“आ गई दिव्या, चलो हाथ मुंह धोकर डाइनिंग रूम में आ जाओ। चाय के साथ आलू प्याज के पकौड़े बनाएं हैं।” सुरेखा ने बेटी से कहा
“वाह पकौड़े बनाएं हैं आपने! बस मैं पांच मिनट में आई।” कहकर दिव्या अपने रूम में चली गई। झटपट हाथ मुंह धोकर कपड़े बदलकर वह नीचे पहुंची।
“मम्मी, आपके हाथ के पकौड़े और अदरक इलायची वाली चाय के क्या कहने!” कहते हुए दिव्या माॅ॑ से लिपट गई
“बस बस मक्खनबाजी बहुत हुई, चाय पकौड़े ठंडे हो रहें हैं।”
सुरेखा की मीठी झिड़की जिसमें प्यार ही प्यार भरा था और हो भी क्यों नहीं! बेटी दिव्या की शादी में बस पंद्रह दिन रह गए हैं। दिव्या बैंक में कैशियर है उसे जाॅब करते तीन वर्ष हुए हैं। दिव्या का होने वाला पति विशाल दूसरे शहर में कार्यरत है। दिव्या ने बैंक में स्थानांतरण की अर्जी लगा दी थी जब करीब छह महीने पहले उसकी शादी तय हुई थी। कल उसका इस ऑफिस में आखिरी दिन था इसके बाद एक महीने बाद उसे विशाल के शहर में ही अपना कार्यभार सम्भालना है।
अगले दिन बैंक के कुलीग्स ने दिव्या को फेयरवेल दी। दिव्या अब मम्मी-पापा और भाई के साथ शादी की तैयारियों में लग गई। नियत तिथि पर शादी के बाद दिव्या विशाल के साथ अपने ससुराल आ गई। वहां से बारह दिन के बात विशाल की जाॅब लोकेशन वाली जगह आ गई। तीन दिन बाद उसे भी यहां अपना ऑफिस ज्वाइन करना है। घर व्यवस्थित कर चौथे दिन दिव्या और विशाल साथ ही जाॅब पर निकले। विशाल ने उसे ड्राप कर दिया, विशाल एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर है तो दोनों की ऑफिस टाइमिंग मैच करती हैं।
दिव्या बहुत मन से एक सुंदर सी सोबर साड़ी, हाथ में कड़े और माथे पर बिंदी पहनकर तैयार हुई साथ में मांग में सिंदूर भरकर वो बेहद खूबसूरत लग रही थी।
ऑफिस में मैनेजर से मिलने के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी (फार्मेलिटीज़ कम्प्लीट) करने के बाद लंच तक दिव्या अपनी सीट पर आ पाई।
दिव्या जैसे ही अपनी सीट पर बैठी, आस-पास सुगबुगाहट होने लगी..
“अरे! ये नई कैशियर है! मैंने तो इसे बैंक का कस्टमर समझा था।” एक कुलीग बोली
दूसरी ने कहा,” मैं भी यही समझी थी।”
तीसरी कहां पीछे रहने वाली थीं, बोल ही पड़ी,” ऐसे सजधजकर आई है जैसे जाॅब पर नहीं पार्टी में आई हों!
चौथी हंसते हुए बोली,” टिपिकल बहनजी! देखो सिंदूर और बिंदी भी लगाई है। “
उधर से गुजरता पांचवां कुलीग भी शामिल होकर अपनी राय रखने से पीछे नहीं हटा,” आजकल ये बिंदी और सिंदूर कौन लगाता है, लगता है छोटे शहर की होगी। सास-ससुर भी साथ में रहते होंगे तो साड़ी, सिंदूर बिंदी तो कम्पलसरी होंगे ही।”
दिव्या के कानों में भलीभांति ये सब बातें सुनाई पड़ रही थी। जब बातें हद से ज्यादा पर्सनल हो गई तब उससे रहा ना गया। वह सीधे उठी और उन कुलीग्स की डेस्क पर जाकर बोली,” आप लोग शायद मेरे बारे में बात कर रहे हैं। देखिए मैं सिंदूर और बिंदी लगाऊं या नहीं ये मेरा पर्सनल मैटर है। पहली बात आप सभी यह बात सुन लीजिए कि बिंदी लगाना मुझे पसंद है और सिंदूर भी। मुझे पर किसी ने यह थोपा नहीं है और मैं अपनी खुशी से करती हूॅ॑। आपको जानकर अचरज होगा कि मैं दिल्ली से हूॅ॑ और मेरी ससुराल भी पूना की है तो छोटे शहर
बड़े शहर की जो बातें आप लोग कर रहे थे उनका औचित्य ही नहीं है और यह हरेक व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद होती है वो क्या पहने, इसमें भी आप जैसे लोग छोटे-बड़े शहर की मानसिकता ले आते हैं।आप अपने दिमाग की उलझनों को दूसरों पर नहीं लाद सकते हैं।
और हां! मैं साड़ी भी उतनी ही गरिमा से पहनती हूॅ॑ जैसे मैं जींस टीशर्ट और सलवार कुर्ता पहनती हूॅ॑। मैं दिखावे से अधिक अपने मन की सुनना पसंद करती हूॅ॑।” कहते हुए वह रुकी
पीछे से मैनेजर भी आ गए, उन्होंने सारा वार्तालाप सुना और आगे आकर सभी से कहा,” डोंट जज ए बुक बाय इट्स कवर! यानि वाह्य रुप रंग या कपड़े से आप किसी की काबिलियत नहीं जांच सकते हों। क्या आप लोग जानते भी हैं कि दिव्या को लगातार दो साल से बेस्ट एम्प्लाई का अवार्ड दिया गया है।
इंसान के पर्सनल मैटर, उसके पहनने ओढ़ने पर आप नहीं बोल सकते हैं। जो भी आप लोग कह रहे हैं वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात कर रहे हैं। सिंदूर-बिंदी साड़ी व्यक्ति की अपनी च्वाइस है उन सब से ऑफिस की किसी मर्यादा, नियम कायदे का उलंघन नहीं हो रहा है आप सभी को मिलकर काम करना है और आप लोग पहले दिन इनकी बुलिंग करने लगे।”
मैनैजर की कड़क वार्निंग से सभी की समझ में पलभर में ही आ गया। आगे बढ़कर सभी कुलीग दिव्या से बोलने लगे, “वी आर साॅरी दैट वी हैव हर्ट यू।”
दिव्या भी बिना किसी गिले शिकवे के सभी से मिली फिर सभी अपने अपने काम में लग गए। सभी कुलीग्स को भी अच्छी तरह से समझ में आ गया कि जो उनका अधिकार क्षेत्र नहीं वहां व्यर्थ की टीका टिप्पणी करने से मुंह की खानी पड़ती है।
दिव्या स्पष्ट बोलकर खुश थी कि फालतू में क्यों किसी की बातों को सुनकर अपने को गिल्टी फील कराना और उनके अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करना। मुझे बिंदी सिंदूर लगाना भाता है तो मैं लगाऊंगी। मैं क्यों सोचूं लोग क्या कहेंगे…
लेखिका की कलम से
दोस्तों, स्पष्टवादिता बहुत लोगों को ठीक नहीं लगती परंतु अपने ऊपर लोगों की अनर्गल टिप्पणियां झेलना भी समझदारी नहीं है, ऐसे लोगों को आईना दिखाना ही उचित है। दिव्या ने अपना पक्ष रखा, क्या आप दिव्या से सहमत हैं? आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया लाइक कमेंट और शेयर कीजिएगा।
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प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
#सिंदूर
VM