महकते रिश्ते – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रूप और गुण की खान थी नीति, जो भी उससे मिलता उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाता| उसके इन्हीं गुणों पर रीझ कर प्रियांशु ने उसे अपनी जीवन-संगिनी के रूप में चुना था| लेकिन, नीति के यही गुण उसकी सास शीला के गले में फांस की तरह चुभ रहे थे| उनको ये बात बिलकुल नहीं सुहा रही थी कि उनकी बहु उनसे ज्यादा सुन्दर और समझदार है|

नीति को नीचा दिखाने और फूहड़ साबित करने का कोई भी अवसर वे हाथ से नहीं जाने देती थी| वे नीति को कोई भी काम नहीं करने देती और यदि वह जबरदस्ती कुछ काम करती भी तो उसमे हज़ारों कमियाँ खोज निकालती|

यदि वह खाना बनाने की कोशिश करती तो शीला सबके सामने बड़े व्यंग्य से कहती “नहीं, नहीं बेटी तुम रहने दो, तुमसे नहीं हो पायेगा| तुम्हारे पापा और प्रियांशु को मेरे ही हाथ का खाना पसंद है” और नीति मन-मसोस कर रह जाती| कभी चाय-कॉफी बनाने भी देती तो “कितनी बेस्वाद है” कहकर सबके सामने उसका मज़ाक बनाती| नीति की लाई साड़ियों को भी सस्ती और घटिया बताकर नौकरों में बाँट दिया था|

एक बार नीति ने बहुत चाव से एक पेंटिंग बनाकर ड्राइंग रूम में लगा दी तो शीला ने बेकार बताकर उसे उतार फेंका था| उनके इस व्यवहार से नीति अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी, वह अपना कॉन्फिडेंस खोती जा रही थी| अब छोटे-छोटे काम करने में भी उसे घबराहट होने लगी थी| इस कारण उसके और प्रियांशु के रिश्तों में भी दूरियाॅं बढ़ती जा रही थी।

एक दिन प्रियांशु की मौसी दिशा उनके घर आई | वे नीति से बड़े अपनत्व और प्यार से मिली| नीति भी उनसे काफी अपनेपन से बातें करने लगी| नीति की बातों से प्रभावित होकर दिशा ने कहा, “दीदी तुम्हारी बहु तो बहुत समझदार है|”

“क्या खाक समझदार है| कुछ नहीं आता इसे, एक कप चाय तक ढंग से नहीं बना पाती| न काम का तरीका, न बोलने का| अभी ही देखो कैसे ही-ही करके हँस रही है, भले घर की बहुएँ ऐसे करती हैं क्या?” शीला ने व्यंग्य करते हुए कहा|

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“बस भी कीजिये मम्मी जी, मुझे भी पता है कहाँ कैसे रहना है, कैसे बात करनी है| आपके साथ दम घुटता है मेरा| क्या एक कप चाय बनाना भी मुझे आपसे सीखना पड़ेगी? हद होती है हर चीज की”| इतने दिन से अंदर ही अंदर घुट रही नीति बौखलाकर सबके सामने ही चीख पड़ी| उसके बाद तो घर में अच्छा-खासा ड्रामा हुआ| शीला ने जो रोना-धोना शुरू किया कि उसी रात नीति डिप्रेशन में चली गयी|

“नीति को क्या हो गया है मौसी? अच्छी-भली हमारे घर आई थी| मायके में नीति ही सारा घर संभालती थी| यहाँ एक कप चाय बनाने में भी घबरा जाती है, हाथ कांपने लगते हैं| मम्मी से भी कैसे चिल्लाकर बातें कर रही थी, जबकि ये तो अपनी मीठी बोली से गैरों को भी अपना बना लेती थी| हमारे ‘रिश्तों में बढ़ती दूरियाॅं’ मुझे बहुत परेशान कर रही है।ऐसा क्यों हो रहा है? नीति को हॉस्पिटल में बीमार पड़े देख प्रियांशु मौसी की गोद में सिर रख बिलख पड़ा।

“प्रियांशु, यदि तू नीति को बचाना चाहता है तो उसे दीदी से दूर ले जा| यदि और कहीं नहीं ले जा सकता तो कुछ दिन मेरे पास ही छोड़ दे, लेकिन बिना दीदी को बताये” दिशा ने शांति से कहा|

