेरा नाम प्रथम है…
मैं इस एड्रेस पर रहता हूं …
यह बैग ,,आपका मेरे पास आ गया है…
आपके इसमें जरूरी कागज है…
आप मेरे एड्रेस पर आकर के ले सकती हैं…
अपना एड्रेस लिख करके प्रथम ने उस चिट्ठी को भेज दिया…
क्योंकि वह एड्रेस उसके शहर का नहीं था…
अगर उसके शहर का होता …
तो वह खुद ही जाकर के वह बैग दे आता…
प्रथम बहुत ही बुझा बुझा सा रहने लगा…
उसका खाने पीने में भी मन नहीं लगता…
क्योंकि बाऊजी ने मना जो कर दी थी …
रात का समय था …
कविता बाऊजी के लिए दूध लेकर के आई …
और उन्हीं के पास आकर बैठ गई …
पापा सो गए क्या …??
नहीं नहीं लाली…
आ बैठ…
क्या कह रही…
पापा आपसे एक बात कहनी थी …
हां हां बोल ..
तेरी ही बात इस घर में सौ टका सही लगती है मुझे….
पापा…आप प्रथम भईया को पढ़ने क्यूँ नहीं भेज रहे…
आगे की कहानी जल्द…
तब तक के लिए जय श्री राधे ..
अपनी प्रतिक्रिया देते रहिए…
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