`सलोनी और सोमेश, अजीत और गीता के दो बच्चे थे। दोनों होनहार और पढाई में अब्बल।
संस्कार तो कूट -कूट कर भरे थे। कभी पलटकर जबाब नहीं देते सलोनी नाम के जैसे साँवले
रंग की , तीखे नैन -नक्श , कमर तक लम्बे बाल, आँखों में हल्का सा काजल। बहुत सुंदर
लगती। माँ गीता तो उसकी बलायें लेती न थकती। बीएससी फाइनल ईयर में थी।
एक दिन अजीत की बहन रमा उनसे मिलने आई। तब दोनों बच्चे स्कूल और कॉलेज में थे पर
अजीत किसी कारणवश घर पर ही थे।भाई को घर में देख रमा थोड़ा सकपकाई फिर हंसी
का आवरण ओढ़ते हुए अंदर आ गयी।गीता सबके लिए चाय-नाश्ता ले आई। अजीत ने रमा
से पुछा : दीदी आज यहाँ कैसे ? बस यूँ ही। वो सलोनी के लिए रिश्ता लेकर आयी
हूँ…..रमा ने अचकचाते हुए कहा। अजीत और गीता हैरानी से एक – दूसरे की तरफ देखने
लगे, क्योंकि वो जानते थे सलोनी दीदी को फूटी आंख ना सुहाती थी , फिर उसके बारे में
सोचने की फुर्सत कैसे मिल गयी? ये तो अच्छी बात है दीदी , पर सलोनी अभी पढ़ना चाहती
इस कहानी को भी पढ़ें:
है। और वैसे भी अभी उम्र कम ही है , अजीत जी बोले। अरे क्या कम है , हमारे तो इस उम्र
में बच्चे तक हो गए थे। इस पर गीता ने कहा : हमारी बात और है दीदी, पर अब वो समय
नहीं रह गया है। अब लड़कियों की पढ़ाई भी उतनी ही ज़रूरी है , जितनी लड़कों की। और
अभी वो पढ़ना चाहती है तो हमें भी जल्दबाजी नहीं। हाय -हाय मैं कौन सा पढ़ने से मना
कर रही हूँ , शादी करके अपने घर जाएगी तो तुम लोग भी टेंशन फ्री हो जाओगे। पढ़ाई वो
वहां भी कर लेगी रमा मुँह बनाते हुए बोली। मेरी जेठानी की भाभी का लड़का है , खुद की
मेडिकल की दुकान है। घर -वार अच्छा है , और लड़की भी आँखों के सामने रहेगी। ठीक है
दीदी , सलोनी आ जाये फिर बात करके देखते हैं…..अजीत ने बात खत्म करने के इरादे से
कहा।
रमा के जाने के बाद अजीत और गीता ने सलोनी से बात करके देखि पर उसका भी वही
जवाब था , माँ पहले पढ़ाई करके अपना करियर बना लूँ , अपने पैरों पर खड़ा हो लूँ , उसके
बाद देखेंगे। गीता ने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा , कोई बात नहीं जितना पढ़ना
चाहती है , पढ़ ले।
इस कहानी को भी पढ़ें:
कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आया। सभी तैयार होकर रमा का इंतजार कर रहे थे।
रमा के आने के बाद उन्होंने अजीत को राखी बाँधी , और सलोनी ने सोमेश को। राखी बांधने
के बाद सभी खाना खाने बैठे ही थे , कि सलोनी को किसी का फ़ोन आया। अजीत के पूछने
पर बताया कि उसकी सहेली आ रही है नोट्स लेने के लिए। वो कई दिनों से बिमार थी तो
कॉलेज नहीं जा पायी थी। सलोनी, सोमेश को अपने साथ नोट्स लेकर चली गयी। अरे ऐसे
ही जाने दिया , उसने कहा और तुमने मान लिया ?रमा ज़हर उगलती हुई बोली। देखना
कहीं इसका चक्कर-वक्कर तो नहीं , पता चला मुहं काला करके भाग गयी। रिश्ता दिया तो
उसके लिए भी मना कर दिया। अच्छा भला ख़ानदान था……रमा ताव खाये बैठी थी। हाँ
अच्छा ख़ानदान था , क्यों दीदी ? अजीत ने रमा की आँखों में ऑंखें डालकर प्रश्न किया तो वो
हड़बड़ाकर इधर -उधर देखने लगी। मैंने सब पता करवाया था….अजीत आगे बोले। …
लड़का एक नंबर का नशेड़ी और लड़कीबाज है। और जो मेडिकल की दुकान की आप बात
कर रहीं थी , वो भी उसके बाप की है न कि उसकी। अरे तो क्या हो गया ? रमा तिलमिला
उठी…….थोड़े – बहुत ऐब तो सबमें होते ही हैं। और वैसे कौन सी तुम्हारी सगी बेटी है ,
इस कहानी को भी पढ़ें:
पराया खून है वो भी न जाने किसका ? क्या पता कल को कैसा रंग दिखाए ? बस दीदी मेरी
बेटी के बारे में एक और शब्द नहीं , नहीं तो मैं पता नहीं क्या कर जाऊँगा। मेरी बेटी है वो ,
किसी और की नहीं। बस मेरी है। अजीत गुस्से से काँप रहे थे , आँखों में आँसू आ गए थे।रमा
के बाहर जाते हुए अजीत ने देखा कि सलोनी दरवाज़े पर ही खड़ी है, उसकी आँखों में आँसू
थे। अंदर आई और पूछने लगी : पापा क्या सच में मैं आपकी बेटी नहीं हूँ ?? प्लीज पापा
सच बोलिये ना। अजीत और गीता रोने लग गए…..आज दिन तक जिस बात का कभी जिक्र
भी नहीं हुआ , वो इस तरह सामने आएगी उसने सोचा नहीं था।
अजीत कहने लगे : हमारी शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे एक दिन मैं और तेरी मम्मी
सुबह -सुबह पार्क में टहल रहे थे , तो झाड़ियों से एक बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई दी।
पास गए तो एक छोटी सी बच्ची कपड़ों में लिपटी हुई थी। अभी २-३ दिन की थी। हम उसे
लेकर पुलिस स्टेशन गए , उन्होंने रिपोर्ट लिखकर उसे अनाथालय में देने को कहा।
अनाथालय पहुँच कर जैसे ही गीता ने उस बच्ची को वार्डन के पास देने लगी तो उसने गीता
का अंचल कस कर पकड़ लिया और जोर -जोर से रोने लगी। उस नन्ही जान को रोता देख ,
तेरी माँ भी रो पड़ी और कहने लगी हम इसे गोद ले लेते हैं न प्लीज। मेने असमंजस में ही
सही पर हामी भर दी। वो और कोई नहीं तू ही थी। तुझे गोद लेने की वजह से तेरी दादी,
इस कहानी को भी पढ़ें:
बुआ सब नाराज हुए , पर हमने किसी की नहीं सुनी। पर तू रमा बुआ की बातों को दिल से
मत लगा , तू मेरी बच्ची है और मेरी बच्ची ही रहेगी। अजीत इतना कहकर फूट – फूट कर
रोने लगे।इतना सुनते ही सलोनी अपने कमरे में आ गयी और जार – जार रोने लगी। गीता
उसे चुप करवाने जाने लगी तो अजीत ने उसे रोक लिया ; रहने दो गीता उसे अपना मन
हल्का करने दो। बहुत देर बाद सलोनी के कमरे का दरवाजा खुला। रो -रो कर सूजी हुई
ऑंखें , बाल बिखरे हुए उसकी तन की स्थिति मन का हाल बयां कर रहे थे। अजीत , गीता
और सोमेश भीगी आँखों से उसे ही देख रहे थे। सलोनी धीरे से पापा के पास आकर बैठ
गयी। उनका हाथ पकड़ कर बोली : अपने मुझे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मैं परायी
हूँ। जितना प्यार अपने दिया है , शायद ही कोई पिता अपनी बेटी को दे। पहले मैं बहुत
रोई पर फिर सोचा उन लोगों के लिए क्या रोना जिन्होंने पैदा होते ही मरने के लिए छोड़
दिया। उनके लिए जिऊँगी जिन्होंने अपना सर्वस्व मुझ पर न्योछाबर कर दिया । आप तो
मेरे लिए भगवान् से भी बढ़कर हैं। मैं आपकी बेटी थी , हूँ और हमेशा रहूंगी। है न पापा ,
सलोनी ने अजीत की तरफ देखा। अजीत ख़ुशी से अतिरेक होकर बोले हाँ मेरे बच्चे हाँ कहते
हुए सोनाली को गले लगा लिया। रिश्तों में दूरियां बढ़ते -बढ़ते रह गयीं। ये दूरियां इतनी
इस कहानी को भी पढ़ें:
भी हो सकती थी कि ख़तम करना मुश्किल हो जाता पर अजीत और गीता के प्यार ने रिश्तों
में दूरियां बढ़ने से रोक लिया था।
समिता बडियाल