“पर मौसी मम्मी को बिना बताये क्यों?” प्रियांशु ने कंफ्यूज होते हुए कहा|

“देख बेटा, अभी मैं तुझे इससे ज्यादा नहीं समझा सकती| बस इतना बोल सकती हूँ कि शीला तेरी माँ है तो मेरी बहन भी है जिसे मैं बचपन से जानती हूँ| आगे तेरी मर्जी|” बोलते हुए दिशा वहाँ से चल दी|

दो दिन बाद टूर पर ले जाने के बहाने वह नीति को मौसी के घर ले आया| “प्रियांशु, तू निश्चिंत होकर टूर पर जा| पंद्रह दिन बाद जब तुम्हारा टूर खत्म हो तब नीति को यहाँ से ले जाना|” नीति को घर के अंदर ले जाते हुए दिशा ने कहा| मौसी पर विश्वास कर प्रियांशु नीति को उनके पास छोड़कर चला गया|

“नीति, बेटी क्या लोगी ? ठंडा या गरम |” दिशा ने नीति के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा तो वह चीख-चीखकर रोने लगी | दिशा प्यार से उसे सहलाती रही | ” ऐसा लगता है मौसी कि मैं मर जाऊँगी | मुझे बहुत डर लगता है | कुछ नहीं होता मुझसे | “उसने सुबकते हुए कहा |

” होता है बेटी, होता क्यों नहीं | तुम्हें तो सबकुछ आता है | इतनी समझदार, सुन्दर, पढ़ी-लिखी बहु है हमारी | याद है हमारी सालगिरह पर कचौडियाँ बनाई थी तुमने जब तुम यहाँ आई थी, ऐसी स्वादिष्ठ कचौडियाँ मैंने आज तक नहीं खाई |” दिशा ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा |

” सच ! मौसी ” उसने आश्चर्य से पूछा |

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” हाँ, बेटी बिलकुल सच | अब तो तुम्हें हमें रोज स्वादिष्ठ चीजें बनाकर खिलानी है | मौसाजी ने पीछे से आते हुए कहा | दूसरे दिन से ही दिशा ने पूरा घर नीति को सौंप दिया | उसे उसके मन की करने की पूरी छूट दे दी ताकि उसका खोया कॉन्फिडेंस वापस आ सकें |

अगले पन्द्रह दिनों तक सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक सब कुछ नीति ही करती रही| शुरू-शुरू में जरूर उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन दिशा के साथ से धीरे-धीरे उसकी खोई हिम्मत लौटने लगी थी| घर के कई काम जो घुटनों के दर्द की वजह से दिशा काफी समय से टाल रही थी वो भी नीति ने निपटा दिए थे | तरह-तरह की पेंटिंग्स से दिशा का ड्राइंगरूम खिल उठा था | घर के कोने-कोने में नीति की छाप दिखने लगी थी|

पन्द्रह दिन बाद प्रियांशु वापस आया तो उसके सभी सवालों के जवाब उसके सामने थे| मौसी के घर की नई सजावट, दीवार पर सजी खूबसूरत पेंटिंग, सोफों पर पड़े सुन्दर कुशन, टेबल पर लगा टेस्टी नाश्ता सब नीति का ही किया-धरा था|

“पता चला, मैं क्यों कहती थी कि नीति को मेरे पास छोड़ जा| कुछ नहीं किया मैंने सिर्फ उसे मनचाहा करने की छूट दी है| जो लड़की मेरा घर सज-संवार सकती है वो क्या अपने घर में निपट गंवार होगी? क्या एक कप चाय भी तुम्हे नहीं पिला पाती होगी? नीति बिलकुल ठीक और अपना घर संभालने के लिए पूरी तरह तैयार है ,प्रियांशु” दिशा ने हँसते हुए कहा|

फिर कुछ रूककर गंभीर स्वर में बोली “बेटा, किसी को समझाना है तो अपनी माँ को समझा| उन्हें उनकी असुरक्षा और ईर्ष्या की भावना से बाहर निकाल| नीति जैसी गुणवान और समझदार बहु पाकर निहाल होने के बजाय दीदी उससे कम्पीटिशन कर बैठी है| वो बचपन से ही ऐसी है|

उन्हें यह डर लग रहा है कि यदि नीति के गुण सबके सामने आ गए तो उनका महत्व कम हो जायेगा| वे खुद को नीति से कम सुन्दर और कम समझदार नहीं साबित करना चाहती| इसीलिए उसे उसी के घर में अलग-थलग कर, उसका कॉन्फिडेंस तोड़कर उसे गंवार साबित करने पर तुली है| तुम्हारे ‘रिश्तो में बढ़ती दूरियों’ का भी यही कारण है।अब यह तुम्हारी जिम्मेवारी है कि तुम नीति को घर में उसका सही स्थान और मान-सम्मान दिलाओ और दीदी को यह एहसास दिलाओ कि रिश्ते कम्पीटिशन से नहीं प्यार से बनते हैं” ऐसा कहते हुए उन्होंने नीति को प्रियांशु के साथ विदा कर दिया|

घर आते ही नीति में अपनी सास शीला को एक शाल दी। आदतानुसार शीला ने बिना देखे ही शाल फेक दी। “छी:, कितना गंदा रंग है। एकदम घटिया है।”यह देखते ही नीति का चेहरा उतर गया।

तब, तुरंत प्रियांशु ने शाल उठाकर शीला को देते हुए कहा “माॅं, एक बार पहन कर तो देखो बहुत सुंदर है। नीति बहुत प्यार से तुम्हारे लिए लेकर आई है।आगे से तुम इसे बता देना कि तुम्हें कैसा रंग और फैब्रिक पसंद है। और नीति जब तक माॅं शाल पहन कर देखती है, तब तक तुम जल्दी से चाय और पकौड़े बनाकर ले आओ।”

“जी अभी लाई। नीति ने खुश होते हुए कहा।”

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“अरे रुक कहाॅं चली? बड़ी आई ‘जी अभी लाई’ वाली।अभी वह बेकार सी चाय और बेस्वाद से पकौड़े लेकर आ जाएगी। रूक अपने बेटे के लिए चाय और पकौड़े मैं बनाऊॅंगी। उसे मेरे हाथ के ही पसंद है।” कहकर शीला जैसे ही उठकर रसोई की ओर जाने लगी तो प्रियांशु ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया

“माॅं, तुम मेरे पास बैठो ना। पूरे पन्द्रह दिन बाद आया हूॅं। तुम तो आराम से बैठकर मेरे साथ गप्पें मारो। चाय और पकौड़े नीति को ही बनाने दो।” यह सुनकर नीति का चेहरा खिल गया और वह जल्दी से रसोई की ओर बढ़ चली।

“क्या बात है! आज हर बात में उस महारानी की बहुत तरफदारी कर रहा है।” नीति के जाते ही शीला ने व्यंग्य से कहा।

“माॅं, यह तुम किस तरीके से बात कर रही हो नीति के बारे में। पत्नी है वह मेरी। ब्याह कर लाया हूॅं। तुम्हें उसे सिखाने का, समझाने का पूरा अधिकार है। लेकिन उसकी बेइज्जती करने का नहीं। इस घर ,घर के कामों और फैसलों पर नीति का भी उतना ही अधिकार है जितना आपका और मेरा।

यदि आप नीति को प्यार और मान-सम्मान के साथ अपनाओगी, तब तो हम यहाॅं एक परिवार के रूप में हॅंसी-खुशी रहेंगे। नहीं, तो मैं नीति को लेकर दूसरे घर में शिफ्ट हो जाऊॅंगा। मैं उसे यहाॅं यूॅं तिल-तिल करके घुटते नहीं देख सकता।”

प्रियांशु की बात सुनकर शीला स्तब्ध रह गई। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो सकता है वह नीति का कॉन्फिडेंस खत्म कर उसे बेवकूफ और गंवार इसलिए साबित करना चाहती थी ताकि घर पर उसका एकछत्र राज बना रहे। लेकिन, जब बेटा ही साथ नहीं रहेगा तो कैसा राज?

और कैसा राजपाट! यह सोचते ही वह घबरा गई और चाय और पकोड़े लेकर आई नीति को अपने पास प्यार से बैठाती हुई बोली “किस चीज के पकौड़े बनाए हैं बेटी?”

पहली बार शीला को इतने प्यार से बातें करते देख नीति की ऑंखों में ऑंसू आ गए वह बोली “प्याज के।खाकर बताइए ना, कैसे लगे?”

“वाह! बहुत करारे हैं। प्रियांशु खाकर देख बेटा, मेरी बहू ने कितने अच्छे पकौड़े बनाये हैं।”

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“जी माॅं। प्रियांशु में हॅंसते हुए कहा। अपनी माॅं के बदले स्वभाव में उसे अपने सवाल का जवाब जो मिल गया था।

धन्यवाद

श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता #रिश्तो में बढ़ती दूरियाॅं

शीर्षक- महकते रिश्ते

